चुनावी चक्रव्यूह में उलझे… कांग्रेस व भाजपा के दिग्गज

  • कमलनाथ-दिग्विजय और भूरिया से लेकर शिवराज, श्रीमंत व कुलस्ते तक शामिल
  • विनोद उपाध्याय
कांग्रेस व भाजपा

प्रदेश मे इस बार शायद ऐसा पहला लोकसभा चुनाव है, जब कांग्रेस के साथ ही भाजपा के कई दिग्गज नेता ऐसे चुनावी चक्रव्यूह में उलझ गए हैं कि वे अपने-अपने इलाकों को छोड़ ही नहीं पा रहे हैं।  यही नहीं पहली बार है कि बड़े चेहरों तक को अभी यह भरोसा नही हैं कि वे जीत ही जाएगें। यही वजह है कि पहली बार कई नेताओं को गांव-गांव दस्तक देनी पड़ रही है। चुनाव में इस बार करो या मरो की स्थिति बनने के बाद दिग्गज नेताओं के परिजनों तक को मैदान में उतरना पड़ रहा है। ऐसे नेताओं में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया जैसे कांग्रेस नेताओं के नाम हैं ,तो भाजपा के दिग्गज नेताओं में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और फग्गन सिंह कुलस्ते के नाम भी शामिल हैं।  अहम बात यह है कि यह नेता अपनी -अपनी पार्टी के स्टार प्रचारकों की सूची में भी शामिल हैं।
कांग्रेस की बात की जाए तो उसके स्टार प्रचारक कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और कांतिलाल भूरिया जैसे नेताओं को अपने अपने गढ़ों में कैद होकर रह जाना पड़ रहा है। इन तीनों ही नेताओं की भाजपा ने इस बार जबरदस्त घेराबंदी कर ऐसा चक्रव्यूह रचा है कि, वे बाहर ही नहीं निकल पा रहे हैं। जिसकी वजह से पार्टी का प्रचार भी प्रभावित हो रहा है। दरअसल कमलनाथ व दिग्विजय ही कांग्रेस के पास प्रदेश में दो ऐसे चेहरे  हैं,  जिनका प्रभाव प्रदेशभर में माना जाता है। भाजपा की वजह से यह दोनों छिंदवाड़ा व -राजगढ़ से बाहर मध्यप्रदेश के दूसरे लोकसभा क्षेत्रों में प्रचार के लिए जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। कमलनाथ अपने बेटे की हार के डर से छिंदवाड़ा, तो दिग्विजय सिंह अपनी राजनीतिक साख और नाक बचाने की चिंता में राजगढ़ सीट पर ही प्रचार करने को मजबूर बने हुए हैं। लगभग यही स्थिति कांग्रेस के सबसे बड़े चेहरे कांति लाल भूरिया की भी बनी हुई है। प्रदेश में चार चरणों में होने वाले लोकसभा चुनाव के पहले चरण में 19 अप्रैल को सीधी, बालाघाट, छिंदवाड़ा, जबलपुर, मंडला और शहडोल सीट पर मतदान होना है। इन सीटों पर भाजपा के दिग्गज नेताओं का प्रचार पूरे जोरों  पर है। भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय मंत्री अमित शाह, राजनाथ सिंह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा लगातार चुनावी रैलियां कर रहे हैं।  इसके उलट कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को छोडक़र का कोई बड़ा नेता प्रचार के लिए अभी तक प्रदेश में नहीं आया है। कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलनाथ अपने बेटे नकुल नाथ के प्रचार और छिंदवाड़ा के अपने गढ़ को बचाने के लिए मोर्चा सम्हालने के लिए मजबूर बने हुए हैं। वैसे तो छिंदवाड़ा कांग्रेस का गढ़ है और पिछले 45 सालों से कमलनाथ परिवार काबिज है। भाजपा ने इस बार प्रदेश की 29 में से 29 सीटें जीतने का लक्ष्य तय किया है। 2014 में मोदी लहर में भी भाजपा इसी  छिंदवाड़ा सीट को हार गई थी। वर्ष 1997 के उपचुनाव में छिंदवाड़ा से सिर्फ एक बार भाजपा से पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा चुनाव जीते थे। लेकिन इसके एक साल बाद ही आम चुनाव में कमलनाथ ने पुन: छिंदवाड़ा भाजपा से छीन लिया था। कमलनाथ छिंदवाड़ा से अब तक 9 बार सांसद रह चुके हैं। इस बार इस सीट के कई प्रमुख प्रभावशाली नेता कांग्रेस का साथ छोडक़र भाजपा में शामिल हो चुके हैं। यही वजह है कि इस बार प्रचार में कमलनाथ को इमोशनल कार्ड तक खेलना पड़ रहा है।
दिग्विजय को हारने का डर?
राजगढ़ लोकसभा सीट पर पिछले दो बार से भाजपा का कब्जा है और रोडमल नागर सांसद हैं। भाजपा ने राजगढ़ से तीसरी बार रोडमल नागर को प्रत्याशी बनाया है और कांग्रेस ने उनके सामने दिग्विजय सिंह को मैदान में उतारा है। 77 साल के दिग्विजय 1984 और 1991 में राजगढ़ से सांसद चुने गए थे। प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने यह सीट छोड़ दी थी। दिग्विजय इस बारचुनाव लड़ना नहीं चाहते थे , लेकिन शीर्ष नेतृत्व के कहने पर उन्हें लोकसभा चुनाव के मैदान में उतरना पड़ा। 2023 के विधानसभा चुनाव में इस सीट की 8 विधानसभा सीटों में सिर्फ 2 पर कांग्रेस को जीत मिली। चाचौड़ा से उनके अनुज लक्ष्मण सिंह चुनाव हार गए। गृह नगर राघौगढ़ से उनके बेटे जयवर्धन सिंह बहुत कम वोटों से विधानसभा चुनाव जीत पाए। 2019 के लोकसभा चुनाव में भोपाल में प्रज्ञा सिंह ठाकुर के सामने उनको साढ़े तीन लाख से ज्यादा मतों से हार का सामना करना पड़ा। अब उनको डर सता रहा है कि कहीं राजगढ़ से फिर चुनाव न हार न जाएं। दिग्विजय राजनीति से संन्यास लेने की उम्र में हैं। ऐसे में वह सम्मान जनक विदाई चाहते हैं।

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