यस एमएलए/क्या भाजपा जीत पाएगी कांग्रेस से अपना गढ़

नीरज दीक्षित

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। छतरपुर जिले की महाराजपुर विधानसभा सीट भाजपा का गढ़ है। यहां फिलहाल कांग्रेस का राज है। 2018 में महाराजपुर में कांग्रेस के नीरज दीक्षित ने भाजपा के मानवेंद्र सिंह को 14 हजार से अधिक वोटों के मार्जिन से हराया था। इस बार इस सीट में मुकाबला रोचक हो सकता है। कांग्रेस से हार का बदला लेने के लिए पूर्व विधायक मानवेंद्र सिंह भंवर राजा इस बार अपने बेटे कामाख्या सिंह के लिए भाजपा से टिकट मांग रहे है। हरपालपुर क्षेत्र के एक हिस्से में इनका अच्छा असर है। मानवेद्र सिंह 2008 का चुनाव निर्दलीय लडक़र जीत गए थे। इनके अलावा कृष्णा यूनिवर्सिटी के संचालक बृजेंद्र गौतम क्षेत्र में बच्चों की प्रतिभाओं का सम्मान कर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे है। ये भी भाजपा से ही टिकट के दावेदार है। कांग्रेस से विधायक नीरज दीक्षित और दिग्गज नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी की बेटी निधि चतुर्वेदी प्रबल दावेदार हैं और दोनों ही बेहद मजबूत। बुंदेलखंड के हृदय स्थल छतरपुर जिले की महाराजपुर विधानसभा सीट पर इस बार भाजपा-कांग्रेस के बीच कड़े मुकाबले के आसार है। 2018 में कांग्रेस के नीरज दीक्षित ने भाजपा के मानवेंद्र सिंह भंवर राजा को लगभग 14 हजार वोटों के अंतर से हराया था। 2008 के परिसीमन पर बनी इस सीट में मानवेद्र सिंह लगातार दो चुनाव जीते थे। 2008 में उन्होंने कांग्रेस से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीते। इसके बाद भाजपा में शामिल होने के बाद 2013 में भी उन्होंने लगभग साढ़े 15 हजार वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी। 2018 में पराजय के कारण मानवेंद्र सिंह का टिकट खतरे में है। वे अब अपने बेटे जिला पंचायत सदस्य कामाख्या सिंह के लिए भाजपा का टिकट चाह रहे हैं। जहां तक कांग्रेस का सवाल है तो वह अब भी बढ़त बनाए दिखती है। नीरज दीक्षित के खिलाफ कुछ एंटी इंकम्बेंसी तो है लेकिन, वे ताकत बने हुए हैं। भाजपा- कांग्रेस दोनों दलों में कई दावेदार हैं और लगातार क्षेत्र में सक्रिय भी है। जहां तक महाराजपुर क्षेत्र के विकास का सवाल है तो न कांग्रेस ने कुछ खास किया और न ही भाजपा ने इस क्षेत्र की सुध ली। कई पुरानी मांगे पूरी होने की बाट यहां की जनता अब भी देख रही है।
सियासी समीकरण
महाराजपुर ऐसी विधान सभा सीट है, जिसका राजनैतिक मिजाज शुरू से ही कांग्रेसी विरोधी रहा है। 1977 के बाद 1980 और 1985 के को छोड़ दें तो यहां से कांग्रेस जीत के लिए तरसती रही। 1977, 1990, 1993, 1998 और 2003 में भाजपा के राम दयाल अहिरवार, 2013 में मानवेंद्र सिंह चुनाव जीते। 1980 1985 और 2018 में कांग्रेस ने चुनाव जीता। 2008 में परिसीमन के बाद यह विधानसभा क्षेत्र सामान्य हुआ था। 2008 में कांग्रेस ने अपने पूर्व मंत्री मानवेन्द्र सिंह का टिकट काट दिया था। उन्होंने बगावत कर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव जीता। 2018 में कांग्रेस ने सिंधिया खेमे के सबसे कम उम्र के नीरज दीक्षित को प्रत्याशी बनाया। नीरज ने भाजपा के विधायक मानवेंद्र सिंह को 14005 मतों के बड़े अंतर से हराया था। दरअसल, इस विधानसभा के राजनैतिक मिजाज में एक बड़ा परिवर्तन परिसीमन के बाद देखने को मिल रहा है। पांच दशक बाद जब सामान्य वर्ग के पार्टी कार्यकर्ताओं को मौका मिला तो वे इस अवसर का लाभ लेने से वंचित नहीं रहना चाहते हैं। नतीजतन कांग्रेस और भाजपा दोनों में ही अंतर्रकलह जम कर देखने को मिलती है।
यह दावेदार सक्रिय
महाराजपुर विधानसभा क्षेत्र में इस बार भाजपा और कांग्रेस से टिकट के लिए कई दावेदार सक्रिय हो गए हैं। परंपरागत चेहरों से हटकर नए चेहरे दोनों ही दलों से अपनी मजबूत दावेदारी जता रहे हैं। इस सीट पर भाजपा से दावेदारी करने वालों की संख्या कांग्रेस की तुलना में ज्यादा है। दावेदारों की यही संख्या भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती मानी जा रही है। वहीं कांग्रेस के लिए इस बार भी बहुजन समाज पार्टी मुश्किलें बढ़ाएगी। पिछले चुनाव में कांग्रेस तीसरे नंबर पर रही थी। इस बार भी कांग्रेस के पास कोई मजबूत चेहरा नहीं है जो भाजपा से यह सीट छीन सके। भाजपा का सीधा मुकाबला बसपा से हुआ था। इस बार भी बसपा से वही चेहरा मैदान में है। भाजपा की ओर से मानवेंद्र सिंह भंवर राजा, सूरजदेव मिश्रा, मानिक चौरसिया, महेश मातौल, अंजुल सक्सेना, हरिश्चंद्र द्विवेदी हरषू महाराज, अभिलाषा शिवहरे दावेदार हैं। वहीं कांग्रेस से विधायक नीरज दीक्षित, चंद्रिकाप्रसाद द्विवेदी, अजय दौलत तिवारी, संजय अग्निहोत्री, गगन यादव, राजेश महतो, लल्ला महेंद्र सिंह, अनबरी सिद्दीकी, जितेंद्र सिंह चौहान आदि सक्रिय हैं।
जातिगत समीकरण
सवा दो लाख मतदाताओं वाली महाराजपुर विधानसभा सीट ब्राह्मण बाहुल्य है। इस समाज क्षेत्र में लगभग 42 हजार मतदाता है, जो चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। दूसरे नंबर पर दलित मतदाताओं की तादाद भी लगभग 42 हजार ही है। तीसरे नंबर पर पिछड़े वर्ग के लोधी, यादव, चौरसिया अलग अलग क्षेत्र में बड़ी तादाद में है। ओबीसी के क्षेत्र में लगभग 36 हजार मतदाता है। ब्राह्मण बाहुल्य होने का लाभ पिछली बार कांग्रेस के नीरज दीक्षित को मिला था।

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