छोटों पर कसा शिकंजा, बड़ों को भुला दिया

 नगर निगम

– मामला पांच माह में 179 करोड़ की कर वसूली का

भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। कर वसूली में भले ही भोपाल नगर निगम रिकार्ड दर रिकार्ड बना रही हो, लेकिन हालात यह हैं कि निगम अमले द्वारा इस मामले में सिर्फ छोटों पर ही शिकंजा कसा जा रहा है और बड़ों को भुलाया जा रहा है। अगर इसी तरह की वसूली बड़े बकायादारों से भी करने के प्रयास किए जाते तो निगम का खजाना तो पूरी तरह से भर ही गया होता और उधारी भी चुक गई होती। दरअसल नगर निगम के अमले ने पहली बार 1 अप्रैल से 31 अगस्त तक पहली बार 179 करोड़ रुपए की कर वूसली की है। इसके लिए निगम ने छोटे से छोटे बकायेदार के घर जाकर तकादा किया।
कुर्की का डर दिखाया और नल कनेक्शन काट दिए, लेकिन बड़े बकायेदारों से वसूली करना ही भुला दिया गया है। निगम बड़े बकायेदारों से वसूली पर फोकस करता, तो एकमुश्त 350 करोड़ रुपए से ज्यादा की राशि उसके खजाने में पहुंच जाती। ये वो बकाया टैक्स है, जो निगम द्वारा बीते दस सालों से नहीं वूसला गया है। इन सबसे बड़े बकायेदारों में विज्ञापन एजेंसियां शामिल हैं। इनसे निगम को 157 करोड़ की वसूली करनी है। इन कंपनियों को नोटिस थमाने और संपत्तियों की कुर्की का अल्टीमेटम देने का सिलसिला 10 साल से किया जा रहा है, लेकिन इनके खिलाफ कार्रवाई कभी नहीं की जाती है। इसी तरह बीडीए, विद्युत वितरण कंपनी और गांधी मेडिकल कॉलेज समेत आठ सरकारी संस्थाओं पर भी 49.62 करोड़ रुपए का बकाया है। इनमें से हमीदिया, गांधी मेडिकल कॉलेज और कमला नेहरू अस्पताल पर ही करीब पांच करोड़ रुपए का कर बकाया है। इसी तरह से मंत्रालय पर भी पानी का कर भी लाखों रुपए में बकाया बना हुआ है। इसी तरह से निगम विद्युत वितरण कंपनी से बीते पांच सालों से 40 करोड़ रुपए से ज्यादा की रकम बिजली खंभों और ट्रांसफार्मरों का ग्राउंड रेंट तथा करीब दो करोड़ रुपए प्रॉपर्टी टैक्स की वसूली नहीं की जा रही है।
नहीं बताते वसूली न होने की वजह
नगर निगम भले ही यह दावा करे की उसके द्वारा बड़े बकायादारों से वसूली के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन नगम के अफसर यह जानकारी नहीं देते हैं कि आखिरकार बड़े बकायादारों से वसूली न हो पाