मंत्रियों की कुर्सी जाएगी या बचेगी?

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  • मिशन-2024 का रिजल्ट तय करेगा

मप्र में भाजपा ने प्रदेश की सभी 29 सीटें जीतने के लिए पूरा दमखम लगा दिया है। भाजपा के सभी प्रत्याशियों का भाग्य ईवीएम में कैद हो गया है। कौन जीतेगा, कौन हारेगा, यह तो 4 जून को पता चलेगा, लेकिन इससे पहले प्रदेश के 30 मंत्रियों की बैचेनी बढ़ गई है। इसकी वजह यह है कि मिशन 2024 का रिजल्ट मंत्रियों की कुर्सी का भविष्य तय करेगा।

गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)।
आम चुनाव 2024 के मतों की गिनती 4 जून को होगी। चुनाव परिणाम से सिर्फ मप्र की 29 सीटों पर सांसदों का भविष्य ही तय नहीं होगा बल्कि डॉ. मोहन यादव सरकार के मंत्रिमंडल पर भी असर पड़ेगा। कहा तो यहां तक जा रहा है कि लोकसभा चुनाव के परिणाम तय करेंगे कि मोहन सरकार में कौन मंत्री बना रहेगा और किसकी विदाई होगी? शायद यही वजह है कि लोकसभा चुनाव परिणाम अभी से कई नेताओं की बेचैनी बढ़ा रहा है। दरअसल, लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा आलाकमान ने स्पष्ट कर दिया था कि मप्र की डॉ. मोहन यादव सरकार के मंत्रियों को अपनी सीट पर विधानसभा चुनाव 2023 के मुकाबले ज्यादा अंतर से भाजपा उम्मीदवार को जिताना है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो इसके परिणाम भुगतने को तैयार रहें। भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार आलाकमान ने सीएम डॉ. मोहन यादव के जरिए दोनों उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला व जगदीश देवड़ा और 28 कैबिनेट मंत्री व राज्य मंत्रियों को यह स्पष्ट कर दिया था कि उनके विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के लोकसभा प्रत्याशी की जीत का अंतर बड़ा होना चाहिए। पार्टी उम्मीद कर रही है कि 30 विधायकों को मंत्री बनाए जाने से इनके विधानसभा क्षेत्र में तो भाजपा को बड़ी जीत मिलेगा।
भाजपा सूत्रों की मानें तो जिन बूथों पर वोट डाला गया है। उन बूथों पर क्या स्थिति रही? इसकी भी पार्टी जांच करेगी। ऐसा कई देखा जा चुका है कि नेता जीत तो जाते हैं, लेकिन उनके खुद के बूथ पर वे हार जाते हैं। लोकसभा चुनाव का जो परिणाम आएगा, उसका असर मंत्रियों को मंत्रिमंडल फेरबदल में दिखेगा। जिन मंत्रियों के विधानसभा क्षेत्र में पार्टी की चुनाव में अच्छी परफॉर्मेंस रहेगी, उन्हें बड़ी जिम्मेदारी मिलेगी और जिनके परिणाम खराब आएंगे, उनको नुकसान उठाना पड़ सकता है। यह भी कहा कि भाजपा आलाकमान ने मप्र के कुछ विधायकों को इशारों-इशारों में यह भी कह दिया कि यदि उनके क्षेत्र से बड़ी जीत मिलती है और पार्टी प्रत्याशी जीत जाता है तो मंत्रिमंडल फेरबदल में उनका कद जुलाई-अगस्त में बढऩा तय है। डॉ. मोहन सिंह सरकार के कई मंत्रियों के बारे में खुलकर कहा जा रहा है कि उन्होंने काम नहीं किया। सिर्फ औपचारिकता पूरी की है। उनकी बातों में अहंकार और काम में बेफिक्री सब दिखाई देती