– साल दर साल खाली रह जाती हैं सैकड़ों सीट
भोपाल/रवि खरे /बिच्छू डॉट कॉम। नीट यूजी काउंसलिंग में कॉलेज लेवल काउंसलिंग का दौर चलने के बाद भी अभी प्रदेश के दंत चिकित्सा महाविद्यालयों में सैकड़ों सीटें रिक्त बनी हुई हैं। प्रदेश में यह स्थिति पहली बार नही है बल्कि , इसके पूर्व की सालों में भी साल दर साल इस तरह की स्थिति बन रही है। इसकी वजह है सरकारी स्तर पर दंत चिकित्सकों को नौकरी नहीं मिलना जिसकी वजह से अब युवाओं का दंत चिकित्सक बनने में रुचि कम हो रही र्है।
जानकारी के अनुसार फिलहाल प्रदेश के 14 निजी डेंटल कॉलेजों में बीडीएस कोर्स की 723 सीटें रिक्त बनी हुई हैं। ऐसे में अगर प्रवेश प्रक्रिया के आखिरी चरण कॉलेज लेवल काउंसलिंग में भी अगर छात्रों ने प्रवेश लेने में रुचि नहीं ली तो यह सीटें पूरे सत्र के लिए रिक्त रहना तय है। दरअसल प्रदेश 14 निजी डेंटल कॉलेज हैं, जिनमें बीडीएस की कुल सीटों की संख्या 1320 है, इनमें से महज 597 सीटों पर ही अब तक छात्रों ने प्रवेश लिया है। इसके उलट प्रदेश में मौजूद एक मात्र इंदौर में संचालित सरकारी डेंटल कॉलेज में सभी 63 सीटें पहले ही भर चुकी हैं। सूत्रों का कहना है कि निजी डेंटल कॉलेजों की इस सिथति की सबसे बड़ी वजह है सात साल पहले निजी डेंटल कॉलेजों में मैनेजमेंट कोटा को समाप्त कर दिया जाना। दरअसल इस कोटा के तहत निजी कॉलेज संचालक केरल, कर्नाटक, दिल्ली, हरियाणा, गुजरात सहित अन्य दूसरे राज्यों के इच्छुक छात्रों को मैनेजमेंट कोटे की सीटों पर सीधे प्रवेश दे देते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं हो पा रहा है। यही वजह है कि प्रदेश के निजी कॉलेजों में उसके बाद से हर साल सीटें रिक्त रह जाती हैं।
एनआरआई भी नहीं दिखा रहे रुचि
प्रदेश में डेंटल के 14 कॉलेजों में से महज 4 कॉलेजों में ही एनआरआई कोटा लागू है, इसके बाद भी एनआरआई इन कॉलेजों में प्रवेश लेने में रुचि नहीं दिखा रहे हें। इसके उलट कॉलेज लेवल काउंसलिंग के राउंड में एमबीबीएस संकाय की महज 14 सीटें खाली हैं। जिन छात्रों को अभी तक किसी राउंड में सीट नहीं मिली है, वह भी इस राउंड में शामिल होकर प्रवेश के प्रयास कर सकते हैं। इसमें इंडेक्स कॉलेज इंदौर में 5, सुख सागर कॉलेज जबलपुर में 3, चिरायु कॉलेज भोपाल में 1, आरकेडीएफ कॉलेज भोपाल में 3 और एलएनसीटी कॉलेज इंदौर में एमबीबीएस की 2 सीटें खाली हैं।
सरकार नहीं दे रही नौकरी
प्रदेश में सरकारी अस्पताल तो सैकड़ों की संख्या में हैं, जिनमें चिकित्सकों का अभाव बना हुआ है। इसके बाद भी प्रदेश सरकार दंत चिकित्सकों के पद पर उनकी भर्ती ही नहीं करती है, जिसकी वजह से भी युवाओं का इससे मोहभंग होने का बड़ा कारण है। फिलहाल प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में डेंटल सर्जन के कुल 150 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 120 पोस्ट पर डेंटल सर्जन पदस्थ हैं। यही नहीं प्रदेश में स्वास्थ्य विभाग द्वारा डेंंटिस्ट को स्पेशलिस्ट कैडर में शामिल किया हुआ है। जबकि डेंटल सर्जन की जरूरत प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र स्तर के अस्पतालों में भी रहती है। इन अस्पतालों में इन डाक्टरों की कमी की वजह से मरीजों को दांत संबंधी बीमारी के इलाज के लिए जिला अस्पताल जाना पड़ता है। यही नहीं सरकार भी सिर्फ एमबीबीएस को तरजीह देती है, इसलिए नीट पास करने के बाद कैंडीडेट सिर्फ एमबीबीएस में ही प्रवेश लेने का प्रयास करते हैं।