भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। ग्वालियर पूर्व विधानसभा सीट सत्ताधारी बीजेपी के सबसे अधिक मजबूत किले के रूप में मानी जाती है। यहां पर अब तक 12 विधानसभा चुनाव हुए हैं। यहां केवल 4 बार ही कांग्रेस जीतने में कामयाब हो सकी है। वहीं 8 बार भाजपा का कब्जा रहा है। यह ऐसी सीट है ,जहां पर जातिगत समीकरण मायने नहीं रखते। फिलहाल यहां पर कांग्रेस के सतीश सिकरवार विधायक हैं। उन्होंने उपचुनाव में भाजपा के मुन्नालाल गोयल को हराया था। ग्वालियर पूर्व वो विधानसभा सीट है , जहां से ग्वालियर की राजनीति संचालित होती है इसी विधानसभा क्षेत्र में है श्रीमंत का महल है । यहीं पर मोती महल, जहां बैठते हैं प्रशासनिक अधिकारी। साथ ही यहां ग्वालियर के आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के बंगले हैं। एक तरह से ग्वालियर की सियासत का केंद्र इस सीट को ही माना जाता है। यह सीट अब तक बीजेपी का गढ़ रही है ,लेकिन उपचुनाव में इस सीट पर कांग्रेस ने सेंध लगा दी। ग्वालियर पूर्व की सीट शहर की सबसे वीआईपी सीट मानी जाती है। यहां पर ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके परिवार से लेकर नरेंद्र सिंह तोमर, प्रभात झा, सतीश सिकरवार समेत सभी आईएएस, आईपीएस रहते हैं। इस सीट से ही ग्वालियर चम्बल अंचल की सियासत तय होती है। यही कारण है कि इस सीट पर सिंधिया की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। उनके समर्थक मुन्नालाल गोयल को कांग्रेस के सतीश सिकरवार ने उपचुनाव में हराया है। यहां पर बिकाऊ और टिकाऊ का मुद्दा बना हुआ है। यह सीट बीजेपी का गढ़ मानी जाती थी, लेकिन बीजेपी से कांग्रेस में आये सतीश सिकरवार ने इसमें सेंध लगाकर कांग्रेस को जिता दिया। उनकी पत्नी शोभा सिकरवार ने 57 साल बाद नगर निगम में कांग्रेस का परचम फहराया। इस जीत को कांग्रेस की जगह सतीश सिकरवार की व्यक्तिगत मानी जाती है। है। 2023 में सिकरवार के सामने कई चुनोतियां हैं। तीन साल पहले पार्टी छोडक़र आए और उप चुनाव में भाजपा प्रत्याशी रहे मुन्नालाल गोयल फिर दावेदार हैं। उनके अलावा जय सिंह कुशवाह, अनूप मिश्रा, माया सिंह, सुमन शर्मा के नाम भी चर्चा में हैं। आम आदमी पार्टी से मनीक्षा सिंह तोमर, कांग्रेस से विधायक डॉ. सतीश सिंह के अलावा कोई दूसरा व्यक्ति कांग्रेस की और से दावेदार नहीं है।
विकास के अपने-अपने दावे
क्षेत्र में विकास की स्थिति क्या है इस पर विधायक डॉ. सतीश सिंह सिकरवार का कहना है कि क्षेत्र में विकास के काम के लिए मैं लगातार प्रयास कर रहा हूं। समस्याओं के समाधान के लिए मैं हमेशा अपने मतदाताओं के लिए उपलब्ध हूं। कुछ बड़े काम क्षेत्र में होना जरूरी हैं, इसके लिए मैंने हर स्तर पर अपनी मांग रखी है। लेकिन मैं कांग्रेस का विधायक हूं, इसलिए मेरी मांगों पर गौर नहीं किया जा रहा। वहीं भाजपा नेता मुन्नालाल गोयल का कहना है कि अगर 2020 में भी भाजपा की जीत होती तो ग्वालियर पूर्व के मतदाताओं के अरमान पूरे हो जाते। मुरार में नमामि गंगे प्रोजेक्ट से मुरार नदी का पूरा स्वरूप बदल जाता। इसी तरह स्वर्णरेखा नदी भी स्वर्ण जैसी होती हुई दिखती। अब बाजी हाथ से निकल गई है। क्षेत्र की जनता का