एक-एक वोट का… गणित लगा रहे दिग्गज

  • मतदान के बाद आंकड़ों का आंकलन शुरू
  • विनोद उपाध्याय
 दिग्गज

मप्र में इस बार रिकॉर्ड वोटिंग ने प्रत्याशियों के साथ ही पार्टियों का भी चकरा दिया है। अब मतदान के बाद भाजपा और कांग्रेस के दिग्गज नेताओं ने वार्ड स्तर पर एक-एक वोट का आंकलन शुरू करवा दिया है। खासकर उन सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों के होश उड़े हुए हैं, जिन सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबले है। जिस तरह से भाजपा और कांग्रेस ने सर्वाधिक मतदान के लिए ताकत लगाई थी, उसमें कौन-से वार्ड में काम हुआ और कौन-सा वार्ड फिसड्डी रहा, इसको लेकर भी संबंधित वार्ड प्रभारी और वार्ड संयोजकों से पूछताछ की जा रही है। इस बार भाजपा ने पूरी तरह से गुजरात पैटर्न पर चुनाव लड़ा। आला संगठन ने प्रदेश में ही नए-नए प्रयोग कर अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए कई तरह की कवायदें की हैं, वहीं 51 प्रतिशत वोट बैंक का लक्ष्य तो गृहमंत्री अमित शाह ने पहले ही दिया था। भोपाल में भी भाजपा के संगठन ने प्रवासी विधायकों को तो भेजा ही था, इसके साथ ही प्रत्येक विधानसभा पर विधानसभा प्रभारी, विधानसभा संयोजक भी बनाए थे। बूथ प्रभारी, बूथ संयोजक, बूथ अध्यक्ष के साथ-साथ शक्ति केन्द्र के संयोजकों की नियुक्ति भी की गई थी। अब इसके बाद भाजपा के पक्ष में किस तरह का परिणाम आएगा, इसकी राह भी संगठन देख रहा है, लेकिन उसके पहले ही सभी नगर एवं जिलाध्यक्षों से कहा गया है कि वे, सभी वार्डों से डाटा मंगवाए और पिछले डाटा के आधार पर उसका तुलनात्मक विश्लेषण करें, ताकि मालूम चल सके कि संगठन के लोगों ने किस प्रकार की मेहनत की है।
मप्र में साल 2018 के चुनाव की तुलना में 2023 में मतदान का प्रतिशत बढ़ा है। इसके बाद भी दिग्गज और सूरमाओं को टेंशन सता रहा है। इसके पीछे का कारण है कि कम मार्जिन से जीतने वाले नेताओं के इलाके में मतदान का प्रतिशत घटा है। 3 दिसम्बर को चुनाव परिणाम आना है, लेकिन उसके पहले ही रिपोर्ट तैयार कर भोपाल भिजवाना है। इससे एक आंकलन भी हो जाएगा कि पार्टी को किस सीट पर फायदा होगा और किस पर नुकसान। इस रिपोर्ट में 2018 का डाटा भी मांगा गया है। साल 2018 में कम अंतर से हार-जीत वकानी 30 से अधिक सीटें हैं। यहां पर 20 सीटी पर कम मतदात दोनों ही दलों के लिए चुनौती से करा है। पूरे प्रदेश में चुनाव की प्रक्रिया पूरी होने के बाद लेता कार्यकर्ताजों के साथ स्थानीय माहौल लेने में जुटे हुए हैं। इसके अलावा काम वोटिंग की वजह भी तलाशी जा रही है। आखिर चुनाव प्रचार में इस बात को कमी रही कि मतदाता घर से निकले ही नहीं और वोटिंग का प्रतिशत भी घटा है। प्रदेश को 230 क्षेत्रों में से 12 सीटों पर महिलाओं में 80 प्रतिशत से ज्यादा मतदान किया है। इन सीटों पर ही सबकी नजर रहने वाली है। महिलाओं के मतदान को लेकर भाजपा और कांग्रेस के अपने-अपने दावे हैं।  