- सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड की हाल में जारी रिपोर्ट में हुआ खुलासा
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश के कई जिले ऐसे हैं, जिनमें मौजूद पानी पीने लायक नहीं हैं। अगर इस पानी को लगातार पिया जाता रहा तो फिर पीने वाले को तमाम तरह की खतरनाक बीमारियां होने तय हैं। यह खुलासा हाल ही में सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड की जारी रिपोर्ट से हुआ से। दरअसल यह वे जिले हैं जिनमें जमीन के अंदर मौजूद पानी में फ्लोराइड की मात्रा तय पैमाने से तीन गुना तक अधिक पायी गई है।
दरअसल एक लीटर पानी में फ्लोराइड की मात्रा 1.5 एमजी से अधिक नहीं होना चाहिए लेकिन बैतूल जिले के जूनापानी में फ्लोराइड की मात्रा 4.30 एमजी तक पाई गई है। बोर्ड ने इस रिपोर्ट को तैयार कराने के लिए प्रदेश के 1430 साइट्स पर भूजल की गुणवत्ता को जांचा है। यह बात अच्छी है कि इसमें पाया गया की प्रदेश में मौजूद कुओं में से 92.02 प्रतिशत में फ्लोराइड की मात्रा उपयोग के मानक पैमाने पर खरा उतरी , जिसकी वजह से उनका उपयोग किया जा सकता है। इसके अलावा प्रदेश के 69.9 कुओं के पानी की गुणवत्ता बहुत अच्छी पायी गई है।
यह है फ्लोराइड की बढ़ती मात्रा की वजह
पीने के पानी के अलावा, मानव शरीर में फ्लोराइड का प्रवेश फल, सब्जी, खाद्यान्न, पेय पदार्थों और फ्लोराइड वाले दन्त मंजन के माध्यम से होता है। मध्य प्रदेश के उपर्युक्त विकासखण्डों में फ्लोराइड का भूजल स्रोतों में प्रवेश प्राकृतिक तथा मानवीय गतिविधियों के कारण हुआ है। प्राकृतिक कारणों में स्थानीय स्तर पर मिलने वाली चट्टानों में फ्लोराइड की मौजूदगी है जो बरसाती पानी के कारण घुलकर जलस्रोतों को प्रदूषित करती है। मानवीय गतिविधियों यथा खेती में सुपर-फास्फेट, एन.पी.के. जैसे फर्टीलाइजरों के उपयोग के कारण भी मिट्टी और भूजल में फ्लोराइड की मात्रा लगातार बढ़ रही है। विदित हो एक किलो सुपर-फास्फेट में 10 मिलीग्राम और एक किलोग्राम एन.पी.के. में फ्लोराइड की मात्रा 1675 मिलीग्राम तक होती है। फ्लोराइड का दूसरा प्रमुख स्रोत थर्मल पावर स्टेशन हैं। एक किलो कोयले की राख में फ्लोराइड की मात्रा 40 से 295 मिलीग्राम तक होती है। वह राख वर्षाजल के साथ धरती पर मिट्टी को धरती में रिसकर भूजल को प्रदूषित करती है। यह लगातार बढ़ने वाली समस्या है।
इस तरह से कम होता है दुष्प्रभाव
फ्लोराइड प्रभावित इलाके के लोगों को दूध, दही, पनीर, गुड़, कमल ककड़ी, अरबी, हरी सब्जियां, आंवला, नीबू, सन्तरा, टमाटर, धनिया, अखरोट, काजू, बादाम, मूंगफली, लहसुन, अदरक, सफेद प्याज इत्यादि का सेवन करना चाहिए। इसके अलावा, भोजन की आदतों में बदलाव कर उसके कुप्रभाव से किसी हद तक बचा जा सकता है। लोगों को भोजन में कैल्शियम, आयरन, विटामिन सी और ई एवं एंटी ऑक्सीडेंट पदार्थों का अधिक-से-अधिक सेवन करना चाहिए। तकनीकी या उच्च प्रौद्योगिकी विधियों भी फ्लोराइड के निराकरण में सक्रिय हैं। उनकी सक्रियता के कारण बाजार में अनेक उपकरण उपलब्ध हैं जो पानी को निरापद बनाते हैं। इनमें से कुछ विधियों का उपयोग छोटे पैमाने पर तो कुछ का स्थानीय स्तर पर किया जा सकता है। विदित हो कि प्रभावित इलाके पिछड़े, अविकसित तथा गरीब हैं।
अधिक फ्लोराइड से होती हैं कई बीमारियां
फ्लोरोसिस नामक बीमारी की सबसे बड़ी वजह फ्लोराइड ही है। यह बीमारी तब होती है जबकि मनुष्य मानक सीमा से अधिक घुलनशील फ्लोराइड-युक्त पेयजल का लगातार पीने में इस्तेमाल करता है। अधिक फ्लोराइड गर्दन, दांत, पीठ, कंधे व घुटनों के जोड़ों व हड्डियों को प्रभावित करता है। कैंसर, स्मरण शक्ति कमजोर होना, गुर्दे की बीमारी भी इससे हो जाती है। फ्लोराइड दाँतों और हड्डियों की मजबूती के लिये आवश्यक है पर यदि किसी जलस्रोत के एक लीटर पानी में फ्लोराइड की मात्रा 1.5 मिलीग्राम से अधिक हो तो वह पानी, स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होता है। उस पानी को पीने से दांतों और हड्डियों में स्थायी विकार पैदा हो जाता है। फ्लोराइड के कारण होने वाली उपर्युक्त बीमारियां लाइलाज हैं।
49 जिलों में नाइट्रेट अधिक
इस रिपोर्ट को तैयार करने में जिन जिलों को शामिल किया गया है उनमें भोपाल भी शामिल है। भोपाल में गुणवत्ता की जांच में पता चला है की 25.24 कुओं में नाइट्रेट कंस्ट्रेशन इसकी तय लिमिट से अधिक है। इस तरह की स्थिति प्रदेश के 49 जिलों में मिली है। है। सबसे ज्यादा नाइट्रेट कंस्ट्रेशन आगर मालवा के सोयत में पाया गया है। अच्छी बात यह है कि इस जांच में भोपाल का पानी हार्ड नहीं पाया गया है। हार्डनेस की मुख्य वजह कैल्शियम और बाईकाबोर्नेट, सल्फेट और क्लोराइड होती है। पीने के लिए इसकी लिमिट प्रति लीटर मेंं 600 एमजी तक है। जबकि इसे 200 एमजी को आदर्श माना गया है। मप्र में शैलो ग्राउंड वाटर में हार्डनेस 30 से 1385 एमजी तक पाई गई है। सर्वाधिक हार्डनेस 1385 उज्जैन में पाई गई है।