यस एमएलए: दो जातियों के बीच ही केन्द्रित रहती है राजनीति

राजवर्धन सिंह

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। मालवा का प्रवेश द्वार कहलाने वाला प्राचीन शहर बदनावर प्रदेश की ऐसी विधानसभा सीट है, जहां पर पूरी राजनीति ही दो जातियों के आसपास सिमटी रहती है। इसकी वजह से ही अब इस क्षेत्र की जनता को वादों घोषणाओं के सियासी स्वप्नों के साकार होने का इंतजार रहता है। इस विधानसभा की खासियत यह है कि अगर कुछ अपवाद छोड़ दिए जाएं तो हमेशा से ही सत्ता के विपरीत जनप्रतिनिधि  चुना जाता रहा है। इसकी वजह से ही यहां पर विकास के काम प्रभावित होते रहे हैं। वर्तमान में शिव सरकार में मंत्री राजवर्धन सिंह दत्तीगांव  विधायक हैं। इसके बाद भी इस इलाके को पानी की गंभीर समस्या का सामना करना पड़ रहा है। इस इलाके में  प्रत्याशियों द्वारा बीते तीन चुनावों से नर्मदा जल  लाने की घोषणा जोर-शोर से  की जाती रही है, लेकिन अब तक उस पर कोई काम शुरु नहीं हो पाया है।  यही हाल शहर की बलवंती नदी के भी हैं। बीते 17 वर्षों से इस नदी के कायाकल्प को लेकर कई बार  घोषणाएं हुईं, लेकिन  हालात नहीं बदल सके हैं। अब एक बार फिर से इसके लिए 19 करोड़ की योजना बनाई गई है। यह ऐसा क्षेत्र है जहां पर मंडी की पहचान ए-ग्रेड फल और अनाज मंडी की है , लेकिन इसके बाद भी उपज के बेहतर निस्तारण और फूड क्लस्टर के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया है। यहां पर तीन साल पहले हुए उपचुनाव के समय सरकार की तरफ से क्षेत्र के गांवों को मुख्य मार्ग से जोडऩे के लिए दो सौ ग्रामीण सडक़ों की घोषणा की गई थी, लेकिन उनमें से करीब 80 फीसदी जस की तस है। यहां  प्राचीन मंदिर हैं। इनमें परमारकालीन बैजनाथ महादेव मंदिर, पांडवों की कुलदेवी एकवीरा देवी के मंदिरों में दर्शनों के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं लेकिन यहां का विकास अपेक्षानुरूप नहीं हुआ है। इस सीट पर इस बार भी जहां भाजपा से राजवर्धन दत्तीगांव का चुनाव लड़ना तय माना जा रहा है तो वहीं कांग्रेस से कमल ङ्क्षसह पटेल और बालमुकुंद गौतम की दावेदारी बनी हुई है।
जातीय समीकरण
बदनावर विधानसभा क्षेत्र में जातिगत समीकरण हमेशा प्रभावी फैक्टर रहा है। इस सीट पर आजादी से अभी तक निर्दलीय उम्मीदवार को मौका नहीं मिला। यह विधानसभा सीट जनसंघ, भाजपा और कांग्रेस के बीच ही बदलती रही। यहां राजवर्धन सिंह के विधायक पद से इस्तीफा देने के बाद उपचुनाव हुआ था, जिसमें वे विजयी रहे थे। कांग्रेस ने 2018 में राजपूत समाज उम्मीदवार बनाया था। वहीं भाजपा ने तीन बार पाटीदार एवं दो बार राजपूत समाज से प्रतिनिधि को मैदान में उतारा था। यहां पर राजपूत समाज के उम्मीदवारों का दबदबा रहा है। अब तक 14 विधानसभा चुनावों में से सात बार यहां पर राजपूत उम्मीदवार विजयी रहा है। बदनावर का इतिहास देखें तो यहां पर सत्ता के विपरीत निर्णय लेने की परम्परा रही है। सन् 