मप्र के ‘पावर’ से दौड़ रही रेलगाडिय़ां

 ‘पावर’
  • सौर ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना प्रदेश

विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र बिजली के उत्पादन में आत्मनिर्भर है। प्रदेश में ताप विद्युत और जल विद्युत से परंपरागत रूप से विद्युत उत्पादन होता रहा है। ताप संयंत्रों से पर्यावरण पर पड़ रहे प्रभाव को देखते हुए राष्ट्रीय स्तर पर नवकरणीय ऊर्जा को प्राथमिकता दी गई है। नवकरणीय ऊर्जा में सौर ऊर्जा प्रमुख है। सौर परियोजना से उत्पादित बिजली की लागत ताप और जल विद्युत उत्पादन से जहां कम होती है, वहां इससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होता। मप्र में भी नवकरणीय ऊर्जा उत्पादन को प्राथमिकता देने की रणनीति मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के दिशा-निर्देशन में काम हो रहा है। इसका परिणाम यह देखने को मिल रहा है कि आज मप्र सौर ऊर्जा उत्पादन के मामले में सिरमौर बन गया है। आज सौर ऊर्जा के क्षेत्र में मप्र आत्मनिर्भर बन गया है। यही नहीं मप्र में उत्पादित होने वाली सौर ऊर्जा यानी पावर से रेलगाडिय़ां दौड़ रही हैं। प्रधानमंत्री मोदी की आत्मनिर्भर भारत के प्रति प्रतिबद्धता का लक्ष्य 2047 तक भारत को ऊर्जा के मामले में स्वतंत्र बनाना है। वैश्विक स्तर पर पर्यावरण संरक्षण के लिए निरंतर कार्य किये जा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सपनों के अनुकूल पर्यावरण संरक्षित प्रदेश बनने में मप्र निरंतर आगे बढ़ रहा है। आज मप्र मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में सौर ऊर्जा के क्षेत्र में नये कीर्तिमान रचने जा रहा है। वर्ष 2012 में प्रदेश की लगभग 500 मेगावॉट नवकरणीय ऊर्जा की क्षमता थी। वर्तमान में कुल क्षमता बढक़र 7 हजार मेगावॉट हो गयी है, जो कि विगत 12 वर्षों में लगभग 14 गुना बढ़ी है। राज्य की कुल ऊर्जा क्षमता में नवकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी बढक़र  21 प्रतिशत हो गयी है।
2030 तक 20 हजार मेगावॉट उत्पादन का लक्ष्य
मप्र में सौर ऊर्जा की कई परियोजनाओं पर काम चल रहा है। इसमें आगर, धार, अशोकनगर, भिंड, शिवपुरी और सागर जिले शामिल हैं। यहां 7,500 मेगावाट क्षमता के संयंत्र लगाए जाएंगे। इसके लिए 15 हजार हेक्टेयर भूमि भी चिह्नित कर ली गई है। ऊर्जा विभाग के अपर मुख्य सचिव मनु श्रीवास्तव का कहना है कि बिजली के मामले में मध्य प्रदेश सरप्लस राज्य है। उत्पादन के साथ-साथ दिन में खपत बढ़ाने पर भी जोर दिया जा रहा है। भारतीय रेल को सात राज्यों में सौर ऊर्जा दे रहे हैं। जल्द ही प्रदेश के मुरैना में स्थापित होने संयंत्र से उत्तर प्रदेश को भी बिजली देंगे। राज्य सरकार की नवकरणीय ऊर्जा की उत्पादन क्षमता को वर्ष 2030 तक बढ़ाकर 20 हजार मेगावॉट करने की योजना है। आज प्रदेश में मौजूद रीवा और ओंकारेश्वर जैसी विश्व-स्तरीय सौर परियोजनाएं देश में राज्य सरकार के दृढ़ संकल्प और इच्छा-शक्ति का गौरव-गान कर रही हैं। मप्र नवकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में नवाचार करने में अग्रणी रहा है। रीवा सोलर प्रोजेक्ट 1590 हेक्टेयर क्षेत्र में स्थापित है। यह विश्व के सबसे बड़े सिंगल साइड सौर संयंत्रों में से एक है। इस प्रोजेक्ट के क्रियान्वयन को एक आदर्श के रूप में पहचान मिली है। परियोजना से उत्पादित ऊर्जा का 76 प्रतिशत अंश पावर मैनेजमेंट कंपनी उपयोग कर रही है। पहली बार ओपन एक्सेस से राज्य के बाहर दिल्ली मेट्रो जैसे व्यावसायिक संस्थान को उत्पादित बिजली का शेष 24 प्रतिशत अंश भी प्रदान किया जा रहा है। इससे प्रतिवर्ष 15.7 लाख टन कार्बन डाई आक्साइड उत्सर्जन को रोका जा रहा है, जो 2 करोड़ 60 लाख पेड़ लगाने के बराबर है।  
