श्रीमंत की शेजवलकर से दूरी के क्या हैं मायने

श्रीमंत

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश का ग्वालियर अंचल ऐसा हिस्सा है, जहां से भाजपा के कई दिग्गज नेता आते हैं। इसकी वजह से यह अंचल चर्चा में तो हमेशा बना ही रहता है, लेकिन खास बात यह है कि अब यह अंचल इन नेताओं की वजह से अधिक सुर्खियों में रहता है। इन चर्चाओं के केंद्र में केंद्रीय मंत्री श्रीमंत रहते हैं। श्रीमंत के हाल ही में समाप्त हुए पांच दिवसीय दौरे के दौरान जिस तरह से उनकी पार्टी सांसद विवेक शेजवलकर से दूरियां बनी रहीं उसके राजनैतिक निहितार्थ तलाशे जाने लगे हैं।  श्रीमंत का यह दौरा इतने दिनों का लंबे समय बाद हुआ है।
इस दौरान वे लगभग एक दर्जन से अधिक राजनीतिक, प्रशासनिक व सामाजिक आयोजनों में शामिल हुए। उनकी इस तरह की ग्वालियर में लगातार बढ़ रही सक्रियता से कयास लगाए जाने लगे हैं कि वे 2024 में ग्वालियर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी तो नहीं कर रहे हैं। श्रीमंत के इस दौरे की खास बात यह रही कि उनके तमाम कार्यक्रमों से स्थानीय भाजपा सांसद विवेक शेजवलकर पूरी तरह से दूर ही रहे। फिर चाहे मामला कलेक्ट्रेट में आहूत नगर विकास की समीक्षा बैठक हो या फिर महत्वाकांक्षी योजना मल्टीलेवल पार्किंग का लोकार्पण समारोह। इसकी वजह से यह माना जाने लगा है कि श्रीमंत अगले लोकसभा चुनाव में ग्वालियर सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। इसके पीछे की वजह बताई जा रही है कि अगले लोकसभा चुनाव तक शेजवलकर 75 साल की आयु को पार कर जाएंगे। भाजपा पहले ही इस उम्र के लोगों को टिकट न देने की परंपरा बना चुकी है। पार्टी द्वारा अपने उम्रदराज नेताओं को पहले से ही मार्गदर्शक मंडल में डालने की परंपरा शुरू कर चुकी है। इस परंपरा के चलते मौजूदा सांसद शेजवलकर के विकल्प के रुप में श्रीमंत को ही पार्टी सबसे अधिक मुफीद चेहरा मान रही है। अपने इस दौरे में जिस तरह से श्रीमंत ने रानीमहल में भाजपा के पूर्व पार्षदों की बैठक लेकर उन्हें आगामी नगर निगम चुनाव के लिए टिप्स दिए, उससे वहां मौजूद भाजपा के पुराने नेताओं को लगने लगा है कि आगामी निगम चुनाव में टिकट वितरण में भी उनकी बड़ी भूमिका रहने वाली है। दरअसल श्रीमंत के कांग्रेस छोड़ने के साथ ही कांग्रेस के करीब दो दर्जन पूर्व पार्षद भी भाजपा में शामिल हो गए थे। कहा जा रहा है कि वे इस आशा में भाजपा में श्रीमंत के साथ आए थे कि महल के प्रति वफादारी उन्हें नगर सरकार में शामिल होने के लिए टिकट दिला देगी। अब इस तरह की संभावनाएं अधिक हो गई हैं। इसकी वजह है सत्ता के बाद अब भाजपा के संगठनात्मक ढांचे में भी उनकी वजनदारी दिखना शुरू हो चुकी है। यह बात अलग है कि लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा को मिशन 2023 की चुनावी अग्निपरीक्षा से गुजरना है। ग्वालियर जिले की चार विधानसभा सीटों पर इस समय कांग्रेस के विधायक हैं। इसमें श्रीमंत के महल वाली ग्वालियर पूर्व सीट भी शामिल है। यही वजह है कि अब श्रीमंत अपने समर्थकों को आगामी चुनाव में इन सीटों पर कमल खिलते देखने का लक्ष्य दे चुके हैं।
फिर तीन दिन के प्रवास पर आ रहे श्रीमंत भाजपा में आकर केन्द्रीय मंत्री बनने के बाद से श्रीमंत लगातार प्रदेश के साथ ही ग्वालियर में सक्रिय बने हुए हैं। वे लगभग हर माह ग्वालियर अंचल में प्रवास कर रहे हैं। इस माह उनका अब दूसरा तीन दिवसीय दौरा 17 से 19 दिसंबर तक का प्रस्तावित है। इस प्रवास के समय वे  शहर भ्रमण कर विकास योजनाओं की जमीनी हकीकत का पता करेंगे। यह बात अलग है कि श्रीमंत द्वारा सार्वजनिक रुप से गुटबाजी को पीछे छोड़कर सभी को साथ लेकर चलने की कवायद की जा रही है। इसका उदाहरण है शेजवलकर की गैर मौजूदगी के बाद भी श्रीमंत द्वारा कई बार समीक्षा बैठक से लेकर मल्टीलेवल पार्किंग के कार्यक्रम तक में उनका कई बार नाम लेते हुए विकास कामों को लेकर उनके प्रयासों की सराहना करना। फिलहाल यह तो तय है कि ग्वालियर में भाजपा गुटों में दिख रही है। एक खेमे में पुराने भाजपाई हैं तो दूसरे खेमे में श्रीमंत के साथ केसरिया बाना ओढ़ने वाले उनके समर्थक हैं।

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