- नौकरी भी गई…राजनीति भी खत्म
- गौरव चौहान
राजनीति की चाह में सरकारी नौकरी को लात मारने वाली पूर्व डिप्टी कलेक्टर निशा बांगरे का कुछ ही महीनों में राजनीति से मोह भंग हो गया है। अब वे फिर से सरकारी नौकरी करना चाहती हैं। निशा बांगरे ने कांग्रेस के टिकट से चुनाव लडऩे के लिए डिप्टी कलेक्टर पद छोड़ा था, लेकिन अब वह फिर सरकारी नौकरी करना चाहती हैं। विधानसभा और लोकसभा चुनाव का टिकट न मिलने के बाद उनका राजनीति से अब मोह भंग हो गया है। उन्होंने शासन से अपना पद वापस मांगा है। निशा ने मुख्य सचिव को पत्र लिखा है, जिसमें इस बात का जिक्र किया है कि उन्हें डिप्टी कलेक्टर का पद वापस चाहिए। लेकिन सूत्रों का कहना है कि अब उनकी नौकरी में वापसी की संभावना खत्म हो गइ है। ऐसे में लोग सवाल कर रहे हैं कि अब तेरा क्या होगा निशा बांगरे…? बता दें कि बांगरे पर राजनीति का नशा इस कदर सवार था ,की इस्तीफा स्वीकार कराने के लिए निशा बांगरे ने तत्कालीन शिवराज सरकार के सामने बड़ा आंदोलन खड़ा कर दिया था। बैतूल से भोपाल तक पदयात्रा निकाली थी। इस दौरान उनकी भोपाल में बोर्ड ऑफिस पर बाबा साहब भीवराव अंबेडकर प्रतिमा के पास पुलिस से नोकझोंक भी हुई थी, जिसमें निशा के कपड़े भी फट गए थे और जेल भी जाना पड़ा था। सही समय पर उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं हुआ और कांग्रेस ने बैतूल की अमला सीट से प्रत्याशी घोषित कर दिया था। इसके बाद निशा बांगरे का इस्तीफा स्वीकार हुआ था। हाल ही में बांगरे को कांग्रेस ने प्रदेश प्रवक्ता बनाया था, लेकिन अब वे फिर सरकारी नौकरी में जाना चाहती हैं। वहीं कभी भाजपा को संविधान विरोधी बताकर कांग्रेस में शामिल होने वाली निशा अब कांग्रेस पर आरोप लगा रही हैं। कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद वे भाजपा में जाने को तैयार हैं। भाजपा की न्यू ज्वॉनिंग टोली के पदाधिकारी के अनुसार अभी निशा बांगरे से कोई चर्चा नहीं हुई है। न ही इस मामले में कोई विचार किया है। हालांकि निशा के भाजपा में शामिल होने के पीछे यह वजह बताई जा रही है कि इस तरह नौकरी में वापसी में आसानी होगी। प्रदेश प्रवक्ता बनने के बाद उनके द्वारा कांग्रेस के खिलाफ बयानवाजी शुरू कर दी गई और कांग्रेस को अंबेडकर विरोधी बताते हुए उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
नौकरी में वापसी का कोई प्रावधान नहीं
राजनीति के लिए शासन-प्रशासन से लडक़र डिप्टी कलेक्टर की नौकरी से इस्तीफा दे चुकीं बांगरे ने कांग्रेस पर गंभीर आरोप लगाते हुए पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। इससे पहले वे नौकरी में वापस आने के लिए मप्र की मुख्य सचिव वीरा राणा को पत्र लिख चुकी हैं। सिविल सेवा नियम के अनुसार इस्तीफा स्वीकार होने के बाद फिर से नौकरी में वापसी का कोई प्रावधान ही नहीं है। मप्र में अभी तक किसी भी प्रशासनिक अधिकारी को राजनीतिक कारणों से नौकरी छोड़ने पर इस्तीफा मंजूर होने के बाद वापस नौकरी नहीं मिली है। ऐसे में निशा बांगरे के मामले में भी वापस नौकरी मिलने की संभावना नहीं है। गौरतलब है कि बांगरे ने छतरपुर जिले में लवकुशनगर एसडीएम रहते सितंबर 2023 में नौकरी से इस्तीफा दे दिया था। सरकार ने इस्तीफा मंजूर नहीं किया, तो उन्होंने बैतूल से लेकर भोपाल तक पदयात्रा निकाली। भाजपा सरकार पर महिला विरोधी होने के गंभीर आरोप लगाए। इस्तीफा मंजूर कराने उच्च