- पंकज जैन
किसी ने बहुत खूब कहा है…
अपनी जीत पर इतना गुमान न कर ए बेखबर।
शहर मे तेरी जीत से ज्यादा चर्चे मेरी हार के है।।
ये दो लाइन बिलकुल सटीक बयान है हाला घटनाक्रम का, जो विनेश के ऊपर घटा। एक ही रोज में तीन -तीन पहलवानों को पटकनी देना, उसमे भी पहले राउंड में विश्व चैंपियन जापान की युई सुसुकी को चित करना, यह कोई सामान्य बात नहीं है।
हम सब को घमंड की हद तक गर्व है विनेश तुम पर। 100 ग्राम का वजन और ओलम्पिक महासंघ के नियम भले ही तुमको अयोग्य घोषित करें, पर, देशवासियों की नजर में तुमसे ज्यादा कोई योग्य ही नहीं है,एक दिन मे तीन पहलवानों को जमीन दिखाने वाली से योग्यता का क्या प्रमाण हासिल करना है? विनेश तुम फिर जीत गई, फिर नियम का इस्तेमाल इसलिए कि, यह पहली मर्तबा नहीं है तुम्हारी विजय, तुम बार -बार जीती हो, हर बार जीती हो, जिस दिन हरियाणा के छोटे से गांव में कुश्ती जैसे मर्दों के खेल मे प्रवेश किया, पहली जीत तो उस दिन ही दर्ज हो गई थी, फिर सिलसिला चला तुम्हारे विजय रथ का, जो, ओलंपिक में प्रवेश तक चलता रहा, वहां भी तुमने तो झंडे गाड़े ही हैं। दूसरी बार तुमने कुश्ती के दांव पेच कम और राजनीति के घटिया दांव पेंच चलाने वाले व्यक्ति के खिलाफ सभी पीड़ित और शोषित महिला पहलवानों के लिए आवाज उठाई, और, एक सशक्त महिला के रूप में अपनी पहचान बनाई, तो, तुम्हे अयोग्य कैसे माने?
पूरा देश जानता है कि पिछले कई दिनों से अत्यंत विपरीत परिस्थितियो का सामना तुमने किया है, फिर भी ओलाम्पिक मे खुद को साबित किया, यह किसी योग्यता से कमतर नहीं है। विनेश देश को, देश के खिलाडिय़ो को, खेलप्रेमियों को तुमसे तुम्हारी योग्यता का कोई प्रमाण नहीं चाहिए। योग्यता पर प्रश्नचिन्ह तो हमारे सिस्टम पर है, जंहा ओलम्पिक मे खिलाडिय़ों से ज्यादा तमाशबीन जाते है, और, फिर अपनी जवाबदारी भी सही से नहीं निभाते है, अब आम आदमी जो यह नहीं जानता कि किसकी क्या जवाबदारी होती है, किसी स्पर्धा मे, वह तो तुम्हे आसानी से दोष दे देगा।
हालत यह है कि विश्व स्पर्धा के लिए पहलवान तैयार करने वाला संगठन पिछले सात सालों मे इतना भी नहीं कर पाया कि अंतराष्ट्रीय मापदंड के अनुसार खिलाडिय़ों को दो दिन के वजन की आदत डाले, एक दिन के वजन के पुराने ढर्रे को बदले।
ऐसा नहीं है पहलवानों ने इस नियम को लागू करने के लिए दबाव नहीं डाला, पर, राजनैतीक वृदहस्त प्राप्त पदाधिकारियो के कानों पर जू भी नहीं रेंगी, खैर।
विनेश तुम्हें उन लोगों पर ध्यान नहीं देना है, जो, तुममे ही मीन मेख निकाले, उन पर तो कतई नहीं जो, तुम्हारे प्रति सहानभूति दर्शाए, क्योंकि तुम एक योद्धा हो, अजेय योद्धा, योद्धा या तो विजयी होता है, या, शहीद, हारता या अयोग्य नहीं होता है। आज पूरा देश तुम पर गर्व कर रहा है, तुम्हें प्रणाम कर रहा है, तुम स्वयं शक्ति हो, नारी सशक्तकरण की मिसाल हो।
आज पूरा देश बेसब्री से तुम्हारी बाट जोह रहा है, खुद प्रधानमंत्री ने तुम्हें चैंपियन ऑफ चैंपियन की पदवी से नवाजा है, बस इतनी अपेक्षा है कि आने के बाद तुम्हारे स्वागत मे कोई कमी न रहे, और सुविधा में तो बिलकुल नहीं।
अंत में: विनेश तुमने संन्यास ले लिया, यह तुम्हारा निजी निर्णय है, नहीं तो देश सोच रहा था…..
लड़ने का अवसर तो दो,
फिर से न रौंदा तो कहना
मेरी करतबों से भयभीत हो तुम
छल है मुझको अयोग्य कहना।