‘अतिथियों’ के भरोसे चल रहे विश्वविद्यालय

  • मप्र में कॉलेजों की शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह बेपटरी

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में कॉलेजों की शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह बेपटरी हो चुकी है। सहायक प्राध्यापकों की भर्ती नहीं हो रही है। विश्वविद्यालय न तो समय पर परीक्षाएं आयोजित करवा पा रहे हैं और न ही परिणाम घोषित कर पा रहे हैं। पढ़ाई की तो पूछिए ही मत। कॉलेजों में पढ़ाई भी अतिथि विद्वानों के भरोसे है। हर साल उन्हें नियुक्त किए जाने की कवायद की वजह से हर शिक्षा सत्र में देरी हो रही है। दरअसल, मप्र में कई विश्वविद्यालय ऐसे हैं जहां की पढ़ाई अतिथि विद्वानों के भरोसे चल रही है।
सहायक प्राध्यापकों की कमी की वजह से कक्षाएं नहीं लग पातीं, इसका सीधा खामियाजा छात्रों को भुगतना पड़ता है। हालात ये हैं कि सरकारी कॉलेजों में सहायक प्राध्यापकों की कमी बढ़ती जा रही है। प्रदेश में चाहे केन्द्रीय मंत्री सिंधिया का क्षेत्र गुना, पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का छिंदवाड़ा हो या फिर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा का संसदीय क्षेत्र छतरपुर, इनमें उच्च शिक्षा देने वाले संस्थाओं में एक समानता है। इन नेताओं के क्षेत्रों में चल रहे विश्वविद्यालयों में 100 प्रतिशत प्राध्यापक, सह प्राध्यापक और सहायक प्राध्यापक के पद खाली हैं।
17 विश्वविद्यालयों में मात्र 364 प्राध्यापक
गौरतलब है कि मप्र में सरकार के पारंपरिक पाठ्यक्रमों के 17 विश्वविद्यालय संचालित हैं। इसमें 1949 में से 1585 प्राध्यापक, सह प्राध्यापक और सहायक प्राध्यापक के पद खाली हैं। यानी मात्र 364 प्राध्यापक की पदस्थ हैं, जबकि यहां विद्यार्थियों के पूरे प्रवेश हैं। हालांकि विश्वविद्यालय के कुलसचिव भर्ती प्राध्यापकों की करने के लिए विज्ञापन तो जारी किया, लेकिन बाद में भर्ती निरस्त कर दिया। यहां अतिथि विद्वानों के भरोसे पढ़ाई चल रही है। प्राध्यापकों की भर्ती नहीं होने की कई वजह बताई जा रही है। कहा जा रहा है कि कुलपति इस भर्ती प्रक्रिया से अपने आप को दूर रखना चाहते हैं। क्योंकि वे अपने आप को तमाम आरोप-प्रत्यारोप से बचाना चाहते हैं। वहीं विश्वविद्यालयों में बजट एक बड़ी समस्या है। विश्वविद्यालयों को अपने वित्तीय संसाधनों से शिक्षकों और कर्मचारियों को वेतन भत्ते देना पड़ता है। इसके चलते विश्वविद्यालय नई भर्ती कर अपने ऊपर और वित्तीय बोझ बढऩे को लेकर इसे टालने में लगे हैं। वहीं विश्वविद्यालय अधिनियम में प्राध्यापक, सह प्राध्यापक और सहायक प्राध्यापक की भर्ती मप्र लोक सेवा आयोग (एमपी पीएससी) से कराने का प्रावधान नहीं है। अधिनियम में सिर्फ विश्वविद्यालयों को ही इन पदों की भर्ती के लिए अधिकृत किया गया है। अभ्यर्थियों के स्कोर के आधार पर मैरिट तय होगी और इसी आधार पर इंटरव्यू के लिए अभ्यर्थियों को बुलाया जाएगा। एक कारण रोस्टर भीज् विश्वविद्यालयों में भर्ती कुल शैक्षणिक पदों के आधार पर आरक्षण तय किया जाता था। वर्ष 2019 में हाईकोर्ट में एक याचिका लगाई गई, जिसमें हाईकोर्ट ने यह फैसला दिया था कि विषय और विभाग के आधार पर आरक्षण का निर्धारण किया जाना चाहिए। इसके बाद ओबीसी आरक्षण का इश्यू आ गया, इससे भी उस समय प्रकिया में कई समस्याएं आईं।
इन विश्वविद्यालयों में 100 फीसदी पद खाली
आरएसएस विश्वविद्यालय छिंदवाड़ा, एमसीबी विश्वविद्यालय छतरपुर,केटीबी विश्वविद्यालय खरगोन, केटीटी विश्वविद्यालय गुना और आरएएल विश्वविद्यालय सागर में 100 फीसदी पद खाली हैं। वहीं एमपी भोज ओपन विश्वविद्यालय भोपाल, डॉ बी आर अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय, महू, आरडी विश्वविद्यालय जबलपुर, पं. एसएन शुक्ला विश्वविद्यालय शहडोल ऐसे विश्वविद्यालय हैं जहां पर 80 फीसदी से अधिक पद नहीं भरे गए हैं। इस संदर्भ में अपर मुख्य सचिव उच्च शिक्षा विभाग अनुपम राजन का कहना है कि भर्ती विश्वविद्यालयों में शैक्षणिक स्टाफ की भर्ती उन्हें खुद करना है। इसके लिए उन्हें कई बार पत्र लिखा गया है। कुछ विश्वविद्यालयों ने भर्ती के लिए विज्ञापन जारी किया है। हाल ही में हुई बैठक में भी विश्वविद्यालयों को राज्यपाल महोदय के माध्यम से निर्देश दिए गए हैं।

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