ग्वालियर: प्रत्याशी से अधिक तोमर की प्रतिष्ठा दांव पर

प्रतिष्ठा दांव पर

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मध्य प्रदेश के चार महानगरों में से एक ग्वालियर बेहद महत्वपूर्ण लोकसभा सीट है। इस लोकसभा सीट में ग्वालियर के अलावा शिवपुरी जिले का एक हिस्सा भी आता है। यहां की राजनीति भी सिंधिया घराने के इर्द-गिर्द ही बनी रहती है। इस सीट पर इस बार भाजपा व कांग्रेस ने हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में हारे प्रत्याशियों पर ही दांव लगाया है। इसमें भाजपा के भारत सिंह कुशवाह तो कांग्रेस के प्रवीण पाठक प्रत्याशी हैं। इस सीट पर भाजपा के कुशवाह से अधिक प्रतिष्ठा विधानसभा अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर की दांव पर है। इसकी वजह है उनकी पसंद पर ही कुशवाह को टिकट दिया गया है। यह ऐसी सीट है, जिसका चुनावी इतिहास फिल्मी कहानी जैसा रहा है। इस सीट को महल के प्रभाव वाली सीट माना जाता है। यही वजह है कि इस सीट पर माधवराव सिंधिया से लेकर यशोधरा राजे तक चुनाव जीत चुकी हैं। यह ऐसी सीट है जिसका राजनैतिक असर पूरे अंचल में दिखता है। ग्वालियर ऐसा शहर है, जो पूर्व में गुर्जर प्रतिहार, तोमर और कछवाहा राजवंशों की राजधानी रहा है।
ग्वालियर शहर की राजनीति पर वैसे तो किसी पार्टी का वर्चस्व कम और राजघराने का वर्चस्व ज्यादा होने के बाद भी दूसरे प्रत्याशी भी जीतते रहे हैं। गौरतलब है कि माधवराज सिंधिया खुद यहां से 1984 से लेकर 1998 तक सांसद रहे हैं। इसके बाद 2007 के उपचुनाव में उनकी बहन यशोधरा राजे सिंधिया सासंद चुनी गई थीं। 2014 में यहां से नरेंद्र सिंह तोमर और  2019 में भाजपा के ही विवेक नारायण शेजवलकर ने जीत दर्ज की थी। शेजवलकर ने कांग्रेस के अशोक सिंह को करीब डेढ़ लाख वोटों से शिकस्त दी थी।
पिछले लोकसभा चुनाव के नतीजे
2019 का चुनाव मोदी लहर का माना गया, ये ऐसा चुनाव था जब प्रदेश में 29 में से 28 सीटें बीजेपी ने जीत ली थीं। इस चुनाव में ग्वालियर सीट पर भाजपा ने विवेक नारायण शेजवलकर को तो कांग्रेस ने अपने पुराने खिलाड़ी रहे अशोक सिंह को उतारा था। इस चुनाव में भाजपा को 6 लाख 27 हजार 250 जबकि कांग्रेस को 4 लाख 8 हजार 408 मत मिले थे। इस चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी ने 2 लाख 18 हजार 842 वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी। इसके पूर्व 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने ग्वालियर लोकसभा से नरेंद्र सिंह तोमर को टिकट दिया था। इस चुनाव में तोमर ने कांग्रेस के अशोक सिंह को 29,699 वोट से हराया था। इसी तरह से 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की यशोधरा राजे सिंधिया ने कांग्रेस के अशोक सिंह को कड़े मुकाबले में 26,591वोट से हराया था।
रामसेबक बाबू जी ने रोका था सफर