थी। कुछ तो ऐसे हैं जिनका मंत्री पद मिलते ही फोकस ही बदल गया है। अब वह केवल पार्टी के कार्यक्रमों में या सरकारी कार्यक्रमों में दिखाई देते हैं। वह कड़ी मेहनत कर रहे हैं परंतु उनका पूरा समय किसी दूसरे कामों में खर्च हो रहा है। बताने की जरूरत नहीं है, चुनाव में नेता का दिखाई देना और काम करना दोनों में बड़ा अंतर होता है। प्रदेश की 12 विधानसभा जहां सबसे कम मतदान हुआ है। जबेरा, चितरंगी, देवतालाब, त्यौंथर, सिरमौर, मनगवां, मऊगंज, सीधी, चुरहट, चंदला, गुढ एवं रहली। इन सभी में से सिर्फ एक चुरहट विधानसभा में कांग्रेस पार्टी का विधायक है। बाकी सभी सीटों पर भाजपा के विधायक हैं।

तय होगा कद और पद
भाजपा आलाकमान ने तय कर दिया है कि लोकसभा चुनाव में परफार्मेंस के आधार पर ही मंत्री, विधायक और संगठन पदाधिकारियों को तरक्की मिलेगी। लोकसभा चुनाव में हार या जीत नेताओं के राजनीतिक भविष्य पर भी असर डालेगी। चुनाव के नतीजों के अनुसार मंत्रियों के विभागों में फेरबदल किया जाएगा। लोकसभा सीट जिताने वाले मंत्री को बड़े विभाग और पार्टी के कमजोर प्रदर्शन के लिए जिम्मेदार मंत्री के पर कतरे जाएंगे। विधायकों के लिए मंत्रिमंडल में शामिल होने का भी ये बड़ा मौका माना जा सकता है। लोकसभा चुनाव के बाद होने वाले मंत्रिमंडल विस्तार में बेहतर प्रदर्शन वाले नए विधायकों को मौका दिया जा सकता है। चुनाव परिणाम के आधार पर संगठन के पदाधिकारियों समेत अन्य नेताओं का पद भी बड़ा किया जाएगा। निगम-मंडल में नियुक्ति के साथ ही उनको संगठन में बड़ा पद दिया जाएगा। सीएम ने ये भी स्पष्ट कर दिया है कि लोकसभा चुनाव के बाद निगम-मंडल, अयोग और सरकारी समितियों में कार्यकर्ताओं की नियुक्तियां की जाएंगी, इन नियुक्तियों का आधार अपनी सीट पर पार्टी के प्रदर्शन पर निर्भर करेगा।
मप्र में तीन चरणों में 21 लोकसभा सीटों पर मतदान संपन्न हो चुका है। चौथे फेज में 9 सीटों पर मतदान होना है। उसके बाद उम्मीदवारों को रिजल्ट का बेसब्री से इंतजार रहेगा। हालांकि इससे भी ज्यादा मप्र के कैबिनेट मंत्रियों को अपने-अपने क्षेत्र के लोकसभा सीट पर रिजल्ट का इंतजार है। दरअसल, लोकसभा चुनाव के बाद मप्र की मंत्रिमंडल की तस्वीर बदल जाएगी ऐसा कहा जा रहा है। लोकसभा चुनाव के ठीक बाद सीएम डॉ.मोहन यादव के मंत्रिमंडल का नए सिरे से गठन किया जा सकता है। वहीं कई दिग्गजों की मंत्री पद छिन भी सकती है। बताया जाता है कि जिस वक्त मप्र में कैबिनेट का गठन किया जा रहा था। उस वक्त कई बार मुख्यमंत्री ने दिल्ली का दौरा किया था। इसी दौरान साफ किया गया था कि मंत्रियों के विधानसभा क्षेत्र में पार्टी के लोकसभा उम्मीदवारों की जीत बड़े अंतर से होनी चाहिए। भाजपा ने शायद इसी तर्ज पर 31 विधायकों को मंत्रिमंडल में शामिल किया था। जिससे की अधिक से अधिक विधानसभा क्षेत्र कवर हो जिससे जनता भी खुश हो सके और विधायक भी लोकसभा प्रत्याशियों को जीताने में पूरी ताकत लगाएं। ऐसे में लोकसभा चुनाव का रिजल्ट मप्र के साथ-साथ कैबिनेट मंत्रियों के लिए काफी अहम होगा। क्योंकि अगर जिस विधासभा क्षेत्र के प्रत्याशी की हार होगी उन मंत्रियों की कुर्सी जा सकती है।

