यस एमएलए: विस्थापन और बेरोजगारी सबसे बड़ा दर्द

 सुरेंद्र सिंह बघेल

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। धार जिले की कुक्षी विधानसभा सीट ऐसी है जहां 45 साल से कांग्रेस का राज है। क्षेत्र में विकास के तो बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं लेकिन विस्थापन, बेरोजगारी यहां के लोगों की सबसे बड़ी समस्या है।   कुक्षी में क्षेत्र की उन्नत कृषि उपज मंडी है। फल, अनाज, कपास और मिर्च की बेहतर फसल होने के बाद भी यहां न कोल्ड स्टोरेज हैं और न फूड प्रोसेसिंग यूनिट है। अत्याधुनिक उपकरणों के साथ 100 बेड का सिविल अस्पताल तो है, लेकिन इलाज करने वाले डाक्टर नहीं है। उच्च शिक्षा के लिए सिर्फ कुक्षी में स्नातकोत्तर महाविद्यालय है, लेकिन यहां भी चुनिंदा विषय है। विद्यार्थियों को पढ़ाई के लिए 40 किलोमीटर दूर बड़वानी जाना होता है। निरसरपुर और डही में तीन साल पहले कालेज स्वीकृत हुए, लेकिन बन अब तक नहीं पाए। इस क्षेत्र से विधायक हैं सुरेंद्र सिंह हनी बघेल।
धार जिले की महत्वपूर्ण सीटों में से एक कुक्षी कई मायनों में खास है। एक समय मप्र की राजनीति में विपक्ष की आवाज मजबूती से रखने वाली जमुना देवी इसी कुक्षी विधानसभा सीट से जीतकर सदन पहुंची थीं। कुक्षी पर कांग्रेस का एकतरफा राज रहा है। अब तक हुए 15 चुनावों में यहां कांग्रेस को 12 बार जीत मिली तो वहीं, साल 1962 में जनसंघ, 1990 में भाजपा और 2011 में हुए उपचुनाव में भी भाजपा ने जीत दर्ज की थी। कुल मिलाकर 3 बार कांग्रेस से जनता को मोह भंग हुआ। वर्तमान में यहां से कांग्रेस के सुरेंद्र सिंह (हनी) बघेल विधायक हैं। 15 महीने की कमलनाथ सरकार में बघेल नर्मदा घाटी विकास मंत्री की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं।
कुक्षी विधानसभा क्षेत्र के मुद्दे
अन्य आदिवासी इलाकों की तरह ही इस इलाके में भी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। यहां रोजगार, सडक़, बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य तो बड़े मुद्दे हैं ही। इसके साथ ही खराब कानून व्यवस्था इस इलाके की छवि को धूमिल करती है। यहां अस्पतालों में डॉक्टर की तो स्कूलों में शिक्षकों की कमी है। रोजगार के अवसरों की कमी है तो वहीं साफ पीने के पानी की भी कमी है। इन सवालों के जवाब जानने के लिए जब हमने इलाके के स्थानीय नेताओं से बात की तो दोनों दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया। वहीं टीन शेड में रहने वाले कंचन रामचंद्र, तेरसिंह भी लिया और कालू कहते हैं- यहां के 23 गांव सरदार सरोवर के डूब क्षेत्र में आए थे। छह हजार से ज्यादा लोगों को सरकार ने पट्टे दिए। रहने के लिए 5400 वर्गफीट के प्लाट तक दिए, लेकिन हमारी सुनवाई नहीं हुई। सर्वे में कहा गया कि हमारे घर की देहरी तक ही पानी आया है, पूरा घर नहीं डूबा इसलिए मुआवजा नहीं देंगे। तो किसी को कहा मकान के पिछले हिस्से में ही डूब का पानी है अगले हिस्से में नहीं, इसलिए नियमों में नहीं आते। जहां सात माह बैकवाटर भरा रहता हो, वहां कैसे रहा जा सकता है। इसलिए अपने घर छोडक़र हमलोग टीनशेड में रहने को मजबूर बने हुए हैं। कुछ लोगों को प्लाट मिले भी तो पुनर्वास पैकेज नहीं मिला है। हालत ऐसी नहीं है कि वे अपने प्लाट पर मकान बना सकें।                                
