गंभीर अपराधों में महिलाओं को नहीं मिल पा रहा न्याय

  • मात्र 21 प्रतिशत मामलों में ही सजा

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र की आधी आबादी यानी बालिकाओं और महिलाओं के साथ अपहरण, दुष्कर्म, दुष्कर्म के प्रयास और छेड़छाड़ जैसी घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। बीते वर्ष 2024 के आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में हर दिन दुष्कर्म की 15, अपहरण व बंधक बनाने की 31 और छेड़छाड़ की 20 घटनाएं हुईं। लेकिन विडंबना यह है कि दुष्कर्म सहित अन्य गंभीर अपराधों में बेटियों और महिलाओं को न्याय नहीं मिल पा रहा है। स्थिति यह है कि लगभग 21 प्रतिशत मामलों में ही आरोपियों को सजा हो पाती है। दरअसल, प्रदेश पुलिस में लगभग 25 हजार विवेचना अधिकारी हैं, जबकि प्रदेश में लगभग पांच लाख अपराध प्रतिवर्ष कायम हो रहे हैं। इनमें 30 हजार से अधिक अपराध महिलाओं के विरुद्ध होते हैं। प्रदेश में पुलिस का स्वीकृत बल एक लाख 26 हजार का है, जबकि पदस्थ मात्र एक लाख ही हैं। विवेचना का अधिकार प्रधान आरक्षक या ऊपर के पुलिसकर्मी को रहता है। लगभग साढ़े आठ करोड़ की जनसंख्या वाले मध्य प्रदेश में बीते वर्ष नवंबर तक बालिकाओं और महिलाओं के अपहरण और बंधक बनाने के 10 हजार 400 मामले सामने आए। यानी हर दिन 31 घटनाएं हो रही हैं। कहने को तो घटना से एक महिला प्रभावित होती, पर सच्चाई यह है कि पूरा परिवार और हर वह महिला भयग्रस्त हो जाती है, जिसे घटना के बारे में पता लगता है। वर्ष 2022 से 2024 के बीच अपहरण और बंधक बनाने की घटनाएं लगातार बढ़ी हैं। प्रदेश में जनप्रतिनिधि मंच से अपराध घटने और बेटियों को आगे बढ़ाने की बात करते हैं, पर यह आंकड़े डराते भी हैं  और चेताते भी हैं।
दुष्कर्म की घटनाएं पांच हजार से ऊपर
ये तो सिर्फ अपहरण और बंधक बनाने के आंकड़े हैं। दुष्कर्म की घटनाएं लगातार बढ़ते हुए वर्ष 2024 में पांच हजार से ऊपर पहुंच गईं। सामूहिक दुष्कर्म के मामले भले ही पिछले वर्षों की तुलना में घटे हैं ,पर घटनाएं 200 से अधिक हैं। सरकार, समाज, जनप्रतिनिधि, पुलिस संबंधित विभागों को विशेष नीतियों और अभियानों के माध्यम से महिला सुरक्षा में आ रही चुनौतियां से निपटना होगा, नहीं तो दावे सिर्फ दावे रह जाएंगे।
वरिष्ठ अधिवक्ता एवं आपराधिक मामलों में जानकार अजय गुप्ता का कहना है कि भले लगता है कि मुकदमा बन गया है, पर केस को प्रमाणित करने के लिए जितने तथ्य चाहिए, पुलिस उसमें कोताही करती है। 30-40 प्रतिशत से अधिक साक्ष्य नहीं ला पाती। दूसरा, छोटा कारण यह है कि पक्षकार भी कई वजहों से समझौता कर लेते हैं। हालांकि, 80 प्रतिशत मामलों में सजा नहीं होने का कारण साक्ष्य की कमी ही देखने को मिलती है। हमारी पुलिस और जांच व्यवस्था बहुत कमजोर है।
 79 प्रतिशत मामलों में बच निकलते हैं आरोपी
