भोपाल/प्रणव बजाज/ /बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश की राजनीति में खुद की दम पर जगह बनाने के प्रयासों में सालों से सक्रिय महिला नेत्रियों पर एक बार फिर नेता भारी पड़ गए हैं। संगठन से लेकर सत्ता तक में पहले खुद और अब यही नेता पार्टी की महिला कार्यकर्ताओं के हक पर भारी पड़ रहे हैं। कांग्रेस हो या भाजपा दोनों दलों के नेता कुछ भी दावे करें , लेकिन जब नेताओं के परिजनों की बात आती है तो यह दावे हवा-हवाई ही साबित हो जाते हैं। इसका बड़ा उदाहरण है प्रदेश के सोलह नगर निगमों में महापौर पदों के प्रत्याशी। इस बार भी कांग्रेस व भाजपा के नेताओं ने कुछ इसी तरह का खेल किया है। इसकी वजह से एक बार फिर से राजनिति के क्षेत्र में अपनी दम पर सक्रिय महिलाओं को निराश होना पड़ा है। दरअसल नेता नहीं चाहते हैं कि सत्ता रुपी मलाई उनके परिवार के अलावा किसी और को मिले।
प्रदेश के सोलह शहरों में भाजपा और कांग्रेस ने महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों पर जो प्रत्याशी घोषित किए हैं , उनमें एक दो को छोड़ दिया जाए तो अधिकांश सीटों पर नेताओं की पत्नियों को ही मौका दिया गया है। इस वजह से जमीन पर काम करने वाली महिलाएं इस बार फिर हाथ मलते हुए निराश रह गई हैं। अगर भाजपा की बात की जाए तो उसने सागर से संगीता तिवारी को प्रत्याशी बनाया है। उनका सक्रिय राजनीति से कोई लेना देना नहीं है। वे एक घरेलू महिला हैं। दो बार कांग्रेस से विधानसभा का चुनाव लड़ चुके उनके पति सुशील तिवारी अब भाजपा नेता हैं और वे मंत्री भूपेन्द्र सिंह के बेहद करीबी भी हैं। इसी तरह ग्वालियर से प्रत्याशी सुमन शर्मा का भी पारिवारिक बैकग्राउंड है। उनके ससुर भाजपा के पूर्व विधायक रहे हैं , तो उनके पति भी भाजपा नेता थे। यह बात अलग है कि वे खुद काफी समय से राजनीति में हैं। इसी तरह से मुरैना से प्रत्याशी बनाई गई मीना जाटव अब तक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता थीं। उनके पति रामलाल जाटव आरएसएस से करीब 25 सालों से जुड़े हैं। संघ की पैरवी पर उन्हें टिकट दिया गया है। कटनी से मेयर की प्रत्याशी बनाई गई ज्योति दीक्षित भाजपा नेता विनय दीक्षित की पत्नी हैं। वे शिक्षिका थीं। पति विनय दीक्षित विधायक संजय पाठक के करीबी माने जाते हैं। पाठक की सिफारिश पर उनका नाम फाइनल किया गया है। देवास से प्रत्याशी बनाई गई गीता अग्रवाल के पति दुर्गेश अग्रवाल विधायक गायत्रीराजे पवार के खास समर्थक हैं। दुर्गेश स्वर्गीय तुकोजी राव के समय से महल से जुड़े रहे हैं। वे उज्जैन विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं। खंडवा की अमृता यादव पूर्व विधायक स्वर्गीय हुकमचंद यादव की बहू हैं। उनके ससुर चार बार खंडवा से विधायक रह चुके हैं। पति अमर यादव नगर निगम में सभापति रह चुके हैं। बुरहानपुर की माधुरी पटेल पूर्व मेयर रह चुकी हैं पर उन्होंने राजनीति की शुरूआत पति अतुल पटेल के साथ ही की थी। अतुल पटेल यहीं से मेयर रह चुके हैं। केवल भाजपा में मालती राय को ऐसी महिला उम्मीदवार माना जा सकता है जो राजनीतिक परिवार की छाया से मुक्त हैं और उन्हें सक्रिय कार्यकर्ता होने के नाते टिकट दिया गया है।
कांग्रेस भी नहीं है पीछे