6,418 मेगावाट बिजली का उत्पादन
ताप विद्युत पर निर्भरता कम करने और पर्यावरण संरक्षण के लिए देशभर में नवकरणीय ऊर्जा को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इस दिशा में मप्र तेजी से काम कर रहा है। वर्तमान में 6,418 मेगावाट बिजली का उत्पादन हो रहा है। दिन में उत्पादित बिजली का अधिक से अधिक उपयोग सुनिश्चित करने के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं।  मध्य प्रदेश में नवकरणीय ऊर्जा क्षमता 12 वर्ष में 12 गुना वृद्धि हुई है। 2012 में सौर, पवन, बायोमास और लघु जल परियोजनाओं से 491 मेगावाट विद्युत का उत्पादन होता था, जो 2024 में बढकऱ 6,418 मेगावाट हो गया है। सौर ऊर्जा के क्षेत्र में सर्वाधिक वृद्धि हुई है। अब स्थापित क्षमता 3,500 मेगावाट हो गई है। दिन में उत्पादित इस ऊर्जा का उपयोग अधिक से अधिक करने के लिए सरकार कई कदम उठा रही है। औद्योगिक इकाइयों को दिन में खपत बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, तो एक अप्रैल 2025 से घरेलू उपभोक्ताओं को भी दिन में विद्युत की खपत पर ऊर्जा प्रभार में 20 प्रतिशत की छूट दी जाएगी।
भारतीय रेल को प्रतिदिन 195 मेगावाट बिजली
मप्र में उत्पादित सौर ऊर्जा से भारतीय रेल को भी पावर मिल रहा है। अप्रैल 2024 से भारतीय रेल को प्रतिदिन 195 मेगावाट बिजली दी जा रही है। इसका उपयोग वह गोवा, झारखंड, महाराष्ट्र, दिल्ली, बिहार, उत्तर प्रदेश और ओडिशा में ट्रेनों के संचालन में कर रहा है। इसका लाभ मप्र के साथ-साथ रेलवे को भी हो रहा है। रीवा में उत्पादित सौर ऊर्जा से दिल्ली मेट्रो का संचालन हो रहा है। वर्तमान में सात राज्यों (गोवा, झारखंड, महाराष्ट्र, दिल्ली, बिहार, उत्तर प्रदेश और ओडिशा) में ट्रेनें मप्र में उत्पादित सौर उर्जा से दौड़ रही हैं। भारतीय रेल को आगर, शाजापुर और नीमच स्थित 1,500 मेगावाट के सोलर प्लांट से प्रतिदिन 195 मेगावाट बिजली की आपूर्ति की जा रही है। इसके लिए 25 वर्ष का अनुबंध किया गया है। नवकरणीय ऊर्जा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि 750 मेगावाट क्षमता के रीवा प्लांट से 26 प्रतिशत बिजली दिल्ली मेट्रो को दी जा रही है। इससे उसे लगभग सौ करोड़ रुपये की वार्षिक बचत हो रही है। इसकी तरह भारतीय रेल को भी ढाई सौ करोड़ रुपये से अधिक की बचत होगी। दरअसल, आगर स्थित संयंत्र से उत्पादित बिजली की दर 2.44 रुपये प्रति यूनिट, शाजापुर संयंत्र की 2.33 रुपये प्रति यूनिट और नीमच संयंत्र से उत्पादित बिजली की न्यूनतम दर 2.14 रुपये प्रति यूनिट है। 1,500 मेगावाट के इन तीनों संयंत्रों से ही भारतीय रेल को बिजली दी जा रही है। 195 मेगावाट के अतिरिक्त जो बिजली उपलब्ध है, उसे मध्य प्रदेश पावर मैनेजमेंट कंपनी लिमिटेड ले रही है। संयंत्रों की स्थापना से पहले ही सरकार यह गारंटी दे रही है कि जो भी बिजली बनेगी, उसे या तो सरकार स्वयं लेगी या फिर किसी देने अनुबंध करेगी।

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