 दुष्कर्म सहित अन्य गंभीर अपराधों में भी बेटियों और महिलाओं को न्याय नहीं मिल पा रहा है। स्थिति यह है कि लगभग 79 प्रतिशत मामलों में आरोपी बच निकलते हैं। इसके पीछे बड़ी वजह यह है कि दबाव में पीडि़ताएं अपना बयान बदल लेती हैं। इसके अतिरिक्त साक्ष्य संकलन की कमजोरियां और विवेचना में देरी के चलते भी पीड़िताओं को न्याय नहीं मिल पा रहा है। गृह विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2023 में गंभीर महिला अपराधों के संबंध में 7048 मामलों पर जिला एवं सत्र न्यायालयों में निर्णय हुआ। इनमें 5571 में आरोपी बरी हो गए। मात्र 1477 मामलों में ही सजा हो पाई। इस तरह कुल 21 प्रतिशत मामलों में ही सजा हुई। इसी तरह से वर्ष 2024 में जनवरी से सितंबर के बीच 4357 प्रकरणों में निर्णय हुआ। इसमें 835 में ही सजा हुई। 3522 मामलों में आरोपी बच गए यानी 19 प्रतिशत में ही दंड मिला। इनमें दुष्कर्म, सामूहिक दुष्कर्म, दुष्कर्म के बाद हत्या, हत्या, हत्या के प्रयास, एसिड अटैक, दहेज हत्या आदि मामले शामिल हैं। साक्ष्य संकलन में बड़ी कमजोरी फोरेंसिक टीम की कमी है। बड़े अपराधों में ही फोरेंसिक टीम मौके पर पहुंच पा रही है। महिला अपराधों में सजा की दर कम होने के साथ ही सरकारी प्रक्रिया में ढिलाई के चलते न्याय मिलने में भी देरी हो रही है। हाल यह है कि प्रदेश की विभिन्न लैब में चार हजार से अधिक डीएनए सैंपलों की जांच अटकी है। अभियोजन प्रक्रिया में विलंब होने पर कोर्ट को सैंपल की जांच रिपोर्ट मांगने के लिए पत्र लिखना पड़ा रहा है।
महिला सुरक्षा में चुनौतियां
महिला सुरक्षा के मामले में पुलिस को जिस संवेदनशीलता से काम करना चाहिए वह नहीं दिखता। प्रदेश में कई ऐसे उदाहरण हैं कि पीडि़ता की थाने में सुनवाई नहीं हुई। इसी माह गुना में एक दुष्कर्म पीडि़ता की सुनवाई तीन माह तक नहीं हुई तो वह आरोपियों के नाम की तख्ती गले में लटकाकर थाने पहुंची। महिला सुरक्षा के मामले पुलिस का खुफिया तंत्र कमजोर साबित हुआ है। सीधी में पिछले वर्ष वायस चेंजर एप महिला की आवाज में बात कर आरोपी ने सात लड़कियों से दुष्कर्म किया, पर पुलिस को भनक तक नहीं लगी। प्रदेश में पुलिस के एक लाख 25 हजार स्वीकृत बल में से एक लाख ही पदस्थ है , जो आवश्यकता से बहुत कम हैं। इसके ऊपर दूसरी बात यह कि पहले की तरह पुलिस अब सडक़ पर नहीं दिखती है। भोपाल, इंदौर जैसे बड़े शहरों में पुलिस के सामने छेड़छाड़ की घटनाएं हो चुकी हैं। रोकने पर परजिनों के साथ मारपीट की गई, पर पुलिस ने मामूली घटना मान लिया। यही कारण है अपराधियों के मन में पुलिस का डर नहीं है। दिसंबर 2024 में भोपाल के ईंटखेड़ी में छेड़छाड़ से तंग नाबालिग ने खुदकुशी कर ली। प्रदेश में कुल पुलिस बल में लगभग छह प्रतिशत ही महिलाएं हैं। उन्हें भी फील्ड पोस्टिंग जैसे थाना, चौकी आदि जगह पदस्थ करने की जगह लाइन या आफिस में लगाया गया है।

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