- आदिवासियों पर दर्ज मामलों को वापस लेगी सरकार
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। 2008 के बाद मप्र सरकार एक बार फिर से आदिवासियों पर दर्ज वन अपराध वापस लेने की तैयारी कर रही है। यानी 16 साल बाद एक बार फिर आदिवासियों को अपराधमुक्त किया जाएगा। सरकार स्तर पर यह फैसला होने के बाद वन विभाग ने हर साल दर्ज होने वाले करीब 50 हजार वन अपराधों में से आदिवासियों के प्रकरणों की छंटाई शुरू कर दी है। विभाग का दावा है कि इस संबंध में निर्देश आते ही कार्यवाही शुरू कर दी जाएगी। आदिवासियों पर वन भूमि पर कब्जे, अवैध कटाई सहित अन्य मामलों में पिछले 10 साल में करीब 15 हजार प्रकरण दर्ज हुए हैं। राज्य सरकार आदिवासियों पर दर्ज वन अपराध वापस लेने जा रही है। इसके लिए सरकार ने वन विभाग को एक्शन प्लान बनाकर प्रकरणों का निराकरण करने के निर्देश दिए हैं। यही नहीं, जो प्रकरण न्यायालयों में विचाराधीन है, उन्हें तत्काल शासकीय अधिवक्ता के माध्यम से निराकरण कराने के लिए कहा गया है। पीसीसीएफ संरक्षण शाखा ने जारी निर्देशों में कहा गया है कि सभी डीएफओ आदिवासियों पर दर्ज किये गये वन अपराध प्रकरणों को शासन की मंशा के अनुरूप नियमानुसार त्वरित रूप से नस्तीबद्ध करने के लिए कार्रवाई करें। इसके अलावा, वन क्षेत्र में अतिक्रमण हटाने की कार्रवाही भी की जाए। सरकार ने आदिवासियों पर दर्ज आपराधिक प्रकरण वापस लेने का निर्णय लिया है। इसमें वन अपराध भी शामिल हैं। सूत्रों के मुताबिक जंगलों में रहने और रोजमर्रा की जरूरतों के चलते आदिवासियों पर सबसे ज्यादा अपराध भी वन विभाग ही दर्ज करता है। इसमें लकड़ी चोरी, वन भूमि पर अतिक्रमण और शिकार के मामले होते हैं। वर्ष 2008 से अब तक हर साल करीब एक हजार मामले दर्ज हुए हैं। पीसीसीएफ संरक्षण शाखा ने कालातीत वन अपराध प्रकरणों की समीक्षा वन मंडल स्तर पर स्वयं वनमंडलाधिकारी निरंतर करते रहें। इसे अत्यंत गंभीरता से लिया जाए। मुख्य वनसंरक्षक भी समय-समय पर मासिक बैठक में इस बिन्दु समीक्षा कर यह तय करेंगे कि कोई प्रकरण कालातीत न हो। भारतीय वन अधिनियम 1927 में हुए नवीन संशोधनों का अध्ययन कर अधीनस्थ स्टाफ को अवगत कराया जाए। वन विभाग विभिन्न वन अपराधों में राजसात किए गए वाहनों का सरकारी नंबर लेकर उनका विभागीय कार्यों में उपयोग करेगा। इस संबंध में उच्च स्तर से निर्देश जारी किये गये हैं। जारी निदेशों में कहा गया है कि सभी वनमंडलों के अंतर्गत वन अपराध प्रकरणों में राजसात किए गए वाहनों में यदि कोई वाहन विभागीय उपयोग हेतु उपलब्ध हो, तो उसका विधिवत प्रस्ताव तैयार कर मुख्य वनसंरक्षक विभागीय उपयोग करने की अनुमति प्रदान करेंगे। साथ ही अपर प्रधान मुख्य वनसंरक्षक (समन्वय) भोपाल मुख्यालय से वाहन उनके वनमण्डल को आवंटित कराएंगे एवं आरटीओ भोपाल से सरकारी नंबर एमपी- 02 प्राप्त करेंगे। यदि उनके वनमंडल में वाहनों की आवश्यकता न हो, तो अन्य वनमंडलों से वाहन उपयोग में लिए जाने का अनुरोध कर सकते हैं।
हर साल 50 हजार वन अपराध दर्ज
उल्लेखनीय है कि विभाग आमतौर पर हर साल 50 हजार वन अपराध दर्ज करता है। इनमें से करीब आठ हजार मामले आदिवासियों के खिलाफ दर्ज किए जाते हैं। जबकि करीब छह हजार मामले पांच सौ, एक हजार रुपए के अर्थदंड के बाद समाप्त हो जाते हैं और शेष मामले कोर्ट तक पहुंचते हैं। सरकार ने विधानसभा चुनाव के ठीक पहले वर्ष 2008 में भी आदिवासियों के खिलाफ तमाम कोर्ट में चल रहे आपराधिक प्रकरण वापस लिए थे। तब विभाग ने 87 हजार 549 वन अपराध वापस लिए थे। प्रधान मुख्य वन संरक्षक डॉ श्रीवास्तव ने बुरहानपुर के फील्ड के अफसरों को आपराधिक प्रकरण के निराकरण के लिए 3 महीने का समय दिया है। प्रदेश में सबसे अधिक वन अपराध के प्रकरण बुरहानपुर में ही दर्ज हुए हैं। डॉक्टर श्रीवास्तव ने अपने पत्र में स्पष्ट लिखा है कि बुरहानपुर में आदिवासियों पर वन अधिनियम 1927 और वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 के अंतर्गत दर्ज 513 प्रकरण न्यायालय में लंबित है। सरकारी वकीलों के जरिए इन प्रकरणों का निराकरण करवाएं। यहां यह उल्लेखनीय है कि बुरहानपुर जिले में कुल 1 लाख 90 हजार 100 हेक्टेयर जंगल है। 17000 हेक्टेयर वन भूमि अतिक्रामकों को पट्टे के रूप में बांट दी गई है।
तीन महीने का एक्शन प्लान
जानकारी के अनुसार 10 वर्षों में 15,000 से अधिक आदिवासियों पर दर्ज वन अपराध को वापस लेने के लिए वन विभाग के एक्शन प्लान में न्यायालयों में विचाराधीन प्रकरणों को निपटाने के लिए शासकीय अधिवक्ताओं को कहा गया है। वहीं पीसीसीएफ संरक्षण शाखा ने अन्य वर्ग पर दर्ज वन अपराधिक प्रकरण वापस होंगे अथवा नहीं, यह स्पष्ट नहीं किया है। जानकारी के मुताबिक निर्देशों के बाद ही प्रकरणों को समाप्त करने के लिए प्रधान मुख्य वन संरक्षक (संरक्षण) डॉक्टर अजीत कुमार श्रीवास्तव ने एक्शन प्लान तैयार कर सीसीएफ और डीएफओ को भेज दिया है। एक्शन प्लान में कहा गया है कि आगामी 3 माह में वन अधिनियम 1927 एवं वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 के अंतर्गत अनुसूचित जनजाति वर्ग के व्यक्तियों के विरुद्ध विगत 10 वर्षों में पंजीबद्ध प्रकरणों के निराकरण किया जाए। डॉक्टर श्रीवास्तव द्वारा संकलित किए गए आंकड़े के मुताबिक विभाग के पास 3852 प्रकरण लंबित है।