जब अफसरों ने करा डाली प्रदेश सरकार की किरकिरी

प्रदेश सरकार

केन्द्र से मंजूर हुए प्रोजेक्ट तक नहीं थी जानकारी

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश की अफसरशाही जो करे सो कम है। अफसरशाही की वजह से गाहे -बगाहे प्रदेश सरकार की किरकिरी होती रहती है। ऐसा ही वाकया हाल ही में उस समय हुआ जब प्रदेश के एक दिनी दौरे पर केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बीते रोज आयी। इस दौरान उनके द्वारा मंत्रालय में मप्र वित्त विभाग के अधिकारियों और निर्माण कार्यों से जुड़े विभागों के अफसरों की बैठक ली , जिसमें अफसरशाही की कलई पूरी तरह से खोल कर रख दी।
इस बैठक में कई बार ऐसे मौके आए जब वहां मौजूद अफसरों को न केवल बगलें झांकने पर मजबूर होना पड़ा बल्कि कई मामलों में तो उन्हें डॉट तक खानी पड़ी। इसकी वजह थी बैठक  में आधी अधूरी जानकारी के साथ मौजूद होना। दरअसल वित्त मंत्री तो पूरी जानकारी के साथ अपडेट थीं , लेकिन अफसरों ने तो हद ही कर दी थी, उन्हें यह तक मालूम नहीं था कि केन्द्र सरकार द्वारा प्रदेश के लिए कौन सी योजना स्वीकृत की गई है।
 कई मामलों में अफसरों की आधी अधूरी व गलत जानकारी पर न केवल वे नाराज हुईं , बल्कि स्वीकृत योजना तक की जानकारी उनके द्वारा दी गई। इसकी वजह से बैठक में मौजूद प्रदेश के आला अफसर हतप्रभ रह गए। बैठक में अलग-अलग योजना में पैसा मांग रहे अफसरों से जैसे ही वित्त मंत्री ने पूछा की मप्र में नमामि गंगे योजना से जो एक प्रोजेक्ट मंजूर हुआ है, उसके बारे में बताया जाए, जिस पर अफसर चुप्पी साधने को मजबूर हो गए। हालांकि इस दौरान बताया गया कि मप्र से गंगा नहीं निकलती और कोई प्रोजेक्ट भी नहीं मिला। जवाब सुनकर सीतारमण ने अपने स्टॉफ से कहा, ह्यदिल्ली पूछकर बताओ। पांच मिनट बाद ही उन्होंने मप्र के अधिकारियों को बता दिया कि ग्वालियर में मुरार नदी के लिए एक योजना स्वीकृत कर नमामि गंगे योजना से 39.24 करोड़ रुपए दिए गए हैं। उल्लेखनीय है कि वित्तमंत्री नियमित विमान सेवा से भोपाल आने वाली थीं, लेकिन सीएम ने विशेष विमान से उन्हें बुलवाया। इसका फायदा यह हुआ कि वे ढाई घंटे अतिरिक्त मप्र में रहीं, जिससे उनकी अधिकारियों के साथ बैठक भी हो गई।
केन्द्र की मदद का दिया भरोसा
बैठक में वित्त विभाग के अपर मुख्य सचिव अजीत केसरी ने प्रेजेंटेशन देते हुए केंद्र से जुड़ी स्कीमों के साथ अन्य मदों में राशि देने की मांग की। इस पर वित्त मंत्री ने कहा कि सिर्फ लेना ही नहीं, देना भी है। उन्होंने कहा, ब्यूरोक्रेट्स उन्हें पसंद हैं, क्योंकि वे समझदार होते हैं। लेकिन उन्होंने यह कहते हुए नसीहत भी दे डाली की वे सीधे की जगह बातों को घुमा-घुमाकर बताते हैं। केंद्रीय विशेष सहायता को लेकर ऊर्जा सचिव संजय दुबे ने जब देनदारियों को मामला उठाया तो वित्त मंत्री ने कहा कि विशेष सहायता स्कीम एक साल के लिए नहीं है , बल्कि उसकी अवधि चार साल तय की गई है। आप अपने सीएम को भी सही बात नहीं बताते हैे। उन्होंने वित्त मामलों में प्रदेश की तारीफ करते हुए कहा कि आप लोग हमारे हिसाब से प्रपोजल बनाकर भेजें तो केन्द्र पूरी मदद करेगा।

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