सरकारी विभागों में लेखाधिकारियों का टोटा

 प्रशासनिक व्यवस्था
  • ग्यारह साल से नहीं हुई अधीनस्थ लेखा सेवा परीक्षा

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में प्रशासनिक व्यवस्था में रीढ़ की हड्डी समझे जाने वाले लेखाधिकारियों का टोटा है। आलम यह है कि लेखाधिकारियों की कमी का असर विभागों पर भी पड़ रहा है। लेकिन विडंबना यह है कि सरकार ने 11 साल में अधीनस्थ लेखा सेवा परीक्षा का आयोजन ही नहीं किया है। इससे सरकारी विभागों का काम प्रभावित हो रहा है।
गौरतलब है कि लिपिक बल से सरकार का दस्तावेजी प्रशासनिक ढांचा मजबूत होता है। लेकिन विडंबना यह है कि ग्यारह साल हो गये हैं, इस पोस्ट को भरने के लिए विभाग ने अधीनस्थ लेखा सेवा परीक्षा नहीं कराई है।  एक प्रकार से यह पद अघोषित रूप से समाप्त कर दिया गया है। इससे विभागों में लेखाधिकारियों की कमी बनी हुई है। उल्लेखनीय है कि शासन के नियम अंतर्गत विभागों में जितने भी फाइनेंशियल मामले होते हैं उनकी निगरानी करने का काम लेखाधिकारी का होता है। जितनी भी लेन और देनदारियां होती हैं, उनसे संबंधित देयकों पर लेखाधिकारी की टीप लगने के बाद ही इसको हरी झंडी मिलती है। बाबुओं द्वारा जो बिल तैयार किए गए, उनका परीक्षण, यदि इसमें कोई खामी है तो  उसको ठीक कर अग्रेषित करने का काम लेखाधिकारी का होता है।
हर तीन साल में होगी थी परीक्षा
अधीनस्थ लेखा सेवा परीक्षा परीक्षा हर तीन साल में वित्त विभाग के अधीन कोष एवं लेखा विभाग आयोजित करता रहा है। इस परीक्षा में एकाउंट ट्रेनिंग पास एवं कम्प्युटर में दक्षता हासिल करने वाले लिपिक ही बैठने के लिए पात्र रहते हैं। बाबुओं की तीनों श्रेणियों में दक्ष लोग परीक्षा पास कर लेखाधिकारी बनते रहे हैं। वर्ष 2013 से कोई परीक्षा नहीं हुई जिससे हर विभाग में पद रिक्त पड़े हुए हैं। इससे विभागीय काम की गतिविधियां प्रभावित हो रही हैं। जल संसाधन, लोक निर्माण, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी, ग्रामीण यांत्रिकी, पंचायत एवं ग्रामीण विकास, लोक स्वास्थ्य कल्याण  जैसे विभाग ट्रेजरी को पत्र भी लिख चुके हैं, लेकिन आज तक यह परीक्षा आयोजित नहीं कराई गई है। जल संसाधन के रिटायर्ड अधीक्षक एमपी द्विवेदी का कहना है कि प्रशासनिक व्यवस्थाओं को संभालने के लिए इस पद पर परीक्षा जरूरी है। एक सोची समझी रणनीति के तहत इस परीक्षा को बंद किया गया है। एक प्रकार से यह पद ही अघोषित रूप से समाप्त कर दिया गया।
हर जिले में यह पद रिक्त
विभागों में लेखापाल की परीक्षा नहीं होने के कारण वरिष्ठ पदों की संरचना रिक्त पड़ी है। यही लेखाधिकारी वरिष्ठता के आधार पर सहायक कोषालय अधिकारी बनते रहे हैं। इन्हीं को प्रमोशन देकर कोषालय अधिकारी बनाया जाता रहा है। चूंकि अनेक विभागों की अपनी-अपनी पद संरचनाएं होती हैं, इसलिए इनमें से कनिष्ठ और वरिष्ठ लेखापरीक्षक के पद पर पहुंचाया जाता रहा है। हर जिले में यह पद रिक्त हैं। प्रभार पर संपूर्ण प्रदेश में इन पदों से व्यवस्थाओं को संभाला जा रहा है।  विभागों में लेखापाल परीक्षा के लिये योग्य होने के बाद भी लिपिक बिना लाभ लिए रिटायर्ड हो रहे हैं। लिपिकों का कहना है कि अगर इस पद पर परीक्षा कराई जाती तो निश्चित तौर पर अपनी योग्यता के आधार पर आगे के पद पर आसानी से बैठ सकते थे, लेकिन इस पर वित्त विभाग का कोई ध्यान नहीं है। जबकि कोरोना के पहले तत्कालीन वित्तमंत्री ने बोला भी था कि यह परीक्षा शीघ्र आयोजित होगी। अभी तक किसी विभाग में यह एग्जाम शुरू नहीं हुआ है। स्कूल शिक्षा विभाग के लेखाधिकारी संजय दुबे का कहना है कि अनेक विभाग निरंतर फायनेंस डिपार्टमेंट को पत्र लिखते रहे है, लेकिन इस विषय में काई ध्यान
नहीं दिया जा रहा है। जबकि विभागों में इस पद को भरने की सख्त जरूरत है। हम भी निरंतर मांग उठा रहे हैं।

Related Articles