
- धार्मिक अनुष्ठानों का हो रहा है वैज्ञानिक अध्ययन
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। देश में अक्सर अच्छी बारिश के लिए यज्ञ करने की परंपरा है। बारिश के लिए यज्ञ कितना प्रभावी है और इसके बाद कितनी बारिश होगी इस धार्मिक अनुष्ठान का वैज्ञानिक अध्ययन महाकाल की नगरी उज्जैन में किया जा रहा है। सुवृष्टि (पर्याप्त बारिश) के लिए महाकाल मंदिर के आंगन में हो रहे सौमिक अनुष्ठान(सोमयज्ञ) के बाद कितने प्रतिशत बारिश की संभावना है, इसका पता लगाने के लिए विज्ञानियों की टीम उज्जैन पहुंच गई है। यज्ञ स्थल पर हवा का दबाव, आद्र्रता, तापमान, कार्बन व गैसों की स्थिति का पता लगाने के लिए अलग-अलग यंत्र लगाए गए हैं। छह दिन के अनुसंधान के बाद विज्ञानी बता पाएंगे की हवा के कण बारिश के लिए कितने प्रतिशत तक तैयार हुए हैं। देशभर में अच्छी बारिश के लिए उज्जैन में 2 राज्यों से आए 25 पुजारी अनुष्ठान में जुटे हैं। वहीं, इस पर रिसर्च के लिए मौसम वैज्ञानिक और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटिरियोलॉजी, भोपाल (आईआईटीएम) के छात्र भी मौजूद हैं। वे अपने बड़े-बड़े इंस्टूमेंट्स के जरिए यज्ञ से उठने वाली ज्वाला से निकले पार्टिकल की पड़ताल करेंगे। देखेंगे कि इस तरह के अनुष्ठान से वायुमंडल में क्या बदलाव आता है? क्या बारिश के लिए इस तरह के यज्ञ कारगर सिद्ध होते हैं? महाकाल मंदिर की पार्किंग के अन्न क्षेत्र के पास 24 से 29 अप्रैल तक 6 दिन सौमिक सुवृष्टि अनुष्ठान हो रहा है। महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान के सहयोग से चल रहे इस अनुष्ठान में महाराष्ट्र और कर्नाटक के 25 पुजारी शामिल हैं। महाकाल मंदिर के साथ ये अनुष्ठान सोमनाथ मंदिर में भी चल रहा है।
हवा में मौजूद कण भाप से जम जाते हैं
उज्जैन में पहली बार ऐसा हो रहा है कि किसी अनुष्ठान का मौसम विभाग के वैज्ञानिकों की टीम और आईआईटीएम से जुड़े 10 स्टूडेंट्स रिसर्च कर रहे हैं। मध्यप्रदेश विज्ञान परिषद के महानिदेशक डॉ. अनिल कोठरी के मुताबिक हम सौमिक सुवृष्टि अनुष्ठान का पहली बार अनुसंधान कर रहे हैं। भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान, पुणे (आईआईटीएम) के विज्ञानी यांग लियान ने बताया कि सोमयज्ञ के प्रभाव से हवा में मौजूद कण भाप से जम जाते हैं। आगे चलकर यह कण बारिश की बूंद बन जाते हैं और इसी से बारिश होती है। सोमयज्ञ का विज्ञान है कि यह हवा के कणों को नमी युक्त कर बारिश के उपयुक्त बनाता है। बादल की दो प्रकृति होती है। एक बादल ऐसे कणों से बने होते हैं, जो पानी को शिथिल कर देते हैं। दूसरे बादल पानी को खींचने वाले कणों से बने होते हैं, जो बारिश कराते हैं। ऐसे में बादल की प्रकृति को जांचने के लिए भी एक यंत्र लगाया हुआ है। एक यंत्र बारिश के कणों की संख्या पता लगाने के लिए भी लगाया गया है। उत्तम बारिश के लिए वायुमंडल में मौजूद गैसों का भी विशेष प्रभाव है। यज्ञ के प्रभाव से किस प्रकार की गैस में वृद्धि हुई है। इसका पता लगाने के लिए भी यंत्र लगाए गए हैं। इन यंत्रों के माध्यम से सीओ, सीओ-2 तथा मिथैन गैस की मौजूदा स्थिति पता की जाएगी। विज्ञानियों की टीम में डॉ. सचिन के फिलिप, स्टेनी बेनी आदि शामिल हैं।
वायुमंडल में हर परिवर्तन की जांच
तेथर सोन्डे मशीन में एक बलून को 500 मीटर, 200 मीटर और 100 मीटर की ऊंचाई पर भेजकर वायुमंडल की जानकारी हासिल की जाएगी। इसमें प्रेशर टेम्परेचर भी शामिल है। इससे पता लगाया जाएगा कि यज्ञ से पहले और बाद में वायुमंडल में कौन सी गैस थी? अनुष्ठान शुरू होने के बाद क्या-क्या परिवर्तन आए? जिसमें वायुमंडल में उपस्थित नाइट्रोजन ऑक्साइड, नाइट्रिक ऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, ओजोन, सल्फर डाइऑक्साइड जैसी गैसों का पता लगाया जा सकेगा। पार्टिकुलेट मैटर 2.5 और 10 की जानकारी भी मशीनों से ली जा रही है। वैज्ञानिकों ने बताया कि सभी मशीनों से हवा की दिशा, गति, तापमान, दबाव, रेडिएशन के पैरामीटर 24 घंटे ईमेल पर मिलते रहते हैं। ये डेटा एक जगह इक_ा कर टेस्टिंग की जाएगी, जिसके बाद उस पर रिसर्च होगी। भारतीय मौसम विभाग ने इस बार मध्यप्रदेश में मानसून के सामान्य से बेहतर रहने की उम्मीद जताई है। अनुमान के मुताबिक, एमपी में 104 से 106 प्रतिशत यानी, औसत 38-39 इंच बारिश हो सकती है। जबलपुर-शहडोल संभाग में सबसे ज्यादा पानी गिरेगा, जबकि ग्वालियर, चंबल, इंदौर, उज्जैन और भोपाल संभाग में भी कोटा फुल हो सकता है।