भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। केंद्रीय इस्पात राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते इन दिनों अपनी ही पार्टी में छटपटा रहे हैं। उनकी यह छटपटाहट उनके घर आयोजित मप्र व छत्तीसगढ़ के पार्टी के सांसदों की बैठक में साफतौर पर देखी गई। इसकी वजह है उनके इलाके में लगातार बढ़ता धर्मातंरण और विपक्षी दल कांग्रेस का बढ़ता प्रभाव।
दरअसल भाजपा सांसदों के घर पर कुछ दिनों के अंतराल में इस तरह की बैठक करने सांसदों के अलावा नेता भी जुटते हैं। इसमें वे आपस में सियासी व सामाजिक मामलों पर चर्चा करते हैं। हाल ही में कुलस्ते के घर पर हुई इसी तरह की बैठक में धर्मांतरण का मुद्दा जमकर छाया रहा। इस बैठक में मप्र के अलावा छग के पार्टी सांसद भी पहुंचे थे, सियासी चर्चाओं के साथ ही धर्मांतरण पर भी गंभीर चिंता जताई गई। खास बात यह है कि इस बैठक में विश्व हिंदू परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारी भी मौजूद थे। इस बैठक में दोनों प्रदेशों के करीब 40 भाजपा सांसदों की मौजूदगी में विहिप के पदाधिकारियों ने खासतौर पर धर्मांतरण पर विचार विमर्श किया। संघ के नेताओं ने भी इस संबंध में रोकथाम के लिए सभी सांसदों से अपने-अपने क्षेत्र में सक्रिय रहने को कहा। प्रदेश के भाजपा सांसद दिल्ली में कुछ अंतराल पर मिलने की परंपरा के अनुसार इस बार मेजबानी के लिए कुलस्ते की बारी थी। विहिप के पदाधिकारियों ने भी इस संबंध में राज्यों का ब्यौरा दिया। साथ ही यह भी बताया कि मौजूदा कानून के अलावा सरकार और क्या कदम उठा सकती हैं।
कुलस्ते पहले भी कह चुके हैं कि यदि जनजाति समाज के अंदर की मान्यता खत्म हो गई तो उनकी पहचान ही समाप्त हो जाएगी। आदिवासी क्षेत्र के लोग इस मुद्दे पर अब मुखर हो रहे हैं। किसी समाज को तोड़ने का प्रयास ठीक नहीं, ऐसे में विवाद की स्थितियां भी बनेंगी। बैठक में पार्टी के राज्यसभा सदस्य भी मौजूद थे। इस दौरान प्रदेश के जिन जिलों में इस तरह की घटनाएं हुई उनके बारे में विचार विमर्श हुआ। विहिप पदाधिकारियों और सदस्यों ने यह भी कहा कि देश के अंदर जो हिंदू परंपरा है वह सुरक्षित रहे यह पूरा देश चाहता है, लेकिन कुछ लोग योजनाबद्ध तरीके से लोगों को प्रलोभन देकर इसे भंग करने का प्रयास कर रहे हैं।
यह है छटपटाहट की वजह
दरअसल मप्र की मंडला लोकसभा क्षेत्र से सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते की पकड़ लगातार अपने संसदीय क्षेत्र में कमजोर होती जा रही है। वे 2014 के लोकसभा चुनाव में जहां मोदी लहर के बाद भी एक लाख 10 हजार मतों से जीत सके थे , वहीं इसके बाद 2017 के चुनाव में उनकी जीत का अंतर घटकर महज 90 हजार मतों के आसपास ही रह गया है। यही नहीं उनके संसदीय सीट के तहत आने वाली आठ विधानसभा क्षेत्रों में से 6 पर हार की वजह से भी विधानसभा के आम चुनावों में पार्टी को फजीहत का सामना करना पड़ा। पार्टी द्वारा उन्हें लगातार सरकार व संगठन में महत्व दिए जाने के बाद भी वे प्रदेश में अपने आदिवासी वर्ग पर पकड़ बनाने में भी असफल रहे हैं, जबकि मप्र में भाजपा को एक ऐसे आदिवासी चेहरे की तलाश है जो आदिवासी वर्ग पर पकड़ रखता हो। इसकी वजह से अब उन्हें गृह प्रदेश में भी संगठन ने महत्व देना लगभग बंद कर दिया है।
11/12/2021
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