राजधानी की जल संरचनाओं में… अतिक्रमण से मुक्ति की छटपटाहट

  • माफियाओं के कब्जों से धीरे-धीरे दम तोड़ने को हो रहे मजबूर नदी और तालाब
  • एनजीटी के आदेशों की भी उड़ाई जा रही हैं धज्जियां
  • विनोद उपाध्याय

भदभदा स्थित बड़े तालाब के किनारे जिस तरह से अवैध बस्ती को हटाया गया है, अगर ऐसी इच्छा शक्ति शहर के दूसरी जल संरचानाओं और उनके आसपास किए गए कब्जों को हटाने में भी दिखे तो राजधानी के तालाबों व नदियों को एक बार फिर नया जीवन मिल सकता है। भोपाल की पहचान ही तमाम जल संरचनाओं की वजह से झीलों की नगरी के रुप में होती रही है, लेकिन अब यह पहचान समाप्त होकर झुग्गि बस्तियों और अवैध अतिक्रमण वाले शहर के रूप में होनी शुरू हो गई है। इसके लिए न केवल माफिया जिम्मेदार है, बल्कि अफसर व राजनेता भी उससे अधिक दोषी हैं, जो उन्हे संरक्षण प्रदान कर उन्हें प्रोत्साहित करने में पीछे नहीं रहते हैं। अतिक्रमण से लेकर पर्यावरण की सुरक्षा के लिए तमाम अमला मौजूद है, जिन्हें सरकार मोटी पगार देती है, फिर भी इस पर रोक लगने की जगह समास्या बढ़ती ही जा रही है। वह तो भला एनजीटी का जिसकी सख्ती की वजह से जिम्मेदारों को बड़ा तालाब के अंदर बस्ती को हटाने का काम करना पड़ा। अब शहरवासियों को इंतजार है कि कब प्रशासन की नींद टूटे और वह कालियासोत नदी से 33 मीटर दायरे के निर्माण, नवाब सिद्दीक हसन के अंदर तक बने निर्माण, ग्रीन वुर्ज को खत्म कर निजी उपयोग करने वालों पर कब कार्रवाई करता है। यदि प्रशासन सख्त हो ईमानदारी से काम करे तो तालाब से लेकर नदी तक 3000 से ज्यादा अधिक अतिक्रमण हट सकते हैं। इससे एक बार फिर से न केवल भोपाल शहर सुंदर हो जाएगा, बल्कि पर्यावरणीय अनुकूल बन जाएगा।
कब्जों की वजह से नदी, तालाब से लेकर ग्रीन बेल्ट तक अब पूरी तरह से दम तोड़ने के करीब पहुंच चुके हैं। यह बात अलग है कि अभी प्रशासन को ऐसे कई आदेशों पर अमल करना है, जो अतिक्रमण हटाने के लिए पहले ही दिए जा चुके हैं। इसकी वजह है, शहर में अतिक्रमण हटाने की ज्यादातर कारवाईयां सिर्फ दिखावा भर बनकर रह जाती हैं। अहम बात यह है कि उन जिम्मेदारों पर कभी कार्रवाई नहीं की जाती है, जिनकी वजह से इस तरह के कब्जे होते रहते हैं। ऐसा नहीं है कि शहर में फलफूल रहीं यह अवैध वस्तियां कोई एक दिन में बसीं हैं, बल्कि इसमें लंबा समय लगता है, लेकिन नगर निगम से लेकर जिला प्रशासन तक का अमला पूरी तरह से सोया रहता है। ऐसे मामलों में जिम्मेदार सरकारी अमले पर भी कार्रवाई तय होनी चाहिए। इससे जहां सरकार को भारी फायदा होगा, वहीं पर्यावरण के साथ ही गंभीर होते पेयजल संकट तक से मुक्ति मिल सकेगी।
नहीं हटाई जा रहीं डेयरियां
एनजीटी ने शहर के अंदर संचालित 765 डेयरियों को बाहर शिफ्ट का आदेश सात साल पहले जारी किया था। वहीं डेयरियों के लिए पॉलिसी बनाने और एसटीपी बनाने के आदेश दिए हैं। निगम ने परवलिया, अरवलिया, कालापानी, ग्राम दीपड़ी, तूमड़ा, मुगालिया कोट और फतेहपुर डोबरा शिफ्टिंग के लिए चयनित किए थे। लेकिन शिफ्टिंग अभी तक नहीं हो पाई।
सीवेज फार्मिंग जारी
एनजीटी ने करीब 12 साल पहले सीवेज फार्मिंग पर प्रतिबंध लगाने के साथ इससे केवल फूल उगाने के निर्देश दिए थे। लेकिन राजधानी में पातरा नाले के आसपास अब भी खूब सीवेज फार्मिंग हो रही है।
बड़े तालाब का अस्तित्व खतरे में, रसूखदारों का कब्जा
राजधानी का लाइफलाइन कहे जाने वाले बड़े तालाब का अस्तित्व अतिक्रमण और अवैध पेड़ों की कटाई की वजह से खतरे में है। बड़े तालाब का जल भराव क्षेत्र 31 वर्ग किलोमीटर और कैचमेंट एरिया 361 वर्ग किलोमीटर है। लेकिन इसके 20 किमी कैचमेंट एरिया में दो दर्जन से अधिक अवैध शादी हाल संचालित हो रहे हैं, वही व्यापारियों ने अतिक्रमण कर यहां बड़े-बड़े गोदाम बना लिए हैं। नगर निगम के अधिकारियों से सांठगांठ होने की वजह से एनजीटी के आदेश के बावजूद इन अतिक्रमणकारियों और भू-माफिया के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।