डॉ. मोहन की हो चुकी है तारीफ
मप्र के दौरे पर आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई सभाओं में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के कामों की जमकर तारीफ की है। दरअसल, मोहन यादव ने लोकसभा चुनाव में किसी भी नेता से ज्यादा ताकत झोंकी है। इतना ही नहीं वह मप्र के बाहर भी भाजपा के कैंपेन में लगे हुए हैं। हालांकि, पीएम नरेंद्र मोदी मोहन यादव के काम की तारीफ पहले ही कर चुके हैं। अब जब बारी मोहन यादव की आई तो उन्होंने भी मोदी की जमकर तारीफ की। पीएम मोदी के कुशल प्रबंधन से लेकर उनका पार्टीजनों लिए बेहतर व्यवहार यादव ने गिना दिया। फर्श से उठाकर अर्श तक ले जाने वाले पीएम मोदी को वे अपना बड़ा भाई निरूपित करते हुए उनसे इसी तरह का स्नेह मिलने की बात भी कहते हैं। सीएम डॉ मोहन यादव ने पीएम मोदी से बेहतर रिश्तों से लेकर उनके कार्यकाल में हुए कामों का ब्यौरा भी दिया। इस दौरान उन्होंने विपक्ष को घेरने का कोई मौका भी नहीं छोड़ा। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने कहा कि पीएम मोदी हर कार्यकर्ता को प्रोत्साहित करते हैं। उनके प्रोत्साहन से हमें ऊर्जा मिलती है। उन्होंने कहा कि पीएम का आशीर्वाद होना ही बड़ी बात है। वे छोटे भाई के तौर पर मुझे बढ़ाते हैं। सीएम मोहन यादव कहते हैं कि उनके पास काम कम, लेकिन प्रशासनिक अनुभव पहले से मौजूद हैं। दक्षता से काम करा लेना उनका स्वभाव रहा है। डॉ मोहन का मानना है कि कनेक्टिविटी के लिए इफेक्टिव रोल होना जरूरी। गरीब आदमी की प्रशासन से अपेक्षा रहती है। उनकी मदद करने से संतुष्टि मिलती है। वे यह भी मानते हैं कि लगातार काम करने से सीखने को मिलता है। सीएम यादव ने विश्वास जताया कि सबका आशीर्वाद रहेगा, तो बेहतर काम करेंगे। वे कहते हैं कि दो-ढाई साल बाद काम का मूल्यांकन करेंगे।
सीएम डॉ मोहन यादव ने कहा कि उन्होंने छिंदवाड़ा में 10 दिन और 2 रात बिताई। वहां जनता के बीच आक्रोश दिखा। उन्होंने दावा किया कि छिंदवाड़ा इस बार कांग्रेस मुक्त होगा। उन्होंने कहा कि अखिलेश, लालू यादव ने परिवारवाद को बढ़ाया है। कभी बेटे तो कभी बेटी को आगे बढ़ाते रहे। कांग्रेस में सिर्फ गांधी परिवार के पास ही कमान है। डॉ यादव ने कहा कि परिवारवाद को बढ़ावा देना घातक है। खुद के परिवार का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि वे भोपाल में और बेटा हॉस्टल में रहता है। बच्चे पढ़ रहे हैं, उन्हें राजनीति से दूर रहना चाहिए। हमने बच्चों को अच्छे संस्कार दिए हैं। सुचिता के लिए आत्म अनुशासन बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि विरासत टैक्स की बात करने वाले खुद नहीं देखते, पित्रोद जिनके गुरु हैं, उन्होंने विरासत छोड़ी थी? सीएम मोहन यादव ने कहा कि पहले दो चरण में कम वोटिंग होना बड़ा फैक्टर है। फसल कटने, त्योहारों और शादियों