कहना है कि गंदगी और उफनते हुए सीवर टैंक कहीं भी देखने को मिल जाती है। सडक़ें दुरुस्त नहीं हो सकी हैं। समस्याओं का अंबार है। जनसुनवाई में समस्याओं के निराकरण के लिए निर्देश भी दिए जा रहे हैं। सभी का समाधान हो रहा है। ननि क्षेत्र में काम तो बहुत हैं लेकिन नगर निगम का अमला अपनी ड्यूटी नहीं कर पा रहा है। ननि सडक़ें दुरुस्त कराने में जुटी है। क्षेत्र में कहीं रोड नहीं हैं तो कहीं पानी की समस्या है। हम क्षेत्र की समस्याएं किसे बताएं यह पता ही नहीं चलता।
सियासी समीकरण
ग्वालियर पूर्व वो सीट है, जहां दलबदल हुआ है। 2018 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतने वाले मुन्नालाल गोयल सिंधिया के साथ बीजेपी में शामिल हो गए और जब उपचुनाव हुआ तो ये सीट कांग्रेस के ही खाते में ही रही, लेकिन यहां बड़ा उलटफेर हुआ। दरअसल 2018 में मुन्नालाल गोयल ने बतौर कांग्रेस कैंडिडेट बीजेपी के सतीश सिंह सिकरवार को हराया था। 2020 में जब उपचुनाव हुआ तो मुन्नालाल गोयल बीजेपी के कैंडिडेट थे और सतीश सिकरवार कांग्रेस के कैंडिडेट। लोगों ने कैंडिडेट की बजाए पार्टी को ही वोट दिया। अब हालात ये है कि सतीश सिकरवार फिर से इस सीट से कांग्रेस के दावेदार है और अब बीजेपी में एक अनार सौ बीमार वाले हालात है। अनूप मिश्रा फिर से चुनाव लड़ने के मूड में हैं। सिंधिया समर्थक मुन्नालाल गोयल दावेदार है ही।
सियासी मिजाज
ग्वालियर पूर्व विधानसभा सीट वैसे तो 2008 में अस्तित्व में आई लेकिन इससे पहले ये मुरार विधानसभा सीट का हिस्सा थी। 1957 के चुनाव में ग्वालियर की शहरी इलाके की तीन सीटें थी । लश्कर, मुरार और ग्वालियर। 1957 के चुनाव में कांग्रेस की चंद्रकला ने मुरार सीट जीत थी इसके बाद कांग्रेस ने 1962, 1972. 1980 और 1993 के चुनाव में इस सीट पर कब्जा जमाया लेकिन 1985 से बीजेपी ने यहां जीत का सिलसिला शुरू किया 1990 के चुनाव में भी बीजेपी जीती इसके बाद 1998 और 2003 में मुरार सीट पर ध्यानेंद्र सिंह जीते। ध्यानेंद्र सिंह चार बार यहां से विधायक रहे। 2008 में अटल जी के भांजे अनूप मिश्रा ने लश्कर ईस्ट की बजाए ग्वालियर ईस्ट से चुनाव लड़ा और 2013 में भी जीत दर्ज की लेकिन 2018 के चुनाव में कांग्रेस के मुन्नालाल गोयल ने इस सीट से चुनाव जीता। जबकि 2020 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े गोयल का कांग्रेस के सतीश सिकरवार ने हरा दिया।
मतदाताओं की संख्या व जातिगत समीकरण
ग्वालियर पूर्व विधानसभा सीट पर अगर मतदाताओं की संख्या की बात करें तो विधानसभा सीट पर कुल 3 लाख 12 हजार 946 मतदाता हैं, जिनमें 1 लाख 67 हजार 858 पुरुष मतदाता और 1 लाख 45 हजार 75 महिला मतदाता शामिल हैं। चुनावी विशेषज्ञों का कहना है कि ग्वालियर पूर्व सीट पर जातिगत राजनीति कारगर साबित नहीं होती है लेकिन सिंधिया का गढ़ माने वाले इस इलाके में ब्राह्मण, ओबीसी और वैश्य समुदाय के वोटर्स निर्णायक भूमिका में हो सकते हैं। विधानसभा क्षेत्र में ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रिय, गुर्जर, बघेल, कुशवाह, आदिवासी, सिंधी, पंजाबी, क्रिस्चियन, मुस्लिम मतदाता हैं।
16/06/2023
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