दो दर्जन अफसरों को लगा…राजनीति में आने का चस्का

  •  गौरव चौहान
राजनीति

इस साल प्रदेश में होने वाले विधानसभा के आम चुनाव में अब महज चंद माह का ही समय रह गया है, ऐसे में नेताओं के साथ ही प्रदेश की अफसरशाही में भी माननीय बनने की ललक हिलोरें मारने लगी हैं। दरअसल इसकी वजह है, बीते एक दशक में कई अफसरों का माननीय बन जाना। इसमें भाजपा व कांग्रेस दोनों ही समय-समय पर उनका साथ देते रहे हैं। वैसे भी नौकरशाही बहुत करीब से माननीयों का जलवा ए जलाल देखती रहती है, सो स्वभाविक भी है उसकी तरफ आकर्षित होना। प्रदेश में करीब दो दर्जन सीटें ऐसी हैं, जहां पर इस बार पूर्व नौकरशाह भाजपा व कांग्रेस के लिए चुनौती देने की तैयारी में लगे हुए हैं। यह नौकरशाह पहले तो इन दोनों ही दलों से प्रत्याशी बनना चाहते हैं, लेकिन अगर टिकट नहीं मिला वे अन्य दलों से भी अपनी किस्मत आजमाने की तैयारी में गुपचुप लगे हुए हैं। ऐसे में यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि इस बार सत्ता बचाने को बेकरार भाजपा और सत्ता में वापसी के लिए पूरी ताकत झोंकने वाली कांग्रेस इन्हें कितनी तबज्जो देती है। इन नौकरशाहों में डिप्टी कलेक्टर, डॉक्टर, प्रोफेसर, टीचर और रिटायर्ड आईपीएस तक शामिल हैं।
चुनाव में उतरने के लिए इन नौकरशाहों की अपनी अलग-अलग रणनीति है। कुछ पद पर रहते हुए राजनीतिक दलों से बनाए गए संबधों का उपयोग अपने टिकट पाने के लिए कर रहे हैं तो कुछ जातिगत और सामाजिक संगठनों की गतिविधियों में सक्रिय होकर टिकट पाने के लिए जमीन तैयार करने में लगे हुए हैं। प्रदेश की राजनीति की बात करें तो पहले भी कई ब्यूरोक्रेट्स चुनाव लडक़र विधायक ही नहीं बल्कि मंत्री तक बन चुके हैं। कुछ अभी भी सक्रिय हैं। मुरैना जिले के मुरैना सीट से राकेश सिंह भाजपा की ओर से टिकट मांग रहे हैं। उनके पिता आईपीएस रहे और प्रदेश सरकार में पूर्व मंत्री भी रहे। पिता के बड़े कद और नाम के सहारे राजनीति में सक्रिय हैं। ऐसी ही एक महिला अधिकारी भी अब नौकरी छोडक़र राजनीति में आने को आतुर  हैं। यह हैं छतरपुर में पदस्थ एसडीएक निशा बांगरे। वे वैसे तो बालाघाट की रहने वाली हैं। उनके पिता रविंद्र बांगरे एजुकेशन विभाग में असिस्टेंट डायरेक्टर हैं। चुनाव में उतरने के लिए निशा द्वारा आमला में मकान भी बनाया जा चुका है। वे यहां पर मतदाता भी बन चुकी हैं। वे पूर्व में बैतूल जिले में साढ़े तीन साल तक एसडीएम रह चुकी हैं। इसकी वजह से उनके द्वारा असिस्टेंट रिटर्निंग ऑफिसर के तौर पर चुनाव भी कराया जा चुका है। इसके बाद से ही भी इलाके में लोगों से मेलजोल बढ़ाने के साथ ही सामाजिक स्तर पर भी सक्रिय बनी हुई हैं। हालांकि वे अभी इसे छिपा रही हैं कि किस पार्टी से चुनाव में उतरेंगी। उनका कहना है कि अभी इसका खुलासा करना सर्विस नियमों के खिलाफ होगा, लेकिन चुनाव लड़ सकती हूं। मेरे पास प्रशासनिक अनुभव है। पॉलिसी लेवल पर मैं बेहतर कर सकती हूं।
कांग्रेस में भी दावेदारी  