की वजह से कम वोटिंग हुई है। इस बार अप्रैल में चुनाव हुए, इसलिए कम मतदान हुआ है। दूसरे राज्यों से एमपी में वोटिंग संतोषजनक है। उन्होंने दावा किया कि हम सभी 29 सीटें हम जीतने जा रहे हैं। छिंदवाड़ा के गढ़ को भी हम जीतेंगे। विधानसभा चुनाव में हमें बंपर बहुमत मिला, लोकसभा चुनाव में फिर मोदी मैजिक दिखेगा। उन्होंने दिग्विजय सिंह को भी घेरते हुए कहा कि उनके गढ़ में कोई फाइट नहीं है। ऐसा कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव के दौरान कई नए नेताओं को भी मंत्री पद का ऑफर दिया गया है। अगर उनके क्षेत्र में पार्टी अच्छा प्रदर्शन करती है तो नए मंत्रियों को कैबिनेट में शामिल किया जा सकता है। वहीं जिन नेताओं को पहले से मंत्री पद मिला है उनके क्षेत्र में रिजल्ट में अच्छा प्रदर्शन होता है तो उनका कद बढ़ सकता है और उन्हें नई जिम्मेदारी भी मिल सकती है। ऐसे में लोकसभा चुनाव के बाद मप्र में कैबिनेट की तस्वीर बदलने के कयास लगने शुरू हो गए हैं। बताया जा रहा है कि जुलाई-अगस्त में कैबिनेट में फेरबदल का फैसला हो सकता है।

चुनावी परफॉर्मेंस बनेगा आधार
मप्र में लोकसभा चुनाव के इस दौर में भी मोहन कैबिनेट में बदलाव की चर्चा है। नए चेहरे कौन होंगे, इसे लेकर कयास लगाए जा रहे हैं। कई सीनियर विधायकों ने मंत्री बनने के लिए जोर लगाना शुरू कर दिया है। बताया जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में विधायकों की परफॉर्मेंस मंत्री पद का आधार बनेगी। इसे देखते हुए विधायकों ने अपने-अपने क्षेत्र से भाजपा उम्मीदवार को अच्छी लीड दिलाने के लिए चुनाव में पूरी ताकत झोंक दी। फिलहाल संभावना जताई जा रही है कि चुनाव के बाद कुछ विधायकों की एंट्री कैबिनेट में हो सकती है। भाजपा के सूत्र बताते हैं कि, गृहमंत्री शाह ने मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष सहित अन्य नेताओं को स्पष्ट शब्दों में कहा है कि पार्टी के कुछ विधायक सक्रिय नहीं हैं। हर विधायक को बता दीजिए कि लोकसभा चुनाव के परिणाम के आधार पर रिपोर्ट कार्ड बनेगा। उसके आधार पर उनका राजनीतिक भविष्य तय होगा। पार्टी की तरफ से केवल चेतावनी ही नहीं दी गई है। सूत्र बताते हैं कि राष्ट्रीय नेतृत्व हर लोकसभा क्षेत्र में बूथ स्तर तक नेताओं और कार्यकर्ताओं की सक्रियता पर नजर रखे हुए है। हर विधायक के बारे में यह जानकारी इकट्ठा की जा रही है कि वह अपने क्षेत्र में कितना सक्रिय है? इनकी इस सक्रियता की तुलना 2023 के विधानसभा चुनाव के आधार पर की जा रही है। इसके साथ ही जिन विधायकों या मंत्रियों के जिले से प्रत्याशी हारेगा, उन पर गाज भी गिरेगी।