विकास के बड़े-बड़े दावे
पिछली कांग्रेस सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे बघेल कहते हैं- हमारी सरकार 15 माह रही , उस दौरान विस्थापितों की मदद का कार्य तेजी से हुआ। अपनी 15 माह की सरकार में मैंने कैबिनेट मंत्री रहते हुए 2191 करोड़ की कुक्षी माइक्रो उद्वहन सिंचाई परियोजना और 1085 करोड़ की डही माइक्रो उद्वहन सिंचाई परियोजना स्वीकृत की थी। इनमें से कुक्षी परियोजना 2028 में पूरी हो जाएगी और डही अगले वर्ष तक पूरी होगी। विधानसभा का एक भी गांव ऐसा नहीं बचेगा जहां सिंचाई और पेयजल के लिए नर्मदा जल उपलब्ध नहीं होगा। विस्थापितों को पुनर्वास पैकेज के लिए लगातार काम कर रहा हूं। अपनी सरकार के समय 780 लोगों को पैकेज दिलवाए भी। सडक़ें, बिजली, पुल हर क्षेत्र में पूरी ताकत से विकास कार्य में जुटे हैं। क्षेत्र को ऐसा बनाना है कि यह आदर्श विधानसभा क्षेत्र के रूप में पहचाना जाए। वहीं पिछले चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी रहे वीरेंद्र सिंह बघेल कहते हैं कि विधायक हनी बघेल को जनता ने दो बार चुनकर भेजा, लेकिन कुक्षी की स्थिति में बदलाव नहीं हुआ। जनता में इस बात को लेकर असंतोष है। वे अपनी सरकार में मंत्री भी रहे लेकिन फिर भी कुछ नहीं किया। जनता उनकी कार्यप्रणाली समझ चुकी है।
कुक्षी विधानसभा सीट का राजनीतिक समीकरण
2018 के विधानसभा चुनाव में दूसरी सबसे बड़ी जीत दर्ज करने वाले हनी बघेल कुक्षी से जीतकर कमलनाथ की 15 महीने की सरकार में कैबिनेट मंत्री बने थे। हनी बघेल पहली बार 2013 में यहां से विधायक बने थे। 2018 में 63 हजार वोटों से बीजेपी के वीरेंद्र सिंह को हराया था। इससे पहले उनके पिता प्रताप सिंह बघेल और जमुना देवी के बीच कांग्रेस के टिकट को लेकर खींचतान मचती रही। कभी जमुना देवी तो कभी प्रताप सिंह यहां से जीतते रहे, लेकिन जनता के बीच कांग्रेस ही पहली पसंद रही। हालांकि तीन मौके ऐसे भी आए जब जनता कांग्रेस को भी नकार दिया था। साल 2023 में कांग्रेस की तरफ से हनी बघेल तय उम्मीदवार हैं तो वहीं बीजेपी की तरफ से बीरेन्द्र सिंह के अलावा कई दावेदार हैं। तो वहीं जयस भी इस इलाके में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करवा रही है।
कुक्षी विधानसभा सीट के जातिगत समीकरण
अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित इस सीट पर मुद्दे और चेहरे का साथ-साथ जातिगत समीकरण साधना भी अहम है। यहां अनुसूचित जनजाति वोट निर्णायक स्थिति में हैं। ऐसे में आदिवासी बाहुल्य डही क्षेत्र जो कांग्रेस का गढ़ है। वहां के मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। हर बार कांग्रेस के उम्मीदवारों को यहां से इतने वोट मिलते आए हैं कि कुक्षी क्षेत्र के मतदाताओं का झुकाव बीजेपी के साथ होने के बाद भी कांग्रेस उम्मीदवार चुनाव जीत जाते हैं। हालांकि, पाटीदार और सिर्वी समाज भी इस इलाके में प्रभावी हैं।

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