यूपी की ‘बेचारी’ बसपा अब… मध्य प्रदेश में सक्रिय

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भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। हाल ही में उप्र विधानसभा चुनाव के परिणाम जिस तरह से बसपा के पूरी तरह से विरोध में आए हैं, उसके बाद बसपा के असितत्व पर ही सवाल खड़ा होना शुरू हो गए हैं। इस स्थिति से उबरने के लिए अब बसपा द्वारा मप्र पर नजर लगानी शुरू कर दी गई है। अगले दो सालों में जिन सात राज्यों में चुनाव होने हैं, उनमें अगर बसपा अपना प्रदर्शन नहीं सुधार पाती है तो उसका राष्ट्रीय स्तर का राजनैतिक दर्जा चुनाव आयोग द्वारा छीन लिया जाएगा। इसे देखते हुए अब  बसपा ने मप्र में पार्टी का संगठन मजबूत करना शुरू कर दिया है, जिससे की पार्टी अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन कर सके।
दरअसल मप्र ऐसा राज्य है जहां पर बसपा के लिए उप्र के बाद बेहतर संभावनाएं रही हैं, लेकिन बसपा सुप्रीमो मायाबती द्वारा मप्र को कभी महत्व नहीं दिया गया, जिसकी वजह से एक समय मप्र में तीसरी ताकत बनती दिख रही पार्टी का कुनबा ऐसा बिखरा की फिर वह कभी मजबूत होता नजर न हीं आया। अब चूंकि उप्र में पार्टी की जमीन पूरी तरह से खिसक चुकी है, ऐसे में अब मप्र पर उसकी नजर पड़ी है। यही वजह है कि चुनाव से पहले प्रदेश में संगठन को मजबूत कर पार्टी का जनाधार बढ़ाने के प्रयास शुरू कर दिए गए हैं। दरअसल अभी प्रदेश में पार्टी के महज दो विधायक हैं और वे भी भाजपा के साथ खड़े हुए दिखते हैं। प्रदेश में पार्टी को मजबूत करने के लिए अब पार्टी अध्यक्ष मायावती ने प्रदेश के संगठन को चार जोन (भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और रीवा) में बांटा है। इसके अलावा उनके द्वारा प्रदेश में 26 जिला प्रभारी और छह जिला अध्यक्षों को भी बदला गया है। उनका पूरा जोर अब प्रदेश में पार्टी को वर्ष 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव के मुकाबले के लिए तैयार करने पर है।  इसके लिए पार्टी द्वारा अब जिला और ब्लाक स्तर पर गतिविधियां बढ़ाने की योजना है। मध्य प्रदेश में वैसे भी नेताओं में वर्चस्व की लड़ाई के चलते बीते डेढ़ दशक में प्रभावशाली व चर्चित रहने वाले नेता बसपा को अलविदा कर चुके हैं। इसकी वजह से प्रदेश में बसपा की स्थिति मजबूत होने की जगह लगातार कमजोर होती जा रही है। अगर प्रदेश में बसपा के प्रर्दशन को देखें तो वर्ष 1993 और 1998 के विधानसभा चुनावों में बसपा को सर्वाधिक 11-11 सीटें मिली थीं। उस समय मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ एक राज्य हुआ करते थे। इसके बाद भी बसपा प्रमुख ने प्रदेश में पार्टी पर ध्यान नहीं दिया। यही नहीं इसके उलट उन नेताओं केो जरुर बाहर का रास्ता दिखा दिया गया, जो अपने सांगठनिक और राजनैतिक कौशल की वजह से पार्टी में बड़े नेता बनने का माद्दा रखते थे। यही वजह है कि इसके बाद भी प्रदेश में बसपा कभी मजबूत नहीं हो सकी। अगर प्रदेश में बसपा के प्रभाव को देखा जाए तो ग्वालियर-चंबल और विंध्य क्षेत्र में ही अब पार्टी का प्रभाव रह गया है। इसकी वजह से इन दोनों ही अंचलों में बसपा भाजपा और कांग्रेस के खेल को जरुर बिगाड़ती रहती है। मप्र में बसपा की हालात तब है, जबकि प्रदेश में कोई तीसरा बड़ा राजनैतिक दल नहीं है और प्रदेश में तीसरी ताकत की जगह रिक्त पड़ी हुई है।
पिछले चुनाव में यह रहा था प्रदर्शन