मप्र में तीसरे चरण के लिए 9 संसदीय सीटों पर 11 मंत्रियों की साख दांव पर लगी है। मतदान बढ़ाने की जिम्मेदारी उठाने वाले नौ मंत्रियों का जादू अपने ही विधानसभा क्षेत्र में नहीं चला। 6 महीने पहले हुए पहले हुए विधानसभा चुनाव की तुलना में कृषि मंत्री एंदल सिंह कंषाना की सुमावली सीट पर 19.4 प्रतिशत कम वोट डले। वहीं कद्दावर मंत्री विजय शाह की हरसूद में 12.76 और तीन बार के विधायक राकेश शुक्ला की मेहगांव विधानसभा में 10.66 फीसदी वोट कम पड़े। सिर्फ कृष्णा गौर की गोविंदपुरा सीट पर 9.68 फीसदी अधिक वोट पड़े हैं। अपनी विधानसभा में रिकॉर्ड बनाने वाले मंत्रियों के ही विधानसभा क्षेत्रों में कम वोटिंग ने सवाल खड़े कर दिए हैं। कम वोटिंग वालों में कृषि मंत्री कंषाना टॉप पर हैं तो मंत्री विजय शाह दूसरे स्थान पर है। तीसरे नंबर पर मेहगांव से जीते राकेश शुक्ला हैं। अमित शाह की गाइडलाइन के बाद सभी ने अपने क्षेत्र में वोटिंग प्रतिशत बढ़ाने के प्रयासों के दावे किए, लेकिन इछावर में मंत्री करण सिंह वर्मा, गौतम टेटवाल, नारायण सिंह पंवार, विश्वास सारंग, प्रद्युम्न सिंह तोमर और मंत्री नारायण सिंह कुशवाहा अपनी विधानसभा में बंपर वोट कराने में बुरी तरह पिछड़ गए हैं। बता दें कि पहले दो चरणों में प्रदेश में कम मतदान प्रतिशत के बाद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मंत्रियों की क्लास ली थी और उन्हें वोटिंग परसेंट बढ़ाने के लिए कहा था। गौरतलब हो कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भोपाल में वोटिंग से एक दिन पहले कहा था कि जिस मंत्री के क्षेत्र में कम वोटिंग हुई तो उसका मंत्री पद जाएगा।

मोदी का प्रचार, बढ़ा मतदान
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तीसरे चरण की चार लोकसभा सीटों में प्रचार किया। इनमें सर्वाधिक 72.65 प्रतिशत मतदान बैतूल लोकसभा सीट में हुआ। वह जिन विधानसभा सीटों में गए, अधिकतम मतदान 68 प्रतिशत तक पहुंचा। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने खिलचीपुर (राजगढ़ लोकसभा सीट) और अशोकनगर (गुना लोकसभा सीट) में प्रचार किया। दोनों जगह मतदान प्रतिशत क्रमश: 75.39 और 71.95 रहा। विधानसभा की बात करें तो खिलचीपुर में 76.77 और अशोक नगर में 73.86 प्रतिशत निर्वाचकों ने मताधिकार का उपयोग किया। कांग्रेस के स्टार प्रचारक राहुल गांधी ने भिंड में सभा की थी, जहां तीसरे चरण में सबसे कम 54.87 प्रतिशत मतदान रहा। मुरैना में पहले प्रधानमंत्री और बाद में प्रियंका गांधी वाड्रा की सभा हुई जहां 58.22 प्रतिशत ने मतदान किया। दरअसल, प्रदेश में लोकसभा चुनाव के पहले चरण की छह सीटों पर वर्ष 2019 की तुलना में इन सीटों पर हुए औसत मतदान से 7.48 प्रतिशत और दूसरे चरण में 9.03 प्रतिशत की गिरावट आई थी। 19 मई को पहले चरण के चुनाव संपन्न होने के बाद से ही प्रदेश में हुई सभाओं में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने लोगों से अधिक से अधिक मतदान की अपील की। पार्टी पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को लक्ष्य दिया गया। कांग्रेस से राहुल गांधी, प्रियंका और प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने भी मतदाताओं से अपील की और कार्यकर्ताओं को लगाया। निर्वाचन आयोग ने चलें बूथ की ओर अभियान चलाया। इसका परिणाम यह रहा कि तीसरे चरण में पहले दो चरणों की तरह गिरावट नहीं आई। मतदान प्रतिशत 2019 के औसत 66.63 प्रतिशत से लगभग 0.58 प्रतिशत ही कम रहा। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने सिंरोज (सागर लोकसभा सीट) में प्रचार किया था। सागर लोकसभा सीट में 65.19 और सिंरोज विधानसभा सीट में 70.07 प्रतिशत मतदान रहा। 2019 के लोकसभा चुनाव में सागर में 65.51 और सिंरोज में 68.72 प्रतिशत निर्वाचकों ने मत दिया।
