भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। वैसे तो अगर बीच में करीब 15 माह का समय छोड़ दिया जाए तो मध्यप्रदेश में भाजपा लगातार चार बार से सत्ता में बनी हुई है, लेकिन उसे अब अहसास हो गया है कि अगले चुनाव में कांग्रेस से कड़ी चुनौती मिल सकती है। यही वजह है कि भले ही आम विधानसभा चुनाव में 18 माह का समय है, लेकिन सत्ता व संगठन में अभी से मतदाताओं को लुभाने के लिए चिंतन व मनन का दौर शुरु हो गया है। प्रदेश में करीब दो दशक से सत्तारूढ़ भाजपा ने मिशन-2023 की तैयारियां दो साल पहले ही शुरू कर दी हैं। इन तैयारियों के माध्यम से प्रदेश भाजपा संगठन द्वारा तैयार हैं हम का संदेश देने का प्रयास किया जा रहा है। लंबे समय बाद प्रत्यक्ष रूप से हुई भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक पूरे समय मिशन 2023 के इर्दगिर्द ही बनी रही। इस दौरान पार्टी के दिग्गजों ने जहां चुनौतियों पर चर्चा की, वहीं कार्यकर्ताओं को सकारात्मक व्यक्तित्व से लेकर सरकारी योजनाओं तक के प्रचार-प्रसार में जुट जाने का भी आह्वान किया। दो साल बाद होने वाले चुनावों की देखते हुए ही पार्टी ने अभी से जातिगत समीकरणों में खुद को पूरी तरह से फिट करने के लिए ही अनुसूचित जाति और जनजाति के बीच पार्टी के कार्यक्रमों का फोकस करना शुरू कर दिया है। इसी के तहत 15 नवंबर को बड़े पैमाने पर जनजातीय गौरव दिवस मनाने के बाद के बाद जनजातीय गौरव यात्रा को शुरू कर दिया गया है।
दरअसल, केन्द्रीय स्तर पर भाजपा जानती है कि उसे अगर लोकसभा और विधानसभा चुनाव में अजेय रहना है तो कम से कम 50 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन जरूरी है। मध्य प्रदेश में भाजपा ने जहां लोकसभा की 29 में से 28 सीटें जीती थीं, लेकिन विधानसभा में वोट शेयर के आंकड़े बदल गए थे। इसकी वजह से दो सौ पार के नारे के साथ चुनाव में उतरी, पार्टी को लक्ष्य की तुलना में आधी सीटें भी नहीं मिल सकी थीं। यही वजह है कि अब भाजपा ने अगले आम विधानसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर सीटों की जगह मत पाने का लक्ष्य हाथ में लिया है। बीते विधानसभा चुनाव में भाजपा को लगभग 41 प्रतिशत वोट मिले थे, जिसमें अब नौ फीसदी की वृद्धि के साथ पार्टी 50 प्रतिशत का आंकड़ा हासिल करने का लक्ष्य लेकर काम कर रही है।
यही वजह है कि भाजपा अभी से चुनावी तैयारियों के मोड में पूरी तरह से दिखना शुरु हो गई है। इसके साथ ही पार्टी ने तय की है कि वह अपने कार्यकर्ताओं को प्रदेश सरकार के साथ ही केंद्र की मोदी सरकार की योजनाओं को लेकर भी गांव-गांव तक भेजेगी। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए अब पार्टी द्वारा नई रणनीति तैयार की गई है। इसके तहत अब पार्टी इसे डबल इंजन फार्मूले पर ले जाने के प्रयासों में लग गई है। इसके तहत प्रदेश में भाजपा ने मोदी सरकार की योजनाओं के अलग से प्रचार प्रसार कर उन्हें आम आदमी तक पहुंचाने की तैयारी शुरु कर दी है। इसकी वजह है भाजपा विधानसभा चुनाव में मोदी फैक्टर का भी पूरा फायदा उठाना चाहती है। लोकसभा चुनाव में पार्टी को वर्ष 2014 और वर्ष 2019 में क्रमश: 54.8 और 58.5 प्रतिशत वोट मिले थे जबकि इसके बाद हुए विधानसभा चुनावों में प्रदेश में पार्टी को इनकी तुलना में बेहद कम मत मिल सके थे। यही वजह है कि अब प्रदेश संगठन हर हाल में लोकसभा की ही तरह विधानसभा चुनाव में भी मिलने वाले मतों को पाने का प्रयास कर रही है।
एंटी इनकंबेंसी की चुनौती पर भी मंथन
चार बार से सत्ता में होने की वजह से भाजपा के सामने इस बार एंटी इनकंबेंसी से निपटने की भी बड़ी चुनौती रहने वाली है। यही वजह है कि अभी से इससे निपटने के लिए संगठन स्तर पर बीते चुनाव के मुकाबले इस बार बड़ी संख्या में विधायकों के टिकट काटे जाने की चर्चाएं शुरु हो गई हैं। इसके अलावा पार्टी के सामने इस बार ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी नेताओं के समायोजन की भी बड़ी चुनौती रहने वाली है। इसके अलावा पार्टी जानती है कि उसे बीते दो चुनावों की तरह ही इस बार भी चुनाव के समय कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर कर उन्हें सक्रिय करने की मशक्कत का भी सामना करना होगा। संगठन स्तर पर इसको लेकर भी मंथन किया जा रहा है। यही वजह है कि मंत्रियों के कामकाज से लेकर स्थानीय विधायकों की कार्यकर्ताओं में छवि पर भी संगठन लगातार पैनी नजर बनाए हुए है। दरअसल बीते चुनाव में करीब एक दर्जन मंत्री हार गए थे, जिसकी वजह से भाजपा को सरकार से बाहर होना पड़ा था। अगर यह तत्कालीन मंत्री चुनाव नहीं हारते तो भाजपा को सत्ता में वापसी के लिए करीब 15 माह का इंतजार नहीं करना पड़ता।
28/11/2021
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