मंत्री तैयार…क्या होगा छात्र संघ चुनाव

 संघ चुनाव
  • प्रदेश में पिछले 4 साल से नहीं हुए छात्रसंघ के चुनाव

भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम। राजस्थान में छात्र संघ चुनाव की सुगबुगाहट के बीच मप्र में भी छात्र संघ चुनाव की चर्चा होने लगी है। प्रदेश में पिछले 4 साल से छात्रसंघ के चुनाव नहीं हुए हैं। हालांकि प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव का कहना है कि छात्रसंघ चुनाव होना चाहिए और प्रत्यक्ष प्रणाली से होना चाहिए। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि सरकार इस साल छात्र संघ चुनाव करा सकती है। लेकिन अभी तक न तो चुनाव की घोषणा हुई है और ना ही सरकार की ओर से संकेत मिले हैं। ऐसे में छात्र संघ चुनाव को लेकर असमंजस के बादल मंडरा रहे है।
गौरतलब है कि प्रदेश में चार साल से छात्र संघ चुनाव नहीं हो सके हैं। अंतिम बार वर्ष 2017 में अप्रत्यक्ष प्रणाली से कराए गए थे। छात्र संगठन प्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव कराने की मांग करते आ रहे हैं, लेकिन अब न तो प्रत्यक्ष से प्रणाली से हो रहे हैं और न ही अप्रत्यक्ष तौर पर। खास बात यह है कि सत्र 2022-23 के एकेडमिक कैलेंडर में अगस्त-सितंबर में छात्र संघ का गठन कराना प्रस्तावित है। उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव का कहना है कि कोविड के बाद धीरे-धीरे सत्र सामान्य हुआ है। कोविड का एक बार फिर माहौल दिख रहा है। हमारा प्रयास रहेगा कि हम नार्मल स्थिति में चुनाव कराएंगे। छात्रसंघ चुनाव मुख्यमंत्री के स्तर का विषय है। लॉ-एंड आॅर्डर से जुड़ा मुद्दा है। हालांकि, मेरा व्यक्तिगत मत है कि छात्रसंघ चुनाव होना चाहिए और प्रत्यक्ष प्रणाली से होना चाहिए। चुनाव कॉलेज-यूनिवर्सिटी एक्टिविटी के तौर पर होते हैं। चुनाव अगले सत्र में कराएंगे।
छात्रसंघ चुनाव हर साल होने चाहिए: बरकतउल्ला विश्वविद्यालय में रजिस्ट्रार रहे डॉ. एचएस त्रिपाठी कहते हैं कि छात्रसंघ चुनाव हर साल होने चाहिए और प्रत्यक्ष प्रणाली से ही होने चाहिए। अप्रत्यक्ष प्रणाली प्रभावी नहीं है। मेरिट होल्डर एक अच्छा लीडर हो, यह जरूरी नहीं है। इसलिए छात्रसंघ चुनाव के जरिए स्टूडेंट्स को लोकतांत्रिक प्रक्रिया का स्वाभाविक प्रशिक्षण प्राप्त करना है। यह नेतृत्व चुनने की ऐसी प्रारंभिक पाठशाला होती है, जो कैंपस में ही मिलती है। सवाल उठता है कि कैंपस में इलेक्शन क्यों होना चाहिए। कैंपस में इलेक्शन कोई पॉलिटिकल डेवलपमेंट नहीं है। वो स्टूडेंट्स के ओवरआल डेमोक्रेटिव डेवलपमेंट के लिए है। कई बार कैंपस में हिंसा होने के डर से छात्रसंघ चुनाव को टालने की कोशिश होती है। चुनाव की आचार संहिता की बात करें तो छात्रसंघ चुनाव में तो पब्लिक इलेक्शन से भी ज्यादा सख्त होती है। ऐसे छात्र ही छात्रसंघ चुनाव लड़ सकता है, जिसके पर क्रिमिनल केस दर्ज नहीं होना चाहिए। यदि हमारा राज्य छात्र संघ चुनाव नहीं करा पा रहे हैं, तो इसका एक अर्थ यह भी है कि हमारे कॉलेज-विश्वविद्यालय के साथ शासन-प्रशासन की भी बड़ी असफलता है। दिल्ली सहित अन्य राज्यों में भी छात्रसंघ चुनाव हो रहे हैं। अभी कॉलेज, विश्वविद्यालय से लेकर सरकार स्तर होने वाले निर्णयों में छात्रों की सहभागिता नहीं है।
राजस्थान में बैन हटा, प्रदेश में हलचल नहीं
 राजस्थान ने कोरोना के कारण छात्र संघ चुनाव पर लगे बैन को हटा दिया है, लेकिन मध्यप्रदेश उच्च शिक्षा विभाग व शासन स्तर पर इसको लेकर कोई हलचल नहीं है। छात्र संघ का गठन नहीं होने से आज उच्च शिक्षा क्षेत्र के सबसे बड़े स्टेक होल्डर्स यानी स्टूडेंट्स ही अपनी बात जिम्मेदारों के समाने रखने से वंचित हैं। खास बात यह है कि 18 वर्ष के युवा को मताधिकार दिया। यह युवा सरपंच, पार्षद, विधायक, सांसद सहित अन्य जनप्रतिनिधि चुन रहा है, लेकिन उसे मध्यप्रदेश सरकार के शैक्षणिक संस्थानों में अपना खुद का नेतृत्व चुनने की स्वतंत्रता नहीं दी जा ही है। यानी वे अपने लिए कॉलेज और विश्वविद्यालयों में यूनियन नहीं बना पा रहे हैं। वहीं प्रत्यक्ष प्रणाली से प्रदेश में आखिरी 1986-87 में चुनाव हुए थे।

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