भोपाल लोकसभा सीट पर पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले 1.65 प्रतिशत कम वोटिंग हुई। इस बार 64 प्रतिशत वोटिंग हुई। खास बात यह रही कि इस सीट से मध्य प्रदेश शासन के दो मंत्री भी आते हैं और उन पर वोटिंग प्रतिशत बढ़ाने का दबाव था। प्रदेश में लगातार गिरती वोटिंग प्रतिशत को लेकर वर्तमान भाजपा सरकार सभी मंत्री, विधायकों को वोटिंग प्रतिशत बढ़ाने का टारगेट दिया था। भोपाल में भाजपा के दो मंत्री विश्वास सारंग और कृष्णा गौर और विधायक विष्णु खत्री, रामेश्वर शर्मा और भगवान दास सबनानी हैं। लेकिन विष्णु खत्री और रामेश्वर शर्मा ने अपने-अपने विधानसभा सीटों में रिकॉर्ड मतदान करा कर दोनों मंत्री विश्वास सारंग और कृष्ण गौर को पीछे छोड़ दिया है। वहीं पहली बार विधायक बने भगवान दास सबनानी भोपाल की सभी विधानसभा सीटों में सबसे पीछे रहे। भोपाल लोकसभा सीट पर 2019 में 65.65 प्रतिशत वोटिंग हुई थी, जो 61 साल में सबसे अधिक थी। जबकि इस बार मैच 64 प्रतिशत वोटिंग हुई है। विधानसभा वार देखें तो सबसे अधिक वोटिंग 75.67 फीसदी सीहोर विधानसभा में हुई। सबसे कम मतदान भोपाल दक्षिण पश्चिम विधानसभा में हुआ। यहां 55.07 प्रतिशत मतदाता वोट डालने पहुंचे। भोपाल में प्रशासन ने वोट प्रतिशत बढ़ाने की तमाम कोशिशें की। जिनमें लकी डॉ, व्यापारियों का बाजार बंद शामिल है। लेकिन, पिछली बार की तुलना में वोट प्रतिशत ज्यादा नहीं हो सका। अगर ऐसा होता तो भोपाल लोकसभा सीट पर 66 साल की वोटिंग का रिकॉर्ड टूट जाता। भोपाल लोकसभा सीट में कांग्रेस के दो विधायक हैं। मध्य विधानसभा सीट से आरिफ मसूद और भोपाल उत्तर से आतिफ अकील। खास बात यह रही कि आतिफ अकील ने अपने विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के दोनों मंत्रियों विश्वास सारंग और कृष्णा गौर को पीछे छोड़ते हुए 66त्न के करीब वोटिंग कराई, जबकि दोनों ही मंत्रियों के विधानसभा क्षेत्र में महज 60 प्रतिशत वोटिंग हुई है। वहीं कांग्रेस के दूसरे विधायक आरिफ मसूद के विधानसभा क्षेत्र मध्य में 56.87 फीसदी वोटिंग हुई है।

बिना मुद्दे का चुनाव, सिर्फ मोदी फेस
पिछले चुनावों के विपरीत इस बार का चुनाव मुद्दा विहीन हो रहा। 2009 और 2014 में यूपीए-1 और यूपीए-2 के दौरान भ्रष्टाचार का मुद्दा जबरदस्त उछला था। इस दौरान 2-जी स्पेक्ट्रम, आदर्श घोटाला, कॉमन वेल्थ गेम्स घोटाला समेत कई घोटालों की चर्चा होती थी। 2014 में जब नरेंद्र मोदी पहली बार प्रधानमंत्री बने, तो 2019 में पांच साल पूरे करने के बाद राफेल का मुद्दा पूरे देश में छाया। लेकिन पुलवामा की आतंकी घटना के बाद सर्जिकल स्ट्राइक और उस पर कांग्रेस की बयानबाजियों ने चुनाव का रुख मोड़ दिया। 