इस सीट पर जिन रामसेवक बाबूजी के कारण कांग्रेस की जीत का सफर रूक गया उन्हें सहानुभूति वोट ने जीत दिलाई थी। विधानसभा चुनाव 2004 में रामसेवक बाबूजी को डबरा विधानसभा से भाजपा के नरोत्तम मिश्रा के हाथों हार मिली थी। इसी हार पर हराने का आरोप बाबूजी ने लगाया था। एक साल बाद ही लोकसभा चुनाव में उन्हें सहानुभूति जनता से मिली और 35000 वोट से नरोत्तम मिश्रा को हरा दिया था। यह स्थिति तब बनी जब ग्वालियर लोकसभा सीट की आठों विधानसभा पर भाजपा का कब्जा था। माधव राव सिंधिया के बाद से कोई भी कांग्रेसी सांसद ग्वालियर संसदीय सीट नहीं जीत सका, लेकिन रामसेवक सिंह ने जयभान सिंह पवैया को हराकर माधव राव सिंधिया से ग्वालियर सीट छीन ली। उनके निष्कासन के बाद से ग्वालियर सूबे में अभी तक बीजेपी का ही दबदबा है। साल 2005 में भारतीय राजनीति में उस वक्त भूचाल आ गया था, जब एक टीवी चैनल ने 11 सांसदों का स्टिंग ऑपरेशन कर रुपये देकर संसद में सवाल पूछने के लिए राजी कर लिया। इनमें ग्वालियर से उस वक्त के कांग्रेसी सांसद रामसेवक बाबूजी भी शामिल थे। बाबूजी ने पचास हजार रुपये लिए थे। 23 दिसंबर 2005 को लोकसभा की एक विशेष समिति ने उन्हें सदन की अवमानना का दोषी पाया और स्टिंग में पकड़े गए।  सभी 11 सांसदों को निष्कासित करने के प्रस्ताव के बाद उन्हें संसद से निष्कासित कर दिया गया। इसके बाद इस सीट पर कांग्रेस कभी नहीं जीती। अभी तक इस सीट पर उपचुनाव मिलाकर कुल 19 बार चुनाव हुए, जिनमें से नौ बार भाजपा या उसकी पूर्ववर्ती जनता पार्टी और जनसंघ जीती है वहीं आठ बार कांग्रेस। दो बार अन्य दल भी जीते। इस सीट पर महल की राजनीति का प्रभाव कितना है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आठ बार तो सिंधिया उपनाम विजयाराजे, माधवराव और यशोधरा राजे वाला प्रत्याशी ही मैदान में उतरा और आसानी से जीता।
अटली जो को करना पड़ा हार का सामना
1984 के चुनाव में राजीव गांधी ने अंतिम क्षणों में अटल जी के सामने माधवराव सिंधिया को उतार दिया था। उस समय इंदिरा गांधी की हत्या के बाद लोकसभा चुनाव हो रहे थे। स्व. अटल बिहारी वाजपेयी के ग्वालियर से चुनाव मैदान में उतरने से यहां भाजपा की जीत तय मानी जा रही थी। इसके दो कारण थे, एक तो वह खुद ग्वालियर के थे, दूसरा उन्हें पार्टी की दिग्गज नेता राजमाता विजयाराजे सिंधिया का समर्थन हासिल था। अंतिम क्षणों में माधवराव ने पर्चा दाखिल कर दिया। अटल बिहारी वाजपेयी के पास कोई रास्ता नहीं बचा था कि वह किसी अन्य सीट से नामांकन भरें। इस चुनाव में राजमाता धर्मसंकट में रहीं। एक ओर पुत्र था तो दूसरी ओर पार्टी। अटल बिहारी वाजपेयी पराजित हो गए। सिंधिया राजघराने की राजनीति में एंट्री कराने का श्रेय राजमाता विजयाराजे सिंधिया को है। वे सबसे पहले कांग्रेस के टिकट पर 1962 ही यहां से जीतीं। उसके बाद वह भाजपा के संस्थापक सदस्यों में एक रहीं। ग्वालियर के जातिगत समीकरण बात अगर लोकसभा क्षेत्र के जातिगत समीकरणों की हो तो ग्वालियर लोक सभा क्षेत्र क्षत्रिय और ब्राह्मण बाहुल्य क्षेत्र है। लेकिन ओबीसी वोटर यहां सबसे अधिक हैं।

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