राजधानी के निजी स्कूलों में हर साल बढ़ा रहे फीस
विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। जबलपुर के प्राइवेट स्कूलों का फीस घोटाला सामने आने के बाद प्रदेशभर में हडक़ंप मचा हुआ है। सबकी नजर शासन और प्रशासन के रूख पर है। जानकारों का कहना है कि यदि स्कूलों की खुली जांच हो जाए तो प्रदेशभर में बड़ा घोटाला सामने आएगा। जबलपुर में हुई जांच और कार्रवाई के बाद भोपाल के लोगों में आस जगी है कि यहां के स्कूलों पर भी शायद नकेल कसी जाएगी। दरअसल प्राइवेट स्कूल जनता और सरकार को करोड़ों का चूना लगाते हैं। एक तरफ पेरेंट्स से लगभग एक दर्जन मदों में फीस वसूली की जाती है वहीं दूसरी तरफ सरकारी दस्तावेजों में पूरी कमाई को टैक्स से बचाने के लिए फर्जीवाड़ा किया जाता है। यदि प्राइवेट स्कूलों में फीस का ऑडिट कर दिया जाए तो एक बड़ा घोटाला सामने आएगा और सरकार को मोटी रकम प्राप्त होगी। गौरतलब है कि जबलपुर की तरह राजधानी भोपाल में भी बिना अनुमति निजी स्कूल हर साल दस फीसदी फीस बढ़ा रहे हैं। जबलपुर की तर्ज पर यहां भी कार्रवाई हुई तो यहां भी यह घोटाला पांच सौ करोड़ के पार जा सकता है। लापरवाही कहें या फिर गठजोड़ पर हकीकत यह है कि स्कूल शिक्षा के अफसर फीस को नियंत्रित करने वाली कमेटी तक का गठन तक नहीं कर पाए। इतना ही नहीं पिछले महीने अप्रैल में मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव के निर्देश पर बुक्स एंड बुक्स, स्नेह बुक सेंटर एमपी नगर पर जिला शिक्षा अधिकारी की टीम कार्रवाई करने पहुंची। यहां गड़बडिय़ां भी मिलीं, बावजूद इसके मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। अब मंत्री स्कूल शिक्षा उदय प्रताप सिंह ने राजधानी समेत सभी जिलों से कार्रवाई की जानकारी आयुक्त लोक शिक्षण से मांगी है।
फीस की निगरानी के लिए कमेटी ही नहीं
दरअसल प्रदेश में फीस रेगुलेशन एक्ट वर्ष 2018 में लागू हो चुका है। एक्ट के मुताबिक जिला स्तर पर कलेक्टर की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की जाना है। उक्त कमेटी की अनुमति के बिना कोई भी निजी स्कूल फीस नहीं बढ़ा सकते है। लेकिन राजधानी में ऐसी कोई कमेटी गठित नहीं है। ना ही किसी भी स्कूल ने फीस बढ़ाने के लिए किसी की अनुमति ली है। लेकिन स्कूल हर साल दस फीसदी फीस जरूर बढ़ा रहे हैं। यह फीस का घोटाला पांच सौ करोड़ के आसपास का है। इतना ही नहीं हर साल अधिकांश निजी स्कूलों व बुक सेलरों की सांठगांठ के मामले सामने आते हैं। बावजूद इसके जिला शिक्षा कार्यालय के अफसर इस पर कोई कार्यवाही नहीं करते। प्रदेश में निजी स्कूलों पर फीस वृद्धि पर लगाम लगने के लिए वर्ष 2018 में फीस रेगुलेशन एक्ट पास किया गया है। फीस रेगुलेशन एक्ट के तहत जिला स्तर पर कलेक्टर की अध्यक्षता में एक समिति गठित होगी। निजी स्कूलों द्वारा एक फीसदी भी फीस बढ़ाये जाने की अनुमति उक्त कमेटी से लेना अनिवार्य है। फीस रेगुलेशन एक्ट के तहत फीस बढ़ाने के लिए कारण सहित 90 दिन पहले प्रस्ताव देना अनिवार्य होता है। फीस अधिनियम की धारा 5 (3) (क) एवं नियम 4(1) के तहत 10 फीसदी तक फीस वृद्धि का प्रस्ताव कारण सहित बताना होगा। धारा 5 (3) (ख) एवं नियम 4(2) के तहत 10 से 15 प्रतिशत तक फीस वृद्धि का प्रस्ताव पर निर्णय लेने का अधिकार कलेक्टर की अध्यक्षता में गठित समिति के पास है। धारा 5 (3) (ग) एवं नियम 4(3), 4 (6) के तहत 15 फीसदी से अधिक फीस वृद्धि का प्रस्ताव पर निर्णय लेने का अधिकार राज्य समिति के पास है।
जांच में भी घालमेल
इस वर्ष बीते माह अप्रैल माह में मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव के निर्देश पर निजी स्कूलों व बुक सेलरों की सांठगांठ से चल रहे कमशीनखोरी के खेल को रोकने के लिए प्रशासन ने कार्यवाही शुरू की। कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह के निर्देश पर एसडीएम एमपी नगर एलके खरे की टीम ने एमपी नगर स्थित बुक्स एंड बुक्स और न्यू स्नेह बुक सेंटर पर छापा मारा था। दुकान पर उपस्थित अभिभावकों-बच्चों से बातचीत व जांच में सामने आया कि न्यू स्नेह बुक सेंटर पर 11 और बुक्स एंड बुक्स पर 5 स्कूलों की बुक्स, कोर्स और अन्य सामान दिया जा रहा है। इस दौरान अभिभावकों ने जांच टीम को बताया कि स्कूल प्रबंधन ने उन पर तय दुकानों से बुक्स, ड्रेस और अन्य सामान खरीदने के लिए दबाव बनाया गया था। जांच के बाद कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह ने सभी स्कूलों व दोनों बुक सेंटरों को नोटिस जारी करने के निर्देश दिए थे। जब पालक महासंघ के पदाधिकारी कलेक्टर से मिलने पहुंचे, तो सामने आया कि डीईओ अंजनी कुमार त्रिपाठी ने कुछ ही स्कूलों को नोटिस जारी किए। डीईओ किताबों के संबंध में भी कलेक्टर के सवाल पूछने पर संतोषजनक जानकारी नहीं दे पाए। जिस पर कलेक्टर ने डीईओ त्रिपाठी को जमकर फटकार लगाई थी। मई का महीना भी लगभग बीत जाने के बाद भी अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की गई है। राजधानी में तीन-चार ही बड़े बुक सेलर है, जोकि पूरे मार्केट पर कब्जा रखते हैं। यही बुक सेलर स्कूलों में सेटिंग कर अपनी प्रिटिंग प्रेस में किताबों को छपवाते हैं और महंगे दामों पर अभिभावकों को बेचते हंै। किताबों का यह कारोबार लगभग सौ करोड़ के आसपास का है।