- गौरव चौहान
महिलाएं जितनी आत्मनिर्भर बनेंगी देश भी उतनी ही तेजी से आगे बढ़ेगा। खासकर ग्रामीण इलाकों में रहने वाली महिलाओं के सशक्तिकरण की आवश्यकता की जरूरत आज भी बरकरार है। ग्रामीण इलाकों में रहने वाली महिलाओं का जीवन हमेशा से पारिवारिक कामों में ही सिमट कर रह जाता है। लेकिन समय के बदलते स्वरूप और शिक्षा तकनीकी के प्रभाव ने महिलाओं को एक नई उड़ान दी है। आज गांव की महिलाएं भी घरों से बाहर निकल कर आत्मनिर्भर बन रही है। इसका असर यह देखने को मिल रहा है कि मप्र में कामकाजी महिलाओं की संख्या में अप्रत्याशित रूप से बढ़ोतरी हुई है। यह राष्ट्रीय औसत 61.6 से करीब 6 प्रतिशत से भी ज्यादा है। चीन का औसत 75.6 फीसदी है। भारत में 83.2 प्रतिशत पुरुष व 39.8 प्रतिशत महिलाएं किसी न किसी काम धंधे से जुड़े हैं। पिछले पांच सालों में इसमें काफी बढ़ोतरी हुई है। पांच वर्ष पहले 2017-18 में राष्ट्रीय औसत 53 प्रतिशत ही था। इसमें भी पुरुष 80.2 प्रतिशत तथा महिलाओं की संख्या महज 25.3 प्रतिशत थी।
गौरतलब है कि एक दशक पहले तक मप्र में महिलाएं रोजगार से काफी दूर थीं। लेकिन सरकारी योजनाओं और शिक्षा का सहारा लेकर उन्होंने आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाया। इसका परिणाम यह हुआ कि मप्र में कामकाजी महिलाओं की संख्या दिन पर दिन बढऩे लगी है। आज आलम यह है कि मप्र में 86.8 प्रतिशत पुरुष व 47.8 प्रतिशत महिलाएं किसी न किसी काम-धंधे से जुड़े हैं। सबसे अधिक संख्या महिलाओं की करीब 22 प्रतिशत बढ़ी है। मप्र में पिछले 10 वर्षों में काफी कुछ परिवर्तित हुआ है। महज पांच वर्ष पहले की ही बात करें तो मप्र में महिलाओं के रोजगार का स्तर असंतोषजनक था। 100 महिलाओं में से महज 25 महिलाओं को रोजगार मिला था, यानी 75 महिलाएं बेरोजगार थीं। उनके पास कोई भी धंधा नहीं था। काम किंतु इसमें बढ़ोतरी हुई और पांच साल में ही यह राष्ट्रीय औसत से भी उपर निकल गया।
करीब 50 फीसदी महिलाएं काम धंधे
कोरोना काल के बाद आज की स्थिति में करीब 50 फीसदी महिलाएं किसी न किसी तरह के काम धंधे, खासकर ऑफिस कार्य, कृषि, उद्योग धंधे आदि सभी तरह के कार्यों में संलग्न हैं। दरअसल, अभी हाल ही में भारत की श्रम बल सहभागिता दर (एलएफपीआर) की वार्षिक रिपोर्ट जारी हुई है। इसमें 18 वर्ष के ऊपर तथा 60 वर्ष के नीचे के पुरुष व महिलाओं के रोजगार के स्तर को दर्शाया गया है। इसी के तहत पौडियाट्रिक लेबर फोर्स सर्वे (पीएलएफएस) की भी रिपोर्ट जारी हुई। इसमें कई तरह की जानकारी दी गई है। भारत की श्रम बल सहभागिता दर (एलाएफपीआर) में बढ़ोतरी हुई है, जो 2017-18 के 53 प्रतिशत से बढक़र वर्ष 2022-23 में औसत 61.6 प्रतिशत हो गई है। इसमें पुरुषों की एलएफपीआर 83.2 प्रतिशत है और महिलाओं की 39.8 प्रतिशत है। रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं के कामकाजी बल में बढ़ती सहभागिता का पता चलता है। इसमें बढ़ती एलएफपीआर का मतलब यह भी हो सकता है कि यदि पर्याप्त रोजगार का सृजन नहीं होता है, तो रोजगार में बढ़ोतरी नहीं हो सकती। मप्र में एलएफपीआर 67.8 प्रतिशत है, जो कि राष्ट्रीय औसत से ऊपर है, लेकिन यहां पर महिला और पुरुष की एलएफबी आर में बड़ा अंतर है। इन आंकड़ों का गहराई से विश्लेषण करने पर मप्र में कामकाजी महिलाओं व पुरुषों के रोजगार की वास्तविक स्थिति और प्रदेश के आर्थिक स्वास्थ्य को समझ सकते हैं।
मप्र में 47.8 फीसदी महिलाएं कामकाजी
देश भर के एलएफपीआर की बात करें तो सबसे अधिक रोजगार हिमाचल प्रदेश में है। वर्ष 2022-23 को एक रिपोर्ट अनुसार यहा 86.2 प्रतिशत पुरुष व 76.6 फीसदी महिलाओं को रोजगार मिला हुआ है। यह देश में सबसे अधिक है। जबकि सबसे कम रोजगार लक्षद्वीप में है। यहां 81.6 प्रतिशत पुरुषों को रोजगार मिला है, जबकि महज 20 प्रतिशत महिलाएं ही रोजगार में हैं। सबसे अधिक रोजगार वाले राज्यों में दूसरे नंबर पर सिक्किम है. यहां 84.6 प्रतिशत पुरुष और 711 प्रतिशत महिलाएं रोजगार में हैं। यह औसत 18.1 प्रतिशत है। छत्तीसगढ़ तीसरे नंबर पर है। मप्र इस मामले में 9वें नंबर पर है। मप्र में 86.8 फीसदी पुरुष व 47.8 फीसदी महिलाएं किसी न किसी काम-धंधे से जुड़ी हैं। यह औसत 67.8 प्रतिशत है। महिला व पुरुषों के रोजगार के मामले में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की स्थिति कई राज्यों की स्थिति से भी खराब है। यह बिहार व दिल्ली में एक जैसा है। बिहार में रोजगार का दर 5098 जबकि दिल्ली का महज 50.4 फीसदी है। दिल्ली में महज 16 फीसदी महिलाओं को रोजगार मिला हुआ है। बिहार में यह 23.9 फीसदी है। इसी से आकलन किया जा सकता है कि देश की राजधानी दिल्ली में रोजगार का स्तर किस तरह से है। दिल्ली सबसे नीचे वाले राज्यों से महज एक कदम आगे हैं। देश के 36 राज्यों में से यह आठवें नंबर पर हैं। 8वें नंबर पर बिहार का नंबर भी आता है। बाकी सभी राज्य इससे ऊपर है। इससे पता चलता है कि उक्त राज्यों में, रोजगार प्राप्त करने की स्थिति क्या है।