स्वयंसेवक और समयदानी बताएंगे संगठन को विस क्षेत्रों की हकीकत

स्वयंसेवक और समयदानी

– विधानसभा चुनावों में जीत के लिए भाजपा शुरू कर रही है कवायद

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी /बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में विधानसभा चुनाव में भले ही एक साल का समय है , लेकिन राजनैतिक दलों को इसकी चिंता अभी से सताने लगी है। इस बार भाजपा चुनाव में कोई रिस्क लेने की स्थिति में नहीं है। इसकी वजह है बीते आम विधानसभा चुनाव के परिणाम। यही वजह है कि अब भाजपा ने सर्वे व संगठन के अलावा अपने समयदानी कार्यकर्ता से लेकर संघ के स्वयंसेवकों को भी हर विधानसभा क्षेत्र में भेजने का फैसला कर लिया है। स्वंयसेवक और समयदानी मिलकर विधानसभा सीटों पर पार्टी के साथ ही अपने नेताओं की वास्तविक स्थिति का आंकलन कर उसकी पूरी जानकारी संगठन को देंगे। खास बात यह है कि इनके द्वारा मौजूदा राजनैतिक परिदृश्य से लेकर पार्टी की स्थिति बेहतर उम्मीदवार और चुनावी गणित तक का यह लोग आंकलन करने का काम करेंगे। दरअसल यह पूरी कवायद अब भाजपा द्वारा विधानसभा चुनावों में जीत के लिए फार्मूला तय करने के लिए की जा रही है। सर्वे , पार्टी  पदाधिकारियों की रिपोर्ट के आधार पर ही संगठन द्वारा चुनावी रणनीति बनाई जाएगी।
इसकी शुरूआत पार्टी द्वारा उन सीटों से की जा रही है , जहां पर अभी विपक्षी दल के विधायक हैं। इसमें भी वे सीटें खासतौर पर प्राथमिकता में रखी गई हैं, जहां पर पिछले विधानसभा चुनाव और उपचुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है। इसके साथ कमजोर विधानसभा सीटों पर भी यही रणनीति अपनाई जाएगी। यह फार्मूला केन्द्रीय संगठन द्वारा अभी लोकसभा सीटों पर अपनाया जा रहा है। दरअसल मौजूदा समय में देखा जाए तो प्रदेश की 103 सीटें ऐसी हैं , जिन पर कांग्रेस के अलावा अन्य दलों के विधायक हैं। इसमें से कांग्रेस के 95 विधायक हैं जबकि सपा-बसपा के तीन और निर्दलीय विधायकों की संख्या 4 है। एक अन्य विधायक कांग्रेस से जीते हैं पर बीजेपी में शामिल होने का ऐलान कर चुके हैं। यह बात अलग है कि अब बसपा व सपा के भी एक-एक विधायक बीजेपी में अब शामिल हो चुके हैं। पार्टी इन सभी सीटों पर विधानसभा प्रभारियों की नियुक्ति कर रही है। पहले चरण में इन सीटों पर नियुक्त प्रभारियों को विधानसभा क्षेत्रों में भेजा जाएगा। वे जल्द ही वहां जाकर वहां बूथ स्तर का माइक्रो मैनेजमेंट देखेंगे और इसकी रिपोर्ट संगठन को देंगे। यह समयदानी कार्यकर्ता पार्टी को जीतने वाले संभावित दावेदारों की स्थिति के बारे में भी बताएंगे और जीते हुए दलों के विधायकों के कमजोर कड़ी भी तलाश कर प्रदेश संगठन को बताएंगे। इसके आधार पर प्रदेश संगठन यहां पार्टी नेताओं को भेजकर जीत की रणनीति को अमलीजामा पहनाने का काम कर सके। प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होना है। प्रदेश सरकार ने अब अपने मंत्रियों को भी मैदान में उतारने का फैसला लिया है। अब भाजपा सरकार के मंत्री दलित बस्तियों में चौपाल लगाएंगे। साथ ही दलित बस्तियों में रात बिताएंगे और एक साथ ही  भेजन भी करेंगे। इसके माध्यम से पार्टी समाज में समरसता का संदेश देने का काम करेंगे। दरअसल इस तरह के कदमों की वजह है प्रदेश के एससी एसटी के 40 फीसदी वोटर  पर भाजपा की नजर बनी हुई है।
उधर, सरकार स्तर पर भी इन वोटों की लामबंदी की तैयारी शुरू कर दी गई है। गौरतलब है कि मप्र में एससी और एसटी वोटरों को सत्ता की चाबी माना जाता है। दोनों वर्गों के लिए प्रदेश की 82 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं। इनके वोटरों की बात की जाए तो इनकी संख्या 40 फीसदी है। ऐसे में जिस दल को इन वर्गों का साथ मिलता है, उसका सत्ता तक पहुंचने का रास्ता बेहद आसान हो जाता है। पिछले 2018 विधानसभा चुनावों में इन दलों ने कांग्रेस का साथ दिया था, जिसकी वजह से लगतार डेढ़ दशक से प्रदेश की सत्ता में रहने वाली भाजपा को बाहर का रास्ता देखना पड़ा था। उस समय आदिवासी क्षेत्रों की अधिकतर सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली थी। वहीं अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों पर भी कांग्रेस का बेहतर प्रदर्शन रहा था।
प्रभावी लोगों की जुटाएंगे जानकारी
पार्टी सूत्रों का कहना है कि हारी सीट्स पर विधानसभा प्रभारी बूथ संयोजकों और पन्ना प्रभारियों की मदद से क्षेत्र के लोकप्रिय व्यवसायियों राजनेताओं, समाजसेवियों, शिक्षा और अन्य वर्ग से जुड़े सशक्त लोगों की रिपोर्ट भी तैयार करेंगे और यह भी जानकारी जुटाएंगे कि किस वर्ग के कितने वोटर बूथ पर मौजूद हैं। दरअसल संगठन प्रभावशाली लोगों को पार्टी के साथ जोड?ा चाहती है, जिससे की मतदान में पार्टी को फज्ञयदा मिल सके। यहां सरकारी योजनाओं का 7 लाभ पाने वाले हितग्राहियों के बारे में भी जानकारी ली जाना है।
82 विधानसभा सीटें हैं आरक्षित
मप्र में कुल 230 विधानसभा सीटें हैं. इनमें से 82 सीटें एससी-एसटी वर्ग के लिए आरक्षित हैं। 35 सीट अनुसूचित जाति और 47 अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व  हैं। इसके अलावा सामान्य वर्ग की 41 सीटें ऐसी है, जहां एससी एसटी वोटर निर्णायक स्थिति में माने जाते हैं। बीते विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जनजाति वर्ग की 47 में 31 सीटें कांग्रेस ने जीती थी। वहीं भाजपा को सिर्फ 16 सीटें मिली थी। 35 अनुसूचित जाति वर्ग की 17 सीटों पर कांग्रेस और 18 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी। हालांकि उपचुनाव के बाद समीकरण बदले और बीजेपी सरकार में आ गई, लेकिन बीजेपी 2023 के चुनाव अब इन्ही सीटों पर फोकस कर रही है। यही वजह कि अब एससी-एसटी वर्ग बाहुल इलाकों में मंत्रियों की ड्यूटी इन वोटर्स की लामबंदी के लिए लिए लगाई जा रही है।

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