उपाध्याय और सिकरवार में उलझी कांग्रेस की दो सीटें

कांग्रेस नेता लंबी कवायद के बाद भी नहीं सुलझा पा रहे  मामला
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। कांग्रेस अब तक प्रदेश में तीन बार में 28 में से 25 सीटों पर ही अपने प्रत्याशी घोषित कर सकी है। तीन सीटें अब भी उसके लिए प्रत्याशी चयन के लिए मुसीबत बनी हुई हैं। इन तीन सीटों में ग्वालियर, मुरैना और खंडवा शामिल है। दरअसल इन सीटों पर किसी एक नाम पर सहमति नहीं बन पा रही है। मुरैना लोकसभा सीट पर 1996 से लगातार बीजेपी के उम्मीदवार जीत दर्ज करते आ रहे हैं।
2008 के पहले यह सीट एससी के लिए आरक्षित थी, लेकिन 2009 में यह अनारक्षित हो गई। 1991 में आखिरी बार कांग्रेस के बारेलाल जाटव कांग्रेस के सांसद चुने गए थे। पीसीसी चीफ जीतू पटवारी मुरैना में जौरा विधायक पंकज उपाध्याय को उतारने के पक्ष में हैं। कांग्रेस के कई लीडर पूर्व विधायक नीटू सिकरवार को लड़ाने की पैरवी कर रहे हैं। पटवारी खेमे का तर्क है कि बीजेपी ने ठाकुर उम्मीदवार उतारा है। ऐसे में कांग्रेस का कैंडिडेट्स ब्राह्मण वर्ग से उतारने पर दूसरे समाजों के वोट मिल सकेंगे। वहीं, नीटू के लिए लॉबिंग कर रहे नेताओं का तर्क है कि मुरैना लोकसभा में ठाकुर वोटर निर्णायक हैं। सिकरवार परिवार का अच्छा खासा प्रभाव है। नीटू सिकरवार के चाचा वृंदावन सिंह सिकरवार 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा के उम्मीदवार थे और 2,42,586 वोट लेकर दूसरे नंबर पर रहे थे। तब कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. गोविंद सिंह तीसरे नंबर पर पहुंच गए थे। ऐसे में नीटू को लड़ाने से ठाकुर वोट कांग्रेस को मिल सकते हैं। वहीं, ओबीसी वर्ग से जसवीर सिंह गुर्जर दिल्ली दरबार से जोर लगा रहे हैं।
खंडवा में कोई मजबूत नाम नहीं
कांग्रेस सूत्रों की मानें तो खंडवा लोकसभा सीट पर कांग्रेस किसी दमदार नाम को लेकर फैसला नहीं कर पाई है। पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव को आलाकमान खंडवा से लड़ाने के पक्ष में है, लेकिन वे गुना से लडऩा चाहते थे। अब गुना में राव यादवेन्द्र यादव के उम्मीदवार बनने के बाद खंडवा में अरुण यादव, पूर्व कांग्रेस जिलाध्यक्ष पूनम पटेल और सुनीता के नामों पर मंथन चल रहा है।
ग्वालियर में भितरघात और विरोध की आशंका
ग्वालियर सीट पर मुरैना के कारण फैसला नहीं हो पा रहा है। मुरैना में यदि जौरा विधायक पंकज उपाध्याय को उतारा जाता है, तो ग्वालियर में नीटू सिकरवार को उम्मीदवार बनाया जा सकता है। नीटू के बड़े भाई सतीश सिकरवार ग्वालियर से लड़ाने के पक्ष में नहीं है। सिकरवार परिवार को भितरघात और विरोध की आशंका है। ग्वालियर के बीते चार चुनावों के परिणाम देखें तो नतीजे बताते हैं कि यह सीट कांग्रेस जीत भले ही नहीं पाई हो। लेकिन उसने भाजपा को कड़ी टक्कर दी। बीते चार चुनावों में से तीन में भाजपा ने यहां से अपने दिग्गज नेताओं यानी यशोधरा राजे सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर को उतारा। लेकिन उनके जीत का मार्जिन महज 26 हजार से 36 हजार के बीच रहा। साल 2019 में भी जब मोदी लहर के चलते प्रदेश की ज्यादातर सीटों पर भाजपा उम्मीदवार तीन से छह लाख मतों के अन्तर से जीते। ऐसे में ग्वालियर सीट पर भाजपा की जीत डेढ़ लाख ही रही। यही वजह है कि कांग्रेस नेताओं को उम्मीद है कि इस बार वे इस सीट को जीत सकते हैं। ग्वालियर सीट पर पूर्व सांसद रामसेवक सिंह बाबूजी दावेदारों में पहले स्थान पर हैं। वे साल 2003 में यहां से कांग्रेस सांसद चुने जा चुके हैं।  
भाजपा का तंज
बीजेपी कांग्रेस के टिकटों को लेकर तंज कस रही है। बीजेपी के सांसद विवेक नारायण शेजवलकर का कहना है कि कांग्रेस अब इस स्थिति में नहीं है कि वह बीजेपी का मुकाबला कर सके। उनके पास उम्मीदवारों का टोटा है और यही कारण है कि वह तय नहीं कर पा रहे  हैं कि किसको टिकट दें और किसको नहीं। बाकी कोई उम्मीदवार नहीं है, जो भाजपा का मुकाबला कर सके।  

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