मंडला आरडी कॉलेज में हिंदी साहित्य के प्रोफेसर के पद से इस्तीफा देकर 2008 में कांग्रेस में शामिल हुए प्रो. संजीव छोटेलाल उईके 2013 में मंडला सीट से विधायक भी रह चुके हैं। उनके पिता भी 1980 से मंडला से सांसद और दो बार के विधायक रहे हैं। 2004 में कांग्रेस की रैली में जाते समय उदयपुरा के पास एक्सीडेंट में उनकी मौत हो गई थी। वे छात्र राजनीति में यूथ कांग्रेस से भी जुड़े रहे हैं। उनकी रामनगर में राहुल गांधी से मुलाकात हुई थी। उनका कहना है कि वे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के आग्रह और पिता के अधूरे कार्य और अपने निजी व पारिवारिक हितों को परे रखकर राजनीति में सक्रिय हुए हैं। इसी तरह से सारंगपुर क्षेत्र के रहने वाले महेश मालवीय राजगढ़ में ग्राम सेवक थे। अक्टूबर 2018 में इस्तीफा देकर कांग्रेस में शामिल हुए। पिछली बार पत्नी कला मालवीय को सारंगपुर से पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा चुके हैं। इस बार खुद दावेदारी कर रहे हैं। कबीर भजन गायक के तौर पर क्षेत्र में पहचान हैं। कहते हैं कि जनता की सेवा करने के उद्देश्य से राजनीति में आया हूं। इसी तरह से मंडला जिले के बम्हनी निवासी आईपीएस एनपी वरकडे अप्रैल 2018 में डीआईजी रीवा के पद से रिटायर हुए तो वे कांग्रेस में शामिल हो गए। दावा है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में मंडला-डिंडौरी की आठों विधानसभा सीटों से उनका और गुलाब सिंह उईके का नाम भी पैनल में था, लेकिन टिकट कमल मरावी को मिला था। तब तत्कालीन सीएम कमलनाथ ने उन्हें आगे ध्यान रखने की बात कही थी। उनका कहना है कि कुछ होता इससे पहले ही सरकार गिर गई। जिसके बाद से ही मैं मंडला विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहा हूं।
इस्तीफा देकर बने भाजपाई  
मंडला जिला अस्पताल में रेडियोलॉजिस्ट डॉ. मुकेश तिलगाम भी दो साल पहले इस्तीफा देकर भाजपाई बन चुके हैं। अब वे मंडला में खुद का नर्सिंग होम चलाते हैं। उनके द्वारा बीते माह ही भोपाल में शिवराज सिंह चौहान के सामने पार्टी की सदस्यता ली गई है। इसके बाद से वे लगातार मैदानी स्तर पर चुनावी तैयारियों के तहत सक्रिय हो चुके हैं। इसी तरह से डिंडौरी जिला अस्पताल में पदस्थ डॉ. देवेंद्र सिंह मरकाम  एमपी पीएससी के सदस्य बनाए जा चुके हैं। वे संघ के बेहद करीबी माने जाते हैं। वे इसी साल रिटायर होने वाले हैं। रिटायरमेंट के बाद भाजपा में शामिल होकर जिले की राजनीति में सक्रिय होना चाहते हैं। उनका कहना है कि सार्वजनिक जीवन में लोगों की सेवा की, रिटायरमेंट के बाद भी इसी मंशा से राजनीति में शामिल होना है। इसी तरह से बैतूल जिले की भैंसदेही निवासी हेमराज बारस्कर अभी इटारसी में जीएसटी ऑफिसर हैं। वे छात्र जीवन में एबीवीपी से जुड़े रहे। पिता गेंदू बारस्कर और भाई मनीष बारस्कर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से वास्ता रखते हैं। उनके पिता की अध्यक्षता में बैतूल में हुए बड़े ङ्क्षहदू सम्मेलन में बतौर मुख्यअतिथी संघ प्रमुख मोहन भागवत भी शामिल हो चुके हैं। वे बीत दो चुनाव से टिकट के लिए दावेदारी कर रहे हैं। इसी तरह से छिंदवाड़ा की पांडुर्णा विधानसभा क्षेत्र के रहने वाले हैं डॉ. प्रकाश उईके अभी दमोह में मजिस्ट्रेट हैं। वे लगातार आदिवासी इलाके में सक्रिय बने हुए हैं। उनकी संघ और जनजातियों के बीच अच्छी पकड़ है। वे नि:शुल्क कोचिंग सेंटर भी चलाते हैं। जनजातीय विषय, धर्मांतरण जैसे मुद्दों पर वे काम कर रहे हैं। वनवासी कार्यक्रम भी कराते रहते हैं। डॉ. उईके कहते हैं कि मेरी सक्रियता के चलते भाजपा से जुडऩे की पेशकश आई थी। इस बार पार्टी की ओर से यदि टिकट दिया जाता है, तो इस्तीफा देकर पांडुर्णा विधानसभा से चुनाव लडऩे को तैयार हूं।

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