नहीं हुई कार्रवाई  
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल बोर्ड – (एनजीटी) ने पुराने शहर में स्थित नवाब सिद्दीक हसन खां तालाब के दायरे में बसे रहवासियों के अतिक्रमणों को हटाने के आदेश दिए हैं। 31 जनवरी को प्रशासन ने अतिक्रमण हटाने की तैयारी कर ली थी। लेकिन स्थानीय विधायक आतिफ अकील ने रहवासियों के साथ कलेक्टर से समय मांगा था। जिस पर कलेक्टर कौशलेन्द्र विक्रम सिंह ने 10 फरवरी तक की मोहलत दे दी थी। लेकिन इसके बाद भी कार्रवाई नहीं हुई, कोर्ट के आदेश को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया। इसी तरह से बिल्डर व कालोनाइजर कलियासोत नदी का गला घोंट चुके हैं। अब नदी का अस्तित्व खत्म करने पर तुले हैं। शहर के उपनगर कोलार दामखेड़ा ए व बी सेक्टर हो या विरासा हाइट्स से स्वर्ण जयंती पार्क के बगल वाली सडक़ का हिस्सा हो या फिर सलैया से लेकर मंडीदीप औद्योगिक क्षेत्र। जहां-जहां से कलियासोत नदी निकली है, वहां-वहां अवैध अतिक्रमण की गिरफ्त में है। नदी के 33 मीटर दायरे से भीतर दर्जनों मल्टियां व कालोनियां विकसित हो चुकी हैं। हर तरफ बिल्डर व कालोनाइजर एनजीटी के आदेश को ठेंगा दिखा रहे हैं।
सरकार को होता है भारी नुकसान
सरकार को अतिक्रमण के चलते जहां अपनी बेशकीमती जमीन से भी हाथ धोना पड़ता है, तो वहीं कर के रुप में भी कोई आय नहीं होती है। इसके अलावा जब सार्वजनिक हित या सरकारी उपयोग के लिए जमीन चाहिए होती है, तब सरकार को अतिक्रमण हटाने पर तो राशि खर्च करनी ही होती है, मुआवजा अलग से देना होता है। इसके अलावा आसपास रहने वाले लोगों को कानून -व्यवस्था का अलग से सामना करना होता है।
एनजीटी के निर्देशों तक पर अमल नहीं
शहर के नवाब सिद्दीक हसन तालाब को अतिक्रमण से मुक्ति के लिए एनजीटी द्वारा जून 2021 में कार्रवाई के निर्देश दिए गए थे , लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होने पर एक बार फिर बीते साल 9 फरवरी को आदेश देने पड़े। इस पर 255 से अधिक निर्माण पाए गए हैं। दो बार आदेश के बाद भी अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। इसी तरह से कलियासोत नदी के बफर जोन में 33 मीटर के निर्माण को तोड़ने के निर्देश अगस्त 2023 में दिए गए थे। इसमें करीब 11 सौ अवैध निर्माण पाए गए थे, जिन्हें 15 जनवरी तक हटाकर एनजीटी में जवाब देने को कहा गया था,  लेकिन यह मामला भी जस का तस पड़ा हुआ है।
ग्रीन बेल्ट के भी हाल बेहाल
शहर भर की ग्रीन वुर्ज से 692 निर्माण अतिक्रमण हटाने के आदेश बीते साल नवंबर में दिए गए थे। इसके बाद भी उन्हें हटाने में प्रशासन ने अब तक कोई रुचि नहीं दिखाई है। जिसकी वजह से वे अब भी आदेश को मुंह चिढ़ा रहे हैं। एनजीटी ने तीन साल पहले सीवेज खुले में बहाने पर रोक लगाने के भी आदेश नगर निगम को दिए थे। दो बिल्डरों पर करोड़ों रुपए का पर्यावरण क्षति हर्जाना भी लगाया था। लेकिन हालत यह है कि अयोध्या नगर, करोंद आदि क्षेत्रों की कई कॉलोनियों में सीवेज खुले में बहाया जा रहा है।  इसी तरह से चार साल पहले अगस्त 2018 में शहर के सात प्रमुख तालाबों में सीवेज रोकने को कहा गया था , लेकिन मामला जस का तस बना हुआ है। इन तालाबों में करीब सात सौ जगह सीवेज मिलता है। हद तो यह है कि इस मामले में लापरवाही पर बीते साल सितंबर में एनजीटी नगर निगम पर 121 करोड़ की पेनल्टी तक लगा चुकी है। इसके बाद भी कोई बड़ा बदलाव होता नजर नहीं आ रहा है। एनजीटी ने स्लॉटर हाउस शहर से बाहर शिफ्ट करने के आदेश पारित किए थे। यह मामला करीब 12 साल तक चला लेकिन नगर निगम और प्रशासन इसकी जगर ही दम नहीं कर पाया। आखिरकार एनजीटी ने नो वेस्ट वाला आधुनिक स्लॉटर हाउस जिंसी में ही बनाने की अनुमति दी।

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