2024 का चुनाव एक ऐसा चुनाव बना, जिसमें कोई मुद्दा ही नहीं है। सिर्फ मोदी का चेहरा है और अगर मुद्दे हैं, तो कांग्रेस उसे अब तक लोगों के बीच पहुंचा नहीं पाई। कांग्रेस हर मंच से महंगाई, बेरोजगारी, आदिवासी, दलित, सांप्रदायिकता पर बात करती रही, लेकिन ये बातें घरों तक नहीं पहुंच पाई। इन सबके जवाब में भाजपा मोदी का चेहरा सामने ले आई। मप्र की बात करें, तो जो हाल देश के बाकी हिस्सों का है, कमोबेश वही हाल मप्र का है। भाजपा को मोदी के चेहरे पर इतना भरोसा था कि टिकट मिलेगा, तो संगठन जिताकर ले आएगा। दिग्गजों को उतारने के बाद भी आखिरी तक कांग्रेस में इस आत्मविश्वास की कमी दिखती रही। चुनाव से पहले ये चर्चा काफी तेज थी कि, कांग्रेस के नेता चुनाव ही नहीं लडऩा चाहते। इस फेहरिस्त में दिग्विजय सिंह का भी नाम था। हालांकि इन चर्चाओं को उस समय विराम लग गया, जब नामों की घोषणा हुई। कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री समेत विधायक, पूर्व मंत्री व पूर्व विधायकों को चुनावी समर में उतारा। कारण शायद ये हो सकता है कि चर्चित नामों को उतारने से पब्लिक के बीच में ज्यादा मेहनत की जरूरत न हो। मप्र में हर तरफ मोदी-मोदी की गूंज है। राम मंदिर, धारा 370, हिन्दू-मुस्लिम जैसे फैक्टर ज्यादा नहीं दिखे। ये कहा जा सकता है कि मोदी के नाम ने एक वैक्यूम क्रिएट कर दिया था, लेकिन कांग्रेस के पास इस वैक्यूम का कोई जवाब नहीं था, इसलिए वोटर्स के पास विकल्प मोदी का नाम हो सकता है। अगर कांग्रेस का राष्ट्रीय संगठन मजबूती के साथ विकल्प दे पाता तो उनके लिए स्थिति थोड़ी ठीक हो पाती। फिर भी मप्र में भाजपा जिस नतीजों की उम्मीद कर रही थी, वो आसानी से उन्हें हासिल नहीं होगी। कम मतदान से साफ है कि जीत चाहे जिस दल की हो पर जीत का अंतर बहुत ज्यादा नहीं रहने वाला है।

सिंधिया की अग्निपरीक्षा
भारत में 18वीं लोकसभा के लिए निर्वाचन प्रक्रिया जारी है, लेकिन सबकी निगाहें मप्र की गुना सीट पर टिकी हुई हैं, क्योंकि यह एक हाई प्रोफाइल सीट है। यहां से केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद ना सिर्फ उन पर खुद जीतने का प्रेशर है, बल्कि अंचल की चारों सीटों पर उनकी साख दांव पर लगी हुई है। ऐसे में कहा जा सकता है कि इस आम चुनाव के नतीजे पार्टी में उनका कद तय करेंगे। मध्य प्रदेश की गुना लोकसभा सीट सिंधिया राजघराने की परंपरागत सीट मानी जाती है। इस क्षेत्र पर सिंधिया राजपरिवार का हमेशा से वर्चस्व रहा है। बीते 37 वर्षों तक यहां सिंधिया घराने की तीन पीढिय़ां जीत का सेहरा बांधती आ रहीं हैं। पहले राजमाता विजयाराजे सिंधिया, फिर उनके बेटे माधवराव सिंधिया और फिर उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया यहां से सांसद बनते रहे हैं। इस बार का लोकसभा चुनाव ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है, क्योंकि यहीं से 2019 में