न्यायालय तक पहुंची। न्यायालय के दखल के बाद सरकार ने 22 अक्टूबर 2023 को निशा का इस्तीफा मंजूर कर लिया था। निशा का मामला राजनीतिक और चुनाव से जुड़ा होने की वजह से इस मामले में सरकारी अधिकारी अधिकृत तौर पर बोलने से बच रहे हैं। हालांकि सिविल सेवा नियम के अनुसार एक बार इस्तीफा मंजूर होने के बाद फिर से उसी पद पर नौकरी में लौटने की संभावना पूरी तरह समाप्त रहती हैं। अखिल भारतीय सेवा नियम, 1958 के रूत 5 क्लॉज ए के मुताबिक, यदि इस्तीफा स्वीकार नहीं हुआ है तो 3 महीने के भीतर इस्तीफा वापस लिया जा सकता है। इस्तीफा मंजूर होने के बाद पद पर वापस नहीं आ सकते हैं। हालांकि कैबिनेट को अधिकार है, लेकिन कैबिनेट का फैसला दूसरे मामलों में नजीर बन जाएगा। ऐसे में कैबिनेट भी ऐसे फैसला लेने से बचेगी।
कांग्रेस पर लगाया गंभीर आरोप
भारत रत्न डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की जयंती पर पूर्व डिप्टी कलेक्टर निशा बांगरे ने कांग्रेस के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी को भेजे दो पेज के इस्तीफे में कांग्रेस पर वादा खिलाफी समेत कई आरोप लगाए हैं। उन्होंने कांग्रेस को जलता हुआ घर बताया। साथ ही कहा कि कांग्रेस ने कभी बाबा साहब को टिकट नहीं दिया, बल्कि उनके खिलाफ उम्मीदवार खड़े करके उन्हें चुनाव में हरा दिया। कांग्रेस ने न्याय तब भी नहीं किया था और कांग्रेस अब भी न्याय नहीं कर पा रही है। भारतरत्न डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी की मानसपुत्री होने के नाते बाबा साहब हमेशा मेरे प्रेरणास्त्रोत रहे हैं। उनके बताए गए मार्ग पर चलकर उच्च शिक्षा अर्जित कर मैंने इंजीनियर, डीएसपी और डिप्टी कलेक्टर जैसे राज्य प्रशासनिक पदों का दायित्व निर्वाह किया है। बाबा साहब अंबेडकर ने संसद की ओर इशारा कर हमें इंगित किया है कि मेरे समाज के लोगो संसद रूपी मंदिर में पहुंचकर राजनीतिक हिस्सेदारी अर्जित करो और वंचित वर्ग की आवाज बनो। उनके इस इशारे को आत्मसात करने के लिए मैंने राज्य प्रशासनिक सेवा का सर्वोच्च पद त्याग दिया। मैं उस समय यह समझती थी कि कांग्रेस पार्टी से चुनाव लड़कर समाज के शोषित पीड़ित और वंचित लोगों का प्रतिनिधित्व कर बाबा साहब के सपनों को साकार कर सकूंगी।
टिकट का वादा कर दिलवाया इस्तीफा
पूर्व प्रशासनिक अधिकारी निशा बांगरे ने पूर्व सीएम कमलनाथ को लेकर कहा कि जब कमलनाथ को टिकट ही नहीं देना था, तो फिर इस्तीफा क्यों दिलवाया। पहले विधानसभा चुनाव में टिकट का वादा किया था और बाद में लोकसभा चुनाव में टिकट देने का वादा किया था लेकिन टिकट नहीं दिया। जब टिकट नहीं देना था तो फिर सर्विस से इस्तीफा क्यों दिलवाया। निशा ने कहा कि कमलनाथ ने महिला और दलित समाज का अपमान भी किया है। बांगरे ने कहा कि पिछले छह महीने से कांग्रेस की नीयत को करीब से आंकलन कर मैने यह पाया कि कांग्रेस पार्टी ने मुझे विधानसभा में टिकट देने का वादा किया। 229 सीटों पर प्रत्याशी घोषित किए और एक सीट आमला मेरे लिए होल्ड पर रखने का केवल दिखावा कर समाज का वोट बटोरना चाहा एवं खुद षड्यंत्र कर मुझे चुनाव लडऩे से रोका। ये मेरे लिए एक धक्का है। मेरे परिवार को लगता है कि मेरे साथ धोखा हुआ है। मुझे भी लगता है कि कहीं न कहीं गलत तो हुआ है। अन्याय हुआ है। अगर समय पर इस्तीफा स्वीकार नहीं करना अन्याय है, तो यह भी एक तरह का अन्याय है। उन्होंने मेरा करियर खराब किया है।