दिग्गजों को नहीं भा रहा कांग्रेस का घर-घर चलो अभियान

  • अरुण पटेल
कांग्रेस

रस्सी जल गई लेकिन बल नहीं गए की तर्ज पर कहा जा सकता है कि पूरे देश की तरह मध्यप्रदेश में भी कांग्रेस पार्टी  गुटबंदी के दलदल से उबरती  नजर आने के स्थान पर उसमें और गहरे तक धंसती नजर आ रही है। मध्यप्रदेश में 2018 के विधानसभा के चुनाव में किसी भी राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। सीटों के लिहाज से सबसे बड़े राजनीतिक दल के तौर पर कांग्रेस को सरकार बनाने का मौका मिला था। लेकिन अपने अंतर्विरोधों के चलते ही पंद्रह माह में कमलनाथ सरकार गिर गई। इसका कारण गुटबंदी और कुछ नेताओं का अपना अहं भी था और उसके कारण जो असंतोष पैदा हो रहा था उसकी परिणिति अंतत: कमलनाथ सरकार के गिर जाने में हुई। इसके बाद भी पार्टी में गुटबाजी थमती दिखाई नहीं दे रही है। पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ द्वारा 1 फरवरी से शुरू किए गए ‘घर चलो, घर-घर चलो अभियान ‘ से पार्टी के बड़े नेताओं की दूरी नेताओं के बढ़े हुए अहं को जाहिर करने वाली है। इससे लगता है कि दिग्गजों को यह अभियान नहीं भा रहा है ।
राज्य में विधानसभा के चुनाव अगले साल के आखिर में होना है और लगता है कि शायद अभी भी गुटबंदी से पीछा छुड़ाने के स्थान पर नेताओं की अपने निजी महत्वाकांक्षाएं उन पर ज्यादा हावी हैं। इसमें दो राय नहीं हो सकती है कि गुटबाजी के चलते ही पंद्रह साल सत्ता से बाहर रही कांग्रेस 15 माह में ही अपनी सरकार गवां बैठी थी। यदि यह कहा जाए कि राष्ट्रीय फलक पर राजनीतिक दलों में कांग्रेस अकेली ऐसी पार्टी है, जिसमें हर स्तर पर इस कदर गुटबाजी को देखा जा सकता है। गुटबाजी के कारण ही पूर्व में कई दिग्गज नेताओं ने कांग्रेस को छोड़कर अपनी अलग पार्टी बनाई। शरद पवार और ममता बनर्जी का नाम इनमें प्रमुख है। अर्जुन सिंह और माधवराव सिंधिया जैसे बड़े नेता भी कांग्रेस पार्टी छोड़ने के लिए मजबूर हुए थे। हालांकि माधवराव सिंधिया ने अपनी पार्टी मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस बनाई थी और किसी स्थापित राजनीतिक दल में नहीं गए थे तथा बाद में कांग्रेस में लौट आए। अर्जुन सिंह भी कांग्रेस में वापस लौटे। उस समय अविभाजित मध्यप्रदेश था। मध्यप्रदेश कांग्रेस में अर्जुन सिंह और माधवराव सिंधिया की गुट की लड़ाई कई सालों तक चली थी। श्यामाचरण शुक्ल और विद्याचरण शुक्ल का भी अपना गुट रहा है। गुटबाजी के कारण ही कांग्रेस नब्बे के दशक से ही लोकसभा सीटों पर अपनी पकड़ कमजोर करती हुई नजर आई थी। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस केवल एक छिंदवाड़ा की  ही सीट जीतने में सफल रही थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में गुना में ज्योतिरादित्य सिंधिया की हार में कांग्रेस की गुटबाजी को भी एक बड़ी वजह माना जाता है। मार्च 2020 में सिंधिया भाजपा में शामिल हो गए। इसके बाद यह माना जा रहा था कि पूर्व मुख्यमंत्री द्वय दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के बीच आपसी समन्वय में गुटबाजी दिखाई नहीं देगी। परंतु ऐसा आभास मिलता है कि दोनों के बीच आपसी समन्वय कुछ लड़खड़ा रहा है। 2018 के विधानसभा चुनाव में से पहले कांग्रेस पंद्रह साल प्रदेश में सत्ता से बाहर रही। इसकी वजह केवल क्षत्रपों का अहं रहा।