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद  सहानुभूति की लहर में जब कांग्रेस को जबरदस्त जीत मिली थी , तब यहां से भाजपा के रमेश चंद्र सिंह राठौर जीते थे। इसी तरह से 1989 की राम लहर में भाजपा की सरकार बनी थी, तब कांग्रेस के प्रेमसिंह दत्तीगांव जीते थे। इसी तरह 1993 में जब प्रदेश में कांग्रेस का जादू चल रहा था , तब यहां पर भाजपा की जीत हुई थी। अगर जातिगत मतदाताओं की संख्या देखें तो इलाके में राजपूत मतदाता 35 से 40 हजार, पाटीदार  40 से 45 हजार और 50 हजार आदिवासी मतदाता हैं, जबकि 15 से 18 हजार मुस्लिमों के अलावा जाट , सिरवी, यादव, माली, राठौर समाज के लोग यहां हैं। बदनावर की पूरी राजनीति राजपूत और पाटीदार मतदाता के इर्द गिर्द ही घूमती है। यही निर्णायक मतदाता हैं और यही कारण है कि दोनों ही प्रमुख पार्टियां बीजेपी और कांग्रेस राजपूत और पाटीदार प्रत्याशी चुनने में ज्यादा विश्वास रखती है।
दावे प्रतिदावे  
मंत्री राजवर्धन दत्तीगांव का कहना है कि क्षेत्र में जगह-जगह विकास कार्य हुए हैं। सालों से अपने जीर्णोद्धार का इंतजार कर रही बलवंती नदी के लिए भी राशि स्वीकृत हो चुकी है। युवाओं के लिए जिले का पहला इनडोर स्टेडियम भी बन चुका है, 50 करोड़ से बिजली के काम हुए हैं। भवन विहीन आंगनबाडिय़ाों के लिए 155 भवन स्वीकृत कराए गए हैं। इसी तरह से देश का सबसे बड़ा सोयाबीन प्लांट बदनावर में ही बन रहा है। इसी तरह से एक हजार एकड़ में बनने वाला पीएम मेगा मित्र पार्क भी यहां के लिए स्वीकृत किया जा चुका है। तो वहीं अब उनके प्रतिद्वंदी उनके कामकाज पर सवाल खड़ा कर रहे हैं। उनका कहना है कि नर्मदा जल लाने की योजना पर कोई काम ही नहीं किया गया है। इसी तरह से बलवंती नदी के सुंदरीकरण का काम भी शुरू तक नहीं हुआ है।
शिक्षा और स्वास्थ के हाल बेहाल
यहां ध्यान दिया जाता तो यह क्षेत्र रोजगार का बड़ा केंद्र बन सकता था, लेकिन जनप्रतिनिधियों ने ध्यान ही नहीं दिया। इस इलाके में तीन कालेज होने के बाद भी किसी भी कॉलेज में स्नातकोत्तर तक पढ़ाई की सुविधा नही है। इसी तरह से यहां के अस्पताल में सीटी स्कैन, डिजिटल एक्सरे, डायलिसिस यूनिट सहित कई अत्याधुनिक उपकरण होने के बाद भी डॉक्टरों का अभाव बना हुआ है। इसकी वजह से बीमारों को रतलाम, इंदौर या धार इलाज के लिए जाना पड़ता है।
ऐसा है बदनावर का भूगोल
बदनावर विधानसभा क्षेत्र की सीमा धार, रतलाम, उज्जैन, इंदौर, झाबुआ जिलों को टच करती हैं। इस इलाके में खेती किसानी वाले मतदाता अधिक हैं। राजपूत और पाटीदारों के पास जमीन अच्छी मात्रा में है। एक बड़े भू भाग पर खेती की जाती है और क्षेत्र के किसान सीजन की फसलों के साथ ही साथ ही सब्जियां भी उगाते हैं। जो बड़े शहरों तक भी भेजी जाती हैं। बदनावर, इंदौर-रतलाम- उज्जैन-धार जैसे शहरों के बीच स्थित होने के कारण व्यापार व्यवसाय की दृष्टि से भी संपन्न माना जाता है ।

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