आओगे तुम जब… गाने वाला उस्ताद खुद महफिल से चला गया

स्मृति शेष: उस्ताद राशिद खान

  • पंकज शुक्ला
उस्ताद राशिद खान

उन पर लिखा एक आलेख बरबस याद आ गया। याद आया कि कुछ दशक पहले एक नायाब महफिल सजी थी। देह में तरंगित सिहरन को जानने सामने बैठे श्रोताओं की मनोदशा को समझा जा सकता है। महफिल में जुगलबंदी के लिए दो उस्ताद मौजूद थे, एक हिंदुस्तानी संगीत का सूर्य  और दूसरा उस सूर्य की प्रशंसा और संगत से चमका चंद्रमा। ऐसी महफिल जहां शास्त्रीय रागदारी अपने पूरे चरम पर थी। जैसा कि इस महफिल के सूत्रधार उस्ताद विलायत खां कहते हैं, यह ऐतिहासिक जुगलबंदी हो पाई क्योंकि, दो उस्तादों ने प्रतिस्पर्धा नहीं की बल्कि एक दूसरे की विशेषताओं में घुलमिल गए, एक दूसरे की सारी कमियों को भूलाते हुए। आगे निकलने या प्रभाव जमाने की होड़ नहीं थी बल्कि, संग-संग चलने की जुगलबंदी। एक अनुभवी दिग्गज एक उतना ही शानदान शिष्य। एक दूसरे के प्रभाव से उपजा स्नेह और विनम्रता। और इस तरह सजी एक ऐसी सभा जहां रागिनियां अपने साधकों की आराधना से प्रफुल्लित गमक रही थी। मैं जिस सभा का जिक्र कर रहा हूं उसके मुख्य किरदार थे भारत रत्न पं. भीमसेन जोशी तथा पद्म भूषण उस्ताद राशिद खान। दो उस्तादों की यह सभा संभव हो पाई क्योंकि इसका संयेाजन ख्यात सितार वादक उस्ताद विलायत खां साहब ने किया था और दूरदर्शन ने इन ऐतिहासिक क्षणों को रिकॉर्ड किया था। यू ट्यूब पर मौजूद इस सभा के वीडियो को देख-सुन कर श्रोता आज भी उन अलौकिक क्षणों को जी आते हैं। राग शंकरा और मियां की तोड़ी में हुई इस जुगलबंदी को सुन कर जो आत्मिक सुख मिलता है, उसे स्वर्गिक आनंद की उपमा ही दी जा सकती है। और केवल शास्त्रीय संगीत की महफिलों की ही बात क्यों करें साल 2007 में आई फिल्म ‘जब वी मेट’ के गीत ‘आओगे जब तुम साजना’ का जिक्र होता है तो ख्याल सुरों को याद कर खिल उठता है। उस्ताद राशिद खान आज के समय के सबसे ख्यात गायकों में एक थे और उन्होंने यह मुकाम लंबे रियाज से हासिल किया है। उनकी प्रतिभा ऐसी कि 11 साल की उम्र में कोलकाता में उस्ताद गायकों के साथ गाने का मौका मिला और नन्हे राशिद ने संगीत के दिग्गजों के सामने अपनी जगह आप बना ली। स्वयं राशिद खान अपनी उस पहली महफिल का उल्लेख करते हुए बताते थे कि 1978 में कोलकाता में हुई थी पहली कंसर्ट। पांच छह हजार लोगों के बीच गाना था। वे डरे हुए थे क्योंकि, पंडित रविशंकर के साथ गाना था। उस दिन पंडित रविशंकर का आशीष मिला। समझा जा सकता है पंडित रविशंकर के साथ 11 वर्ष के बालक ने कैसे सुर साधे होंगे। ऐसे सुर जिन्हें सुन कर पं. भीमसेन जोशी ने कहा था कि राशिद खान भारतीय शास्त्रीय संगीत का भविष्य है। 