साल दर साल कम हो रहा मत प्रतिशत

मत प्रतिशत
  • लोकसभा चुनाव में लगातार गिर रही कांग्रेस की साख

विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। हिंदी हार्ट लैंड मप्र, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनावी हार के झटके झेलने के बाद, कांग्रेस 2024 के लिए कमर कस रही है। इस बार 18वां लोकसभा चुनाव होने जा रहा है। मप्र में विधानसभा चुनाव की हार से उबर कर कांग्रेस लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुट गई हैं। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी का दावा है कि पिछली बार की अपेक्षा इस बार कांग्रेस मप्र में बेहतर प्रदर्शन करेगी। लेकिन विगत लोकसभा चुनावों को देखें तो कांग्रेस का प्रदर्शन लगातार गिरता जा रहा है। 1999 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के वोट में करीब 3 फीसदी (भाजपा 46.58 प्रतिशत, कांग्रेस 43.91 प्रतिशत)था, वह 2019 में बढकऱ 23 फीसदी (भाजपा 58 प्रतिशत, कांग्रेस 34.50 प्रतिशत) हो गया है। इस बार के चुनाव में कांग्रेस को 23 फीसदी का अंतर पाटना बड़ी चुनौती है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि 2024 में कांग्रेस, अपनी इस गिरावट को रोकने की उम्मीद के साथ, कई चुनौतियों का सामना करेगी।  
मप्र विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद भले ही कांग्रेस लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटने का दावा कर रही है, पर उसके लिए 23 प्रतिशत से अधिक मतों के अंतर की खाई को पाटना किसी चुनौती से कम नहीं है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 58 प्रतिशत और कांग्रेस को 34.5 प्रतिशत वोट मिले थे। यानी 23 प्रतिशत का अंतर रहा है। इसी प्रकार वर्ष 2014 के चुनाव में भाजपा को 54.02 और कांग्रेस को 34.89 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे। इस प्रकार 19.13 प्रतिशत वोट भाजपा को अधिक मिले थे। वर्ष 2009 में भाजपा को कांग्रेस की तुलना में सिर्फ 3.13 प्रतिशत वोट ही अधिक मिले थे। बता दें, हाल में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को कांग्रेस की तुलना में 8.15 प्रतिशत वोट ही अधिक मिले। यही नहीं वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा और कांग्रेस के मत प्रतिशत में एक से भी कम का अंतर था। पिछले तीन लोकसभा चुनावों में भाजपा का मत प्रतिशत लगातार बढ़ा और कांग्रेस का घटा है।
भाजपा-कांग्रेस का मत प्रतिशत बढ़ाने पर फोकस
मिशन 2024 के लिए भाजपा ने जहां सभी 29 सीटें जीतने के लक्ष्य पर काम कर रही है। वहीं कांग्रेस विधानसभा चुनावों के आधार करीब दर्जनभर सीटों को जीतने की कोशिश करेगी। इसके लिए दोनों पार्टियों का फोकस मत प्रतिशत बढ़ाने पर है।  भाजपा विधानसभा चुनाव की तरह लोकसभा चुनाव में भी 51 प्रतिशत से अधिक वोट पाने के लिए जी-तोड़ कोशिश कर रही है। पिछले लोकसभा चुनाव में प्रदेश की कुल 29 लोकसभा सीटों में से छिंदवाड़ा छोड़ 28 भाजपा की झोली में आई थीं। इस बार भाजपा छिंदवाड़ा में कमलनाथ के गढ़ को ढहाकर सभी 29 सीटें जीतने की पूरी कोशिश कर रही है। उधर, कांग्रेस भी मत प्रतिशत बढ़ाने के लिए कमजोर मतदान केंद्रों को चिह्नित कर कमियां दूर करने और मत प्रतिशत बढ़ाने में लगी है। विधानसभा चुनाव के बाद पार्टी ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी युवा नेता जीतू पटवारी को दी है।  पटवारी ने सभी जिला और ब्लाक इकाइयों को उन मतदान केंद्रों पर विशेष ध्यान देने के लिए कहा है जहां पार्टी को पिछले चार विधानसभा चुनावों में लगातार हार का सामना करना पड़ रहा है। अब तक के चुनाव परिणाम बताते हैं कि प्रदेश में लोकसभा चुनाव में लड़ाई भाजपा और कांग्रेस के बीच ही रही है। बसपा को छोड़ दें तो, पिछले दो लोकसभा चुनाव में किसी भी दल को एक प्रतिशत से कम मत ही मिले। निर्दलीय जरूर लगभग चार प्रतिशत वोट ले जाते हैं। ऐसे में आगामी लोकसभा चुनाव में विपक्षी गठबंधन आईएनडीआईए का भी प्रभाव नहीं पड़ेगा।
विधानसभा चुनाव से सबक
बता दें, हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस से पहले अपने प्रत्याशियों के नामों का एलान किया था। इतना ही नहीं पार्टी ने कई हारी हुई सीटों पर तो आचार संहिता के पहले ही उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर दी थी। जबकि भाजपा के मुकाबले कांग्रेस प्रत्याशी चयन में खासी पिछड़ गई थी। जिससे प्रत्याशियों को प्रचार के लिए भरपूर समय नहीं मिल पाया था। ऐसे में पार्टी लोकसभा चुनाव में ये गलती दोहराना नहीं चाहती है। इसलिए पार्टी ने अभी से ही उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया शुरू कर दी है। प्रत्याशी चयन जल्द हो इस मांग के साथ ही दिग्गजों को मैदान में उतारने की डिमांड भी कांग्रेस में हो रही है। पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया खुद इस बात की पैरवी कर चुके हैं कि बड़े नेताओं को लोकसभा लड़ाया जाए। ऐसे में कहा जा रहा है कि विधानसभा चुनाव 2023 में हार का मुंह देख चुके कई वरिष्ठ नेताओं को भी एक बार फिर लोकसभा चुनाव में उतारा जा सकता है।

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