पहली बार ज्योतिरादित्य सिंधिया को हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद साल 2020 में वे अपने जीवन का एक बड़ा कदम उठाकर कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गये। भारतीय जनता पार्टी ने भी उन्हें मान सम्मान के साथ आगे बढ़ाया। केंद्रीय मंत्री भी बनाया। आज सिंधिया पूरी तरह भगवा रंग में रम चुके हैं। एक बार फिर वे चुनाव मैदान में हैं, लेकिन झंडा अब भाजपा का है, तो इस बार उनके सामने अपनी हार के दाग को मिटाने और अपना वर्चस्व फिर काबिज करने की चुनौती भी है।
वैसे तो साल 2002 से लेकर 2019 तक ज्योतिरादित्य सिंधिया ने गुना लोकसभा क्षेत्र का संसद में प्रतिनिधित्व किया, लेकिन मोदी लहर में 17वीं लोकसभा का आमचुनाव अपने ही पुराने समर्थक केपी सिंह जो कांग्रेस छोड़ भाजपा से टिकट ले आये थे, सिंधिया उनसे हार गये थे। इसके बाद 2020 में भाजपा में शामिल हुए तो भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें राज्यसभा में सांसद मनोनीत किया। जब सिंधिया के साथ आये समर्थक विधायक उपचुनाव में भाजपा से उतरे तो चंबल अंचल की 15 सीटों में 8 सीटें भाजपा के खाते में बढ़ी। जिसने बता दिया कि चंबल में सिंधिया की पकड़ मजबूत है। जब 2023 के विधानसभा चुनाव आये तो नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद पटेल, कैलाश विजयवर्गीय, फग्गन सिंह कुलसते जैसे केंद्र के दिग्गजों को चुनाव मैदान में उतारा गया। कयास लगाए जा रहे थे कि भाजपा चंबल से सिंधिया को भी मैदान में उतार सकती है, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। साथ आये सिंधिया खेमे के समर्थक विधायक मंत्रियों में भी पांच टिकट मिले, जीत हुई लेकिन इस वजह से कहीं ना कहीं चंबल में उनके रुतबे में कमी देखी गई। इसी वजह से क्षेत्र में सिंधिया की सक्रियता और बढ़ी और उन्हें भाजपा में लोकसभा 2024 के चुनाव में उनकी गुना लोकसभा सीट पर उतार दिया। सिंधिया ने पूरे परिवार के साथ जनता के बीच खुद को झोंक दिया। मध्य प्रदेश के चंबल अंचल में जब भी जरूरत हुई अपने प्रचार को छोड़ सिंधिया अंचल की हर सीट पर भाजपा के प्रत्याशियों के समर्थन में प्रचार के लिए पहुंचे। ज्योतिरादित्य सिंधिया का चंबल पर वर्चस्व और राज घराने से नाता चंबल अंचल की जनता से जुड़ाव को दर्शाता है। ऐसे में अब सिंधिया के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है कि वह अच्छे मार्जिन से गुना लोकसभा सीट पर जीत दर्ज करें, क्योंकि उनकी जीत या हार आने वाले समय में पार्टी में उनका कद तय करेगी। अगर अंचल की चारों सीटों पर भाजपा काबिज हुई, तब सिंधिया का वर्चस्व भाजपा में बढऩे के साथ-साथ उनके बेहतर राजनीतिक भविष्य को तय करेगा, लेकिन अगर इनमें से कुछ सीटें भाजपा के हाथ से फिसली तो इसका असर भी ज्योतिरादित्य सिंधिया के माथे आना संभव है। ऐसे में चंबल की अग्निपरीक्षा पर सिंधिया खरा उतरने के लिए पूरी ताकत लगा रहे हैं।

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