विदिशा: भाजपा के लिए देश की सबसे मुफीद सीटों में शामिल

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। भोपाल से सटी विदिशा संसदीय सीट की गिनती उन सीटों में शामिल है, जो भाजपा के लिए गिनीचुनी सर्वाधिक मुफीद सीटों में शामिल है। यही वजह है कि इस सीट पर भाजपा की जीत तय मानी जाती है। इस बार यहां से भाजपा के शिवराज सिंह चौहान का मुकाबला कांग्रेस के प्रतापभानु शर्मा से है। यह उन सीटों में शामिल है, जहां से अटल बिहारी बाजपेयी से लेकर सुषमा स्वराज तक लोकसभा जा चुकी हैं। यह सीट सिर्फ राजनैतिक रूप से ही नहीं बल्कि अपनी ऐतिहासिकता और अन्य कारणों से भी प्रसिद्ध है। इनमें प्रसिद्ध सांची के स्तूप भी हैं। जिसे देखने के लिए देश दुनिया के लाखों लोग यहां आते हैं। इसके अलावा इस क्षेत्र में और भी ऐसी ऐतिहासिक धरोहर हैं जिन्हे देखने के बाद लोग भूल नहीं पाते। इनमें उदयगिरी की गुफाएं भी हैं। इसके अलावा बासौदा में भगवान शिव का अति प्रचीन नीलकंठेश्वर मंदिर है। यह इस क्षेत्र के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। इस सीट को पूरे प्रदेश की राजनीति में शिवराज सिंह चौहान के नाम से जाना जाता है। यहां से चौहान ने शुरुआती दिनों में कई बार चुनाव लड़ा और लोकसभा का रास्ता तय किया, लेकिन जब उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया तो शिवराज सिंह चौहान के बाद यहां से नेता प्रतिपक्ष और मोदी सरकार में विदेश मंत्री रहीं सुषमा स्वराज ने चुनाव लड़ा था और शानदार जीत दर्ज की थीं। विदिशा लोकसभा में आठ विधानसभाएं हैं जिनमें भोजपुर, सांची, सिलवानी, विदिशा, बासौदा, बुधनी, इच्छावर और खातेगांव शामिल हैं। इनमें से सिलवानी को छोडक़र सभी पर भाजपा  विधायक हैं। 1991 से लेकर 2004 तक के लोकसभा चुनावों-उपचुनावों में यहां से शिवराज सिंह चौहान ने जीत हासिल की है। यहां से शर्मा भी दो बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं।
इस तरह से बनी बीजेपी का गढ़
साल 1989 से विदिशा लोकसभा सीट भाजपा का गढ़ बनकर उभरी है। कहा जाता है कि भाजपा के बड़े नेता विदिशा को भाजपा की सेफ सीट मानकर चुनाव लडक़र जीत हासिल करते हैं।  दरअसल, 1989 के बाद भाजपा ने लगातार विदिशा से जीत हासिल की। राजनीति जानकार कहते हैं कि जब भाजपा की देश भर में हालात नाजुक थी, तब बड़े नेताओं को चुनाव लड़ाने के लिए विदिशा सीट चुनी जाती थी। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी विदिशा सीट को चुना और यहां से सांसद का चुनाव लडक़र देश के प्रधानमंत्री बने। हालांकि बाद में वाजपेयी ने विदिशा से अपना इस्तीफा दे दिया था। दुनिया भर में अपनी शैली से एक अलग पहचान बनाने वाली पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से देश भर की सीटों में से विदिशा संसदीय सीट को चुना और इस सीट से बड़ी जीत हासिल कर देश की विदेश मंत्री बनी थी।
जनसंघ के जमाने से भगवा गढ़
यह लोकसभा सीट जनसंघ के जमाने से ही भगवा का गढ़ रहा है। 1967 में जब पूरे देश में कांग्रेस की लहर थी, विदिशा से भारतीय जनसंघ के पंडित शिव शर्मा चुने गए। 1952 से 1966 तक यह सीट अस्तित्व में नहीं आई थी। 1971 के चुनाव में भी जनसंघ को जीत मिली। 1977 में राघवजी जनता पार्टी के टिकट पर चुने गए। 1980 और 1984 के दो चुनावों में ही कांग्रेस को इस सीट पर सफलता मिली थी। 1991 में अटल बिहारी वाजपेयी लखनऊ के साथ विदिशा से भी चुनाव लड़े और जीते। उनके इस्तीफे के बाद शिवराज सिंह चौहान सांसद बने और लगातार पांच पर विदिशा लोकसभा सीट से चुने गए। 2005 में जब शिवराज  सीएम बने, उपचुनाव में बीजेपी के रामपाल सिंह जीते। 2009 और 2014 में बीजेपी की प्रखर वक्ता सुषमा स्वराज ने विदिशा का प्रतिनिधित्व किया। 2019 में रमाकांत भार्गव चुने गए। 2024 में एक बार फिर शिवराज सिंह चौहान बीजेपी के उम्मीदवार बने हैं।
पिछले चुनाव में क्या हुआ?
2019 के चुनाव की बात की जाए तो इस लोकसभा सीट से बीजेपी ने रमाकांत भार्गव को चुनावी मैदान में उतारा था, जबकि कांग्रेस ने शैलेंद्र पटेल पर विश्वास दिखाया था। भार्गव ने करीब 5 लाख वोटों के भारी अंतर से शैलेंद्र पटेल को पराजित किया था।  इससे पहले 2014 में जब सुषमा स्वराज ने यहां से चुनाव लड़ा था तो उस वक्त भी जीत का अंतर करीब 4 लाख वोटों का रहा था। स्वराज ने यहां से लक्ष्मण सिंह को हराया था।
 1989 में राघव भाई ने विदिशा में गाड़ा था भाजपा का झंडा
साल 1989 में भाजपा ने विदिशा सीट से चुनाव लडऩे के जनसंघ के कद्दावर नेता राघवभाई को मैदान में उतारा था। उस समय जनसंघ के नेता राघव भाई को गांव में अच्छी पकड़ थी। भाई ने साल 1989 में बड़ी जीत हासिल कर विदिशा में भाजपा का परचहम लहराया था और तब से लेकर आज तक विदिशा सीट पर भाजपा की जीत का सिलसिला लगातार जारी है।

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