कमलनाथ एक साथ दो महत्वपूर्ण पदों पर हैं। प्रदेश अध्यक्ष और विधायक दल के नेता का पद उनके पास है। कमलनाथ को वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया था। विधायक दल के नेता का पद उन्होंने सरकार गिर जाने के बाद भी नहीं छोड़ा। दिग्विजय  सिंह इस पद पर अपने समर्थक को बैठाना चाहते थे। कमलनाथ प्रदेश कांग्रेस की राजनीति में प्रमुख पदों का बंटवारा करने के पक्ष में दिखाई नहीं दे रहे हैं। कांग्रेस के महत्वपूर्ण पदों पर वे धीरे-धीरे अपने समर्थकों को बैठाते जा रहे हैं। 1 फरवरी को देवास में घर चलो, घर घर चलो अभियान की शुरूआत जब कमलनाथ ने की तो उस समय  वही अधिकांश चेहरे नजर आए जो कमलनाथ के निजी समर्थक हैं। आजकल कांग्रेस के महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में भी बड़े नेता नजर नहीं आ रहे हैं। राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे अजय सिंह जरूर अपने प्रभाव वाले इलाके में इस अभियान के पहले से ही सक्रिय हैं और दिसंबर से ही उन्होंने घर वापसी अभियान छेड़ दिया था और भाजपा के अनेक लोगों को कांग्रेस में शामिल कराया तथा जो रूठ कर चले गए थे उन्हें भी पार्टी में वापस लाए। लेकिन फिलहाल दिग्विजय सिंह कांतिलाल भूरिया अरुण यादव विवेक तंखा अभी तक इस अभियान से दूरी बनाए हुए हैं। सुरेश पचौरी स्वास्थ्य कारणों से फिलहाल किसी भी कार्यक्रम में भाग लेने की स्थिति में नहीं हैं। इस सिलसिले में प्रदेश कांग्रेस महामंत्री मीडिया के के मिश्रा का कहना है कि पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव कोरोना पॉजिटिव है और कांतिलाल भूरिया अपने क्षेत्र झाबुआ में इस अभियान को चला रहे हैं। दिग्विजय सिंह और विवेक तन्खा संसद का सत्र होने के कारण उसमें व्यस्त है और पार्टी में अब किसी भी स्तर पर कोई गटबंदी नहीं है। कांग्रेस प्रवक्ता योगेश यादव कहते हैं कि यह कार्यक्रम 28 फरवरी तक चलना है। हर नेता अपने-अपने प्रभाव क्षेत्र में कांग्रेस की मजबूती के लिए काम करते दिखाई देंगे।  दरअसल प्रदेश कांग्रेस कमेटी पर पूरी तरह से कमलनाथ का दबदबा है क्योंकि वह प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के साथ ही राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी हैं। कुछ कांग्रेस नेताओं का कहना है कि घर-घर चलो अभियान कार्यक्रम की सूचना जिलों के कई पुराने कांग्रेसियों को दी ही नहीं गई। दिग्विजय सिंह के भाई चाचौड़ा विधायक लक्ष्मण सिंह जरूर अपने विधानसभा क्षेत्र में सक्रिय दिखाई दिए।
कमलनाथ के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा अगला चुनाव: 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की पंद्रह साल बाद सत्ता में वापसी हुई थी। इस वापसी में दिग्गज नेताओं की एकजुटता बेहद महत्वपूर्ण रही थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया का चेहर स्टार प्रचारक के तौर पर सामने था। दिग्विजय सिंह ने मैदानी कार्यकतार्ओं को एकजुट किया। लेकिन,सरकार बनने के बाद गुटबाजी फिर हावी हो गई। यह तय माना जा रहा है कि विधानसभा का अगला चुनाव कमलनाथ के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। कमलनाथ की रणनीति भी इसी ओर इशारा कर रही है।   शिवराज सिंह चौहान की सरकार और भाजपा के प्रति सबसे अधिक आक्रामक मुद्रा में केवल दिग्विजय सिंह ही नजर आ रहे हैं। अजय सिंह भी अपनी दावेदारी को मजबूत करने में लगे हुए हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सबसे ज्यादा नुकसान विंध्य क्षेत्र में ही हुआ  था। अजय सिंह खुद भी विधानसभा का चुनाव हार गए थे।
(लेखक सुबह सवेरे के प्रबंध संपादक हैं)

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