क्या मध्यप्रदेश में दिखेगा राहुल गांधी की यात्रा का असर?

राहुल गांधी
  • यात्रा के राजस्थान में प्रवेश करते ही मंथन में जुटे रणनीतिकार

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में 382 किमी चलने के बाद राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा अब राजस्थान में प्रवेश कर गई है। कथित तौर पर यह यात्रा भले  ही  राजनीतिक नहीं थी, लेकिन इसे मिशन 2023 के मद्देनजर देखा जा रहा है। क्योंकि प्रदेश कांग्रेस ने इस यात्रा के माध्यम से सत्ता में वापसी का सपना बुन रखा है। पूरा प्रदेश संगठन इस यात्रा को चुनावी रंग देने में लगा रहा।  इस यात्रा में राजनीति के कई रंग देखने को मिले। कांग्रेस को इस यात्रा से बड़ी उम्मीद है। अब प्रदेश संगठन को इसे भुनाने के लिए रणनीति बनाकर काम करने की जरूरत है। कांग्रेसियों के अनुसार राहुल गांधी अपनी यात्रा के माध्यम से मालवा-निमाड़ की 66 विधानसभा सीटों पर तो कांग्रेस के पक्ष में माहौल बना ही गए, साथ ही प्रदेशभर में कांग्रेसियों को जागृत कर गए। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या राहुल गांधी की यात्रा मप्र में असर दिखा पाएगी? दरअसल, राहुल गांधी की यात्रा भले ही मालवा-निमाड़ तक ही सीमित रही, लेकिन इसका प्रभाव पूरे प्रदेश पर पड़ा है। इसकी वजह यह रही की यात्रा के दौरान  कई रंग नजर आए हैं। ओंकारेश्वर में नर्मदा की आरती और महाकाल मंदिर में पूजा के दौरान भक्ति भाव का रूप भी दिखा है , तो आदिवासी जननायक टंट्या मामा की जन्मस्थली में उन्होंने आदिवासियों के परंपरागत तीर-कमान पर भी हाथ अजमाया। डॉ. आंबेडकर की जन्मस्थली महू में संविधान की बात की। यानी मप्र की राजनीति की दिशा तय करने वाले तीन महत्वपूर्ण फैक्टर हिंदू, आदिवासी और दलित किसी न किसी तरह से कवर हो गए हैं। यह बात अलग है कि इस दौरान उनके द्वारा वीर सावरकर का मामला उठाकर बड़ा रिस्क भी लिया है।
यात्रा में दिखी कांग्रेस की खामियां
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को निश्चित रूप से सफलता मिल रही है लेकिन इस यात्रा से जो राजनीतिक संदेश और एजेंडा सेट किया जाना चाहिए । उस दृष्टि से यात्रा को खास सफलता नहीं मिल पा रही है। मध्यप्रदेश में तो भारत जोड़ो यात्रा कई स्थानों पर कांग्रेस नेताओं में मतभेद का कारण भी बनती हुई दिखाई दी। बुरहानपुर में निर्दलीय विधायक सुरेन्द्र सिंह शेरा और पूर्व सांसद अरुण यादव के बीच में विवाद, सार्वजनिक रूप से सामने आए हैं। इसी प्रकार इस यात्रा में कांग्रेस के कई नेताओं की भूमिका नगण्य दिखाई दी। कमलनाथ और उनके समर्थकों द्वारा यात्रा को पूरी तरह से हाईजेक कर लिया गया था। फिर भी जिस तरह से लोग यात्रा में सीधे जुड़े उससे यह साफ है कि यात्रा से कांग्रेस पार्टी को एक साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में कुछ न कुछ फायदा जरूर होगा, लेकिन यह सब इस बात पर निर्भर है कि यात्रा के दौरान बने माहौल को मध्यप्रदेश कांग्रेस के नेता किस तरह बना कर रखते हैं।
राष्ट्रीय पदाधिकारी संभालेंगे मोर्चा
अब मप्र कांग्रेस चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी में जुट गई है। अब कांग्रेस के राष्ट्रीय पदाधिकारी चुनावी जमावट के लिए मैदान में उतरेंगे। प्रदेश प्रभारी जयप्रकाश अग्रवाल, राष्ट्रीय सचिव सह संगठन प्रभारी सीपी मित्तल, कुलदीप इंदौरा, संजय कपूर और सुधांशु त्रिवेदी प्रदेश के अलग-अलग जिलों में दौरे करेंगे। इसमें जिला और ब्लाक इकाइयों के साथ बैठक करके चुनाव की तैयारियों को देखेंगे। इसके बाद संभागीय सम्मेलन का सिलसिला शुरू होगा। पार्टी पदाधिकारियों का कहना है कि जल्द ही जिला और ब्लाक अध्यक्षों की नियुक्तियां भी होंगी। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ 15 दिसंबर के बाद प्रदेश पदाधिकारियों की बैठक बुलाकर आगामी कार्ययोजना पर चर्चा करेंगे। प्रदेश कांग्रेस ने चुनाव की तैयारियां राहुल गांधी की यात्रा के पहले ही प्रारंभ कर दी है। प्रदेश प्रभारी महासचिव जय प्रकाश अग्रवाल कुछ जिलों का दौरा कर चुके हैं। अब सभी राष्ट्रीय पदाधिकारी दो माह में सभी जिलों में बैठक करके एक-एक विधानसभा क्षेत्र में तैयारियों की स्थिति देखेंगे। इसमें कार्यकर्ताओं से क्षेत्रीय समीकरणों के अलावा चुनाव लड़ने वाले दावेदारों को लेकर भी चर्चा की जाएगी। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ अपने स्तर पर सर्वे कराएंगे तो संगठन भी जानकारी एकत्र करके विधानसभा क्षेत्रवार प्रतिवेदन तैयार करेगा। इसमें वर्तमान विधायकों की क्षेत्र में सक्रियता, पार्टी के कार्यक्रमों में सहभागिता, पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं से समन्वय, मतदान केंद्र स्तर पर तैयारी आदि का ब्योरा रहेगा।
यात्रा को मिले रिस्पांस से कांग्रेसी अभिभूत
पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविन्द सिंह को तिरंगा सौंपा। पहले हिंदी भाषी प्रदेश मध्यप्रदेश में यात्रा को शानदार रिस्पांस मिला। इसके पहले कन्याकुमारी से शुरू यह यात्रा जिन राज्यों से गुजरी है, उनमें दक्षिण भारत के साथ मराठी राज्य महाराष्ट्र शामिल था। मध्यप्रदेश में कांग्रेस का जनाधार भी अन्य राज्यों की तुलना में काफी अच्छा है। यात्रा का मध्यप्रदेश में जिस गर्मजोशी के साथ स्वागत किया गया है उससे यहां पार्टी को अपना जनाधार मजबूत करने में मदद मिलेगी। यात्रा को मिले रिस्पांस से अभिभूत राहुल गांधी ने मध्यप्रदेश को अब तक की यात्रा का सबसे सफलतम प्रदेश बताया है। यात्रा के समन्वयक दिग्विजय सिंह को भी इस राजनीतिक यात्रा का लाभ मिलता दिखाई पड़ रहा हैं। 75 की उम्र में दिग्विजय सिंह जिस तरह पैदल यात्रा कर रहे हैं, वह चर्चा का विषय है, क्योंकि कांग्रेस के अन्य नेता राहुल गांधी के साथ कदमताल नहीं कर पा रहे हैं। कांग्रेस के अधिकांश नेता फोटो खिंचवाने के लिए दिन में एक दो बार यात्रा में शामिल होते हैं और उसके बाद वाहनों से यात्रा में चलते हुए दिखाई पड़ते हैं। मध्यप्रदेश के दोनों ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर और महाकालेश्वर में राहुल गांधी द्वारा दर्शन और पूजन एक अच्छा राजनैतिक संकेत है।
यात्रा में विवाद भी छाए रहे: मध्यप्रदेश में भारत जोड़ो यात्रा को कई बार विवादों का भी सामना करना पड़ा। आदिवासियों के मसीहा मामा टंट्या भील के जन्म स्थान पर भाषण में राहुल गांधी द्वारा अंग्रेजों के साथ उनकी लड़ाई और आरएसएस द्वारा अंग्रेजों का साथ देने के बयान पर भाजपा ने कड़ी आपत्ति उठाई। भाजपा की ओर से यह कहा गया कि जब मामा टंट्या को फांसी हुई थी तब आरएसएस का जन्म भी नहीं हुआ था। फिर इसको कैसे और क्यों जोड़ा गया ? पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे पर भी राहुल गांधी की यात्रा विवादों में घिरी है। छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में एफआईआर दर्ज हो चुकी है। भारत जोड़ो यात्रा को लेकर मध्यप्रदेश में सरकार और बीजेपी अति सतर्क दिखाई पड़ी, लेकिन भाजपा ने यात्रा को ज्यादा तव्वजो नहीं दी। यात्रा का प्रभाव मध्यप्रदेश में लगभग एक साल बाद होने वाले चुनावों पर क्या पड़ेगा, इसको अभी से नहीं कहा जा सकता। यात्रा से माहौल भले ही बन गया हो लेकिन इसको चुनाव तक बनाये रखना कांग्रेस के राज्य नेतृत्व के लिए बहुत कठिन होगा। मध्यप्रदेश में कांग्रेस का मुकाबला शिवराज और भाजपा के बहुत मजबूत संगठन से है। फिर भी यात्रा का कांग्रेस को कितना लाभ होगा? यह बात तो चुनाव परिणामों के साथ ही स्पष्ट होगी लेकिन यात्रा राहुल गांधी को एक जमीनी नेता के रूप में स्थापित करेगी।

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