2018 चुनाव के मतदान को देखें तो इन सीटों पर महिलाओं में 60 प्रतिशत से ज्यादा मतदान किया था। इसमें से 27 पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। वहीं, भाजपा को सिर्फ 12 और दो सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी जीते थे। भाजपा को इन सीटों पर लाडली बहुला योजना का लाम मिलने की उम्मीद है तो कांग्रेस भी अपनी नारी सम्मान योजना से उम्मीद लगाए बैठी है। हालांकि इस बार दोनों ही पार्टी के बीच कड़ा मुकाबला है। जिन सीटों पर अधिक चुनौती है, उनमें ग्वालियर दक्षिण, कोलारस, दोना, राजनगर दमोह, जबलपुर उत्तर, राजापुर जावरा, सुवासरा ग्वालियर ग्रामीण, चंदला, गुन्नौर देवतालाव, मांधाता, इंदौर 5, नेपानगर , दतिया पिछोर, पथरिया, मुंगावली, मैहर और टिमरनी शामिल है।
अपने-अपने दावे
चुनाव में ज्यादा मतदान और महिलाओं में खास उत्साह को दोनों दल अपने पक्ष में मान रहे हैं। भाजपा का दावा है कि लाड़ली लक्ष्मी योजना का जादू चल गया, बहनों ने अधिक से अधिक वोट किया। सरकार की योजनाओं के कारण एससी-एसटी व ओबीसी वर्ग का प्रो-विकास वोट भाजपा को मिला। सरकार के खिलाफ कोई एंटी-इंकम्बेंसी नहीं थी। पार्टी के बूथ मैनेजमेंट के कारण उनके पक्ष के ज्यादा वोट पड़े और मतदान प्रतिशत बढ़ा। उधर, कांग्रेस का तर्क है कि बहनें ही नहीं सरकार से सभी वर्ग नाराज हैं, ज्यादा मतदान से उनकी नाराजगी झलकी है। भ्रष्टाचार व कमीशनखोरी भी चुनाव में बड़ा मुद्दा रहा जिससे लोगों ने कांग्रेस को वोट दिया। भाजपा की लाडली बहना योजना का कोई असर नहीं रहा बल्कि कांग्रेस के नारी सम्मान योजना के वचन को चुनाव में काफी समर्थन मिला।
दिग्गजों को सता रहा अनजाना डर
नरोत्तम मिश्रा से लेकर छिंदवाड़ा में कमलनाथ के सामने भी चुनौती है। सागर में भले ही भाजपा भरोसे में है, लेकिन चंबल में असमंजस की स्थिति बनी हुई है। नरेंद्र सिंह तोमर से लेकर माया सिंह और अरविंद भदौरिया भी संकट से बाहर नहीं है। इस बार 21 सीटें ऐसी रही, जहां त्रिकोणीय मुकाबला हुआ। इनमें से 12 सीटों पर भाजपा और पर कांग्रेस उम्मीदवार फंस गए। भाजपा कांग्रेस के बागी मैदान में डटे रहे। सपा, बसपा और आप ने भी टक्कर दी। एक सीट इन्हीं को जाती दिख रही है। परसवाड़ा, सीधी, सिरमौर, महू सतना रेठांव, नागौर, देवतालाब सुमावली, सिंगरौली, तहार बुरहानपुर विमली, जयसिंहनगर, मालपुर जैसदेही, भिंड , अटेर, मुरैना में भाजपा और कांग्रेस दोनों के प्रत्याशी तनाव में हैं। कई दिग्गजों की सीट पर बराबरी का मुकाबला है। इनमें कैलाश विजयवर्गीय , दीपक जोशी, उषा ठाकुर, जीतू पटवारी, तुलसीराम सिलावट, मोहन यादव,  यशपाल सिंह सिसोदिया, हरदीप सिंह डंग, ओमप्रकाश सकलेचा, बाला बच्चन, राजवर्धन सिंह दत्तीगांव, गणेश सिंह, रामखेलावन पटेल, देवराज सिंह, गिरीश गौतम रीति पाठक, बिसाहू लाल सिंह, राकेश गिरी ,हरिशंकर खटीक , शिशुपाल यादव ,अनिल जैन, अजय टंडन, भारत सिंह कुशवाहा, प्रीतम लोधी, नरोत्तम मिश्रा, अरविंद सिंह भदौरिया, इमरती देवी, नरेंद्र सिंह तोमर समेत दो दर्जन से अधिक नेताओं के सामने 50-50 जैसी स्थिति बन रही है। इन नेताओं के भविष्य का फैसला 3 दिसंबर को मतदान मतगणना से ही होगा।

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