बीते वर्ष यानि की 2018 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने कांग्रेस को विंध्य तो ग्वालियर-चंबल में भाजपा को बड़ा नुकसान पहुंचाया था। उस समय पार्टी के सिर्फ दो प्रत्याशी भिंड से संजीव कुशवाह और पथरिया से रामबाई चुनाव जीतने में सफल हुई। बसपा ने विधानसभा की उन सीटों पर अधिक फोकस करने की तैयारी शुरू कर दी है, जहां पर वह दूसरे व तीसरे स्थान पर रही है, लेकिन मत दस हजार के आसपास मिले हैं। पार्टी ने इस तरह की करीब 70 सीटों को भी चिन्हित किया है। दरअसल प्रदेश में वर्ष 2003 में दो 2008 में 7 और 2013 में बसपा को चार सीटों पर जीत मिली थी। इसी तरह से अगर इन चारों चुनावों में बसपा को मिले मतों का औसत निकाला जाए तो उसे सात फीसदी के आसपास मत मिलते
रहे हैं।
यह किया गया फेरबदल
पार्टी को मजबूत करने के लिए अब पार्टी ने मप्र को संगठन की दृष्टि से चार जोन में बांटा है। इसके अलावा 26 जिला प्रभारी और छह जिला अध्यक्ष भी बदल दिए हैं। प्रत्येक जोन में 13-13 विधानसभा क्षेत्रों को रखा गया है। सबके अलग-अलग प्रभारी बनाए गए हैं। वहीं, जिला संगठन को सक्रिय करने के लिए 26 जिलों में नए प्रभारी बनाए गए हैं। छह जिलों में जिला अध्यक्षों को बदलकर संकेत दिए गए हैं कि जो काम नहीं करेगा, उसकी जगह दूसरे को मौका दिया जाएगा। बसपा ने ग्वालियर में सुनील बघेल, रीवा में बालकिशन चौधरी, भोपाल में जियालाल अहिरवार को और इंदौर में रमेश डाबर को जोन प्रभारी बनाया है। इसी तरह से श्योपुर में मिश्रालाल वैरवा, ग्वालियर में सतीशमंडेलिया, निवाड़ी में संजय सूर्यवंशी, होशंगाबाद में हेमराज आजाद, कटनी में जागीर सिंह भट्टी और हरदा में प्रेमलाल गन्नोरे को जिलाध्यक्ष बनाया गया है। प्रदेश कार्यालय सचिव सीएल गौतम का कहना है कि संगठन को चाकचौबंद बनाने के लिए राष्ट्रीय स्तर से परिवर्तन किया गया है। आने वाले समय में संगठन की गतिविधियां जमीन पर नजर आएंगी।
आप की भी नजर मप्र पर
पंजाब में मिली जीत से उत्साहित आम आदमी पार्टी की नजर भी मप्र है। यही वजह है कि पार्टी द्वारा सदस्यता अभियान और संगठन को मजबूत करने पर फोकस किया जा रहा है। मप्र में बीते एक महीने में लगभग 31 हजार लोगों ने आप की सदस्यता ली है। वैसे तो दिल्ली में सरकार बनने के बाद से मप्र में आप सक्रिय है, लेकिन यह पहला मौका है जब एक माह में आप की सदस्यता इतनी संख्या में लोगों ने ली हो। इससे पार्टी व पदाधिकारी  उत्साहित है। पार्टी ने मप्र में आगामी विधानसभा चुनावों को केंद्र बिंदु बनाकर रणनीति बनाना शुरू कर दी है। सूत्रों की माने तो पार्टी ने अभी से करीब आधा सैकड़ा नेताओं को आगामी चुनाव की तैयारी करने का इशारा भी कर दिया है , जिसकी वजह से वे अपने- अपने विधानसभा क्षेत्र में राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय हो गए। पंजाब में 16 मार्च को भगवंत मान द्वारा  मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद से मप्र में 15 अप्रैल तक लगभग 31 हजार लोगों ने सदस्यता ली है। इनमें अधिकांश दूसरी पार्टी के राजनीतिक कार्यकर्ता हैं। इनमें कांग्रेस व भाजपा में हाशिए पर चले गए कार्यकर्ता, पूर्व पार्षद आदि भी शामिल है। पार्टी द्वारा प्रदेश को सात जोन में बांटा गया है। इनके तहत आने वाले 4600 वार्डों में से पार्टी 2200 वार्डों में समितियों का गठन कर चुकी है।

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