- मुख्य सूचना आयुक्त व एकमात्र राज्य सूचना आयुक्त का कार्यकाल हुआ समाप्त
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयोग बीते रोज से पूरी तरह से निष्क्रिय हो गया है। इसकी वजह है मुख्य सूचना आयुक्त एके शुक्ला और एकमात्र राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह का कार्यकाल शुक्रवार 29 मार्च को समाप्त हो चुका है। प्रदेश मे लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लगी हुई, जिसकी वजह से चूंकि लोकसभा चुनाव समाप्त होने तक कोई नियुक्ति नहीं होगी, इसलिए कम से कम दो महीने तक आवेदनों पर सुनवाई नहीं होगी, जिसकी वजह से लोगों को संबंधित विभागों से सूचना पाने के लिए लंबा इंतजार करना होगा।
फिलहाल आयोग के पास 12 हजार से अधिक आवेदन सुनवाई के लिए लंबित हैं, नई नियुक्तियों के अभाव में आवेदनों का अंबार लगने की संभावना है। राज्य सूचना आयुक्त के 10 पदों में से नौ पद तो पहले से ही खाली पड़े हुए थे, लेकिन अब राहुल सिंह का कार्यकाल खत्म होने के बाद राज्य सूचना आयुक्त के सभी 10 पद खाली हो गए हैं। समय रहते आयोग में नियुक्तियां नहीं होने की वजह से अब सूचना आयोग इस समय दम तोड़ता हुआ नजर आने लगा है। आश्चर्यजनक तो यह है कि जब से आयोग गठित हुआ है, तब से लेकर आज तक आयोग के लिए तय सभी पद पूरी तरह से नहीं भरे गए हैं। इससे समझा जा सकता है कि सूचना आयोग को लेकर सरकारें कितनी गंभीर रही हैं। प्रदेश में नई सरकार बनने के बाद माना जा रहा था कि मोहन सरकार जल्द ही रिक्त पदों में से कुछ पदों पर आयुक्तों की नियुक्ति करेगी , लेकिन सरकार ने भी समय रहते ध्यान नहीं दिया। सामान्य प्रशासन विभाग को आयुक्तों की नियुक्ति की याद तब आयी, जब लोकसभा चुनावों के लिए आचार संहिता लगने वाली थी। जीएडी ने आयुक्तों के चयन के लिए 5 मार्च को आवेदन बुलाने के आदेश जारी किए, जिसमें 26 मार्च तक आवेदन बुलाए गए हैं। बीते कुछ समय से हालत यह हैं कि आयुक्तों की नियुक्ति नहीं होने से सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत आने वाले आवेदनों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। दरअसल, मप्र राज्य सूचना आयोग में मुख्य सचिव आयुक्त समेत आयुक्त के कुल 11 पद हैं। आयोग के गठन से लेकर अभी तक 7 से अधिक पद कभी भी नहीं भरे गए हैं। गौरतलब है कि पूर्व की शिवराज सरकार में रिक्त पदों को भरने के लिए सामान्य प्रशासन विभाग ने ऑनलाइन आवेदन बुलाए थे। जिसमें 135 से ज्यादा आवेदन आए थे। आवेदन करने वालों में सेवानिवृत अधिकारी, पत्रकार एवं अन्य लोग भी शामिल हंै। इन आवेदनों को बुलाने के बाद सरकार ने इन पर गौर ही नहीं किया, जिसकी वजह से कार्यरत आयुक्तों का कार्यकाल समाप्त होता गया और पद रिक्त होते चले गए। ।
बैठक बुलाकर कर दी थी निरस्त
पूर्व की शिवराज सरकार ने विधानसभा की चुनावी आचार संहिता लागू होने से पहले 9 अक्टूबर 2023 को सुबह 9 बजे सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के लिए बैठक बुलाई थी। इसको लेकर पूर्व नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह ने सवाल उठाते हुए मनमानी बताया था और न्यायालय की शरण में जाने की बात भी कह दी थी। उन्होंने बैठक में आने से भी इंकार कर दिया था। इसके कारण यह बैठक निरस्त कर दी गई थी। इसी दिन चुनाव आयोग ने मप्र में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया था।
आयोग नहीं है सरकार की प्राथमिकता
मप्र राज्य सूचना आयोग को प्रभावी बनाने में मप्र सरकार की कतई रुचि नहीं है। देश की सूचना आयोगों में सबसे खराब स्थिति मप्र की है। आयुक्तों के अलावा कार्यालयीन अमला भी पर्याप्त नहीं है। आयोग के गठन के बाद 2005 में राज्य तिलहन संघ के कर्मचारियों को मर्ज किया गया था। उनमें से ज्यादातर सेवानिवृत्त हो चुके हैं। अब आउटसॉर्स से काम चलाया जा रहा है। खास बात यह है कि आयोग में विधि विशेषज्ञ भी नहीं है। एक साथ 5 से ज्यादा आयुक्तों की नियुक्ति कभी भी नहीं की गई। आयोग में अन्य सुविधाओं पर भी सरकार का ज्यादा ध्यान नहीं है। फिलहाल इस मामले में सरकार का रवैया ढुलमुल बना हुआ है।