1 जुलाई 1968 को उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में जन्मे उस्ताद राशिद खान ने अपने नाना से संगीत शिक्षा ली। वे रामपुर-सहासवान घराने के प्रतिनिधि हैं, जिस घराने के नौ उस्ताद संगीतकारों को पद्म श्री से नवाजा जा चुका है। उस्ताद राशिद खान को 2022 में पद्मभूषण अवॉर्ड से सम्मानित करने से पहले पद्मश्री अवॉर्ड, संगीत नाट्य अकादमी, भारतीय संगीत अकादमी और महान संगीतकार आदि पुरस्कार प्रदान किए जा चुके थे लेकिन ,पुरस्कार तो संगीत मनीषियों से मिली सराहना, आशीर्वाद और श्रोताओं से मिला प्यार और सम्मान है। बचपन में संगीत साधना के लिए बदायूं छोड़ चुके उस्ताद राशिद खान कोलकाता में ही बस गए थे। नई पीढ़ी को संगीत की तालीम देने के लिए वे कोलकाता में ‘फिफ्थ नोट’ के नाम से अपनी संगीत अकादमी संचालित कर रहे थे। वे शास्त्रीय संगीत को आम जनता के करीब ले जाने के हिमायती थे और इसीलिए शुद्ध शास्त्रीय संगीत को आमतौर पर समझ आने वाली शैलियों के तालमेल से ऐसा सहज बनाते थे कि श्रोता मंत्रमुग्ध हो उन्हें सुनते रहते थे। वे मानते रहे कि गायकों को लोगों की पसंद के अनुसार गाना चाहिए लेकिन , साथ ही यह भी कहते थे कि वे ऐसा गाएं कि श्रोताओं को पसंद आ ही जाए। अप्रैल 2022 में भोपाल आए उस्ताद राशिद खान संगीत गुरुओं की इस बात से इत्तेफाक रखते थे, कि गुरुकुल परंपरा के कमजोर होने से अच्छे कलाकार नहीं मिल पा रहे हैं। वे कहते थे कि संगीत सीखने के लिए पहले एक अच्छा श्रोता बनना पड़ता है। आजकल गुरुकुल खत्म हो रहे हैं, इससे सीखने-सिखाने की परंपरा भी खत्म होती जा रही है। मैं हमेशा युवा पीढ़ी को यही सलाह देता हूं कि तानसेन नहीं तो कानसेन ही बन जाओ। रियाज कैसा होता है, यह जानना है तो उस्ताद राशिद खान के अभ्यास को देखा जाना चाहिए। उनके बारे में बहुत बात यह तथ्य रेखांकित किया गया है कि जब वे 13 साल के थे उस समय भुवनेश्वर में एक कार्यक्रम में प्रस्तुति देने गया था। कार्यक्रम से पहले वे कुछ सुस्ताने लगे तो मामा और गुरु निसार खां साहब ने उन्हें एक लात मारी और कहा कि सबको रियाज सुनाओ। इसके बाद राशिद खान ने सबसे बेहतरीन परफॉर्मेंस दी। तब से आज तक उन्होंने रियाज में कोई कसर नहीं छोड़ी।
यही कारण है कि जुगलबंदी में साथ चाहे पं. भीमसेन जोशी हों, उस्ताद जाकिर हुसैन हों या समकालीन राहत फतेह अली या हरिहरन उस्ताद राशिद खान अपने घराने की विशेषताओं को इस हुनर के साथ पेश करते हैं कि श्रोता वाह कह उठते हैं। विभिन्न रागों की ख्यात बंदिशों के साथ ही ‘हम दिल दे चुके सनम का ‘अलबेलो सजन आयो रे’ और जब वी मेट का ‘आओगे जब तुम हो साजना’ जैसे गीत उस्ताद राशिद खान की लयकारी तक पहुंचने का जरिया हैं। फिल्म माय नेम इज खान में उनके गाने गीत ‘अल्लाह ही रहम’ के बोल, ‘ओ हर जर्ऱे में तू है छुपा, फिर ढूंढे क्यूं तेरा पता, तू है धूप में, तू है साए में अपने में है, तू पराए में’ सुनना किसी इबादत से कम नहीं। उस्ताद राशिद खान की गायिकी का असर ऐसा होता है कि उन्हें के गाए गीत के शब्दों में कहूं तो:
तुझमे मौजूद है हर खुशी की वजह
मुझको महसूस अब ऐसा होने लगा
तू मिलता है मुझे तो मुस्कुराता हूं
अपनी तन्हाई को फिर भूल जाता हूं।

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