भाजपा के आधे विधायकों के टिकट पर संकट का साया

  • आरएसएस के फीडबैक में भी नहीं उतर रहे जीत की कसौटी पर खरे
  • हरीश फतेहचंदानी
भाजपा

प्रदेश में आठ माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा द्वारा तय किए गए मानकों और मिल रहे फीडबैक में मौजूदा पार्टी के चालीस फीसदी विधायक खरे नहीं उतर रहे हैं। इसी तरह की जानकारी संघ के सर्वे में भी सामने आयी है। पार्टी व सरकार भी प्रदेश स्तर पर हकीकत पता करने के लिए सर्वे करा चुकी है। उन सर्वे की रिपोर्टस भी इसी तरह की आयी हैं। यही वजह है कि इन सभी रिपोर्टस और सर्वे के आंकलन पर हाल ही में दिल्ली में संघ नेताओं के साथ भाजपा के आला नेताओं के साथ मंथन किया गया है। इसमें प्रत्याशी चयन से लेकर चुनावी प्रबंधन तक पर चर्चा की गई है। जिस तरह का अब तक मैदानी फीडबैक सामने आया है, उसने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की चिंता बढ़ा रखी है। बताया जा रहा है कि मप्र को लेकर  संघ को जो इनपुट मिला है उनमें मप्र के 40 फीसदी से अधिक मौजूदा विधायकों की स्थिति कमजोर मानी जा रही है। इसके बाद से ही तय माना जा रहा है कि प्रदेश के ऐसे चालीस फीसदी विधायकों को इस बार पार्टी घर बिठा सकती हैं। इस मामले में मौजूदा छग प्रभारी ओम माथुर का बयान भी हाल ही में सुर्खियों में रह चुका है। मप्र और छग के क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल भी मैदानी स्तर पर वास्तविकता का पता लगाने के लिए मंडल और बूथ स्तर तक प्रवास कर मैदानी स्थिति के आंकलन लगातार कर रहे हैं। जामवाल ने प्रदेश के सभी जिलों में एक-दो बार अकेले दौरा कर मौजूदा स्थिति का आंकलन कर लिया है। इसके अलावा सत्ता-संगठन के स्तर पर अलग-अलग जो सर्वे रिपोट्र्स मिली हैं उनसे भी यही स्थिति सामने आई है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय मंत्री अमित शाह व राजनाथ सिंह की हाल ही में संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रय होसबाले और वरिष्ठ प्रचारक सुरेश सोनी के साथ इस मामले में लंबी चर्चा भी हुई है। इस दौरान उन सभी राज्यों को लेकर भी विचार विमर्श किया गया , जिनमें इसी साल चुनाव होने हैं।
आकांक्षी सीटों पर पहले से ही मुसीबत…
प्रदेश की सभी विधानसभा सीटों का जो फीडबैक संघ को भेजने की बात सामने आ रही है। उसके अनुसार बताया जाता है कि 40-50 फीसदी मौजूदा सीटों को डेंजर जोन में रखा गया है। इसमें मौजूदा जनप्रतिनिधियों की एंटी इनकम्बेंसी भी सामने आई है। यूपी-गुजरात सहित आठ आकांक्षी (हारी हुई) सीटों के लिए विशेष रुप से संघ के पूर्व संगठन मंत्रियों सहित पूर्व सांसद-विधायकों को प्रभारी भी बनाया गया है। इन प्रभारियों से जो फीडबैक मिला है वह भी संतोषप्रद नहीं बताया गया है।
यूपी व गुजरात में कर चुके है सफल प्रयोग
छग के प्रदेश प्रभारी माथुर ने हाल ही में मीडिया से चर्चा में संकेत दिए थे कि गुजरात और यूपी की तरह यहां भी 40 प्रतिशत सीटों पर बदलाव किया जाएगा। उनके द्वारा साफ कहा जा चुका है कि पार्टी इस बार टिकट बहुत सोच समझकर ही देगी, जिसमें पहली प्राथमिकता होगी चुनाव जीतना। उनके इस बयान को मध्यप्रदेश से जोड़कर भी देखा जा रहा है। इसकी वजह है प्रदेश में भाजपा की सरकार है और माननीयों के साथ ही सरकार को लेकर अत्याधिक एंटी इनकम्बेंसी बनी हुई है। जो पार्टी के रणनीतिकारों के लिए मुसीबत बनी हुई है।
मंत्रियों ने भी बढ़ाई ङ्क्षचता
संघ भाजपा की बड़ी चिंता ऐसे मंत्री भी बने हुए हैं, जो सरकार का बेहद अहम हिस्सा होने के बाद भी अपनी लोकप्रियता बरकरार नहीं रख पा रहे हैं। इनमें कई वरिष्ठ मंत्रियों की भी सीटें बताई जा रही हैं। यही नहीं कई मंत्रियों की सीटें कड़े मुकाबले वाली भी बताई गई हैं। हारने वाली सीटों में शामिल ऐसी सीटों ने भी भाजपा की ङ्क्षचताए अधिक बढ़ा रखी हैं। इसकी वजह है बीते चुनाव में प्रदेश सरकार के तेरह मंत्रियों को हार का सामना करना पड़ा था। अगर बीते चुनाव में यह मंत्री नहीं हारते तो भाजपा को 2018 में ही बहुमत हासिल हो जाता और उसे 15 माह तक विपक्ष में नहीं बैठना पड़ता।  तब हारने वाले मंत्रियों में  तत्कालीन महिला एवं बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनीस, भोपाल दक्षिण-पश्चिम विधानसभा सीट पर राजस्व मंत्री उमाशंकर गुप्ता , छतरपुर जिले में मलहरा सीट पर ललिता यादव, शरद जैन जबलपुर उत्तर पर , मंत्री जयंत मलैया दमोह सीट पर ,बड़वानी जिले की सेंधवा सीट पर अंतर सिंह आर्य , जयभान सिंह पवैया ग्वालियर सीट पर भिण्ड जिले की गोहद सीट पर लालसिंह आर्य, मुरैना सीट पर रुस्तम सिंह , दीपक जोशी देवास जिले की हालपिपल्या सीट पर , ग्वालियर दक्षिण सीट पर नारायण सिंह कुशवाह , शाहपुरा सीट पर ओमप्रकाश धुर्वे तो वहीं खरगोन विधानसभा सीट से बालकृष्ण पाटीदार का नाम शामिल है।

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