इस मामले में कांग्रेस भी भाजपा से पीछे नही है। यह बात अलग है कि कांग्रेस ने कभी भाजपा की तरह परिवार व वंशवाद को लेकर दावे प्रतिदावे नहीं किए हैं। कांग्रेस में भी अधिकांश टिकट नेताओं की पत्नियों को ही दिए गए हैं। यह टिकट तब दिए गए हैं, जबकि कुछ समय पहले ही कांग्रेस की एक बैठक में एक महिला कार्यकर्ता ने इस मामले को उठाते हुए कहा था कि जमीन पर काम हम करते हैं पर जब टिकट का मौका आता है तो नेताओं की पत्नियों को थमा दिया जाता है। उस समय पार्टी के आला नेताओं ने भरोसा दिलाया था कि आगे से पार्टी अपनी सक्रिय महिला नेताओं का भी ध्यान रखेगी। अब पार्टी द्वारा टिकट दिए जा चुके हैं जिसके बाद सामने आयी तस्वीर इस वादे से पूरी तरह जुदा बनी है। दरअसल भाजपा की जरह ही कांग्रेस में पार्टी की महिला कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ाने की बात की जाती है, लेकिन जब चुनाव में टिकट देने की बारी आती है, तो उन्हीं महिलाओं को टिकट दिया जाता है, जिनके पिता, पति या परिवार को अन्य कोई पुरुष सदस्य पार्टी में ऊंचे पद पर हो या फिर बड़ा रसूख रखता हो। इसकी वजह से अपनी दम पर राजनीति करने वाली महिलाएं खाली हाथ रह जाती हैं। कांग्रेस में उन महिलाओं को महापौर पद का टिकट दिया गया, जिनके पति या परिवार का राजनीतिक कद प्रभावशाली है। यह इससे ही समझा जा सकता है कि ग्वालियर से महापौर पद की प्रत्याशी शोभा सिकरवार के पति सतीश सिकरवार कांग्रेस विधायक हैं। यह बात अलग है कि सतीश सिकरवार 2018 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़कर हार चुके थे , लेकिन बाद में वे विधानसभा उपचुनाव के समय भाजपा छोड़ कांग्रेस में आ गए और उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के रुप में चुनाव जीतकर विधायक बन गए। कांग्रेस ने पुरानी पार्टी कार्यकतार्ओं की जगह सतीश की पत्नी को महापौर प्रत्याशी बना दिया है। इसी तरह से सागर से महापौर पद की प्रत्याशी निधि जैन के पति सुनील जैन कांग्रेस से विधायक रह चुके हैं और अब उनके भाई शैलेंद्र जैन विधायक हैं। सुनील जैन पर विधानसभा चुनाव में शैलेंद्र जैन की मदद करने के आरोप लगते रहे हैं और वे पार्टी से निष्कासित भी किए जा चुके हैं। खंडवा से प्रत्याशी आशा मिश्रा के ससुर बल्ली मिश्रा पुराने कांग्रेसी है। वे अरुण यादव की टीम में प्रदेश पदाधिकारी रह चुके हैं। उनकी वजह से ही आशा मिश्रा को प्रत्याशी बनाया गया है। भोपाल से महापौर प्रत्याशी को जब पहली बार नगर निगम से महापौर का टिकट मिला था, तब उनके देवर राजकुमार पटेल कांग्रेस से विधायक थे। अब विभाग पटेल प्रदेश कांग्रेस की महिला विंग की प्रमुख है। देवास से कांग्रेस प्रत्याशी विनोदनी व्यास के पति रमेश व्यास पुराने कांग्रेसी है। वे जिला कांग्रेस में पदाधिकारी रहे हैं। उन्हीं के कारण विनोदनी को भी टिकट मिला है।
इस तरह का दर्द
महापौर की ही तरह अब पार्षद प्रत्याशियों के चयन में भी इसी तरह का खेला करने की तैयारी कर ली गई है। इससे नाराज कांग्रेस की एक पार्षद पद की नेत्री ने तो यहां तक कांग्रेस के बड़े नेताओं से पीसीसी पहुंचकर कह दिया है कि उनको ब्लाक अध्यक्ष बनाकर 10 साल से हर कार्यक्रम में खाना खिलाने का जिम्मा दिया जाता है, हर बार पूड़ी-सब्जी बनाते और खिलाते आ रहे हैं। टिकट की बात आई तो दूसरे कांग्रेसी नेता आ गए, जबकि वे हार गए थे। अब महिला वार्ड हुआ तो अपनी पत्नी को टिकट दिलाने में लगे हैं।
16/06/2022
0
210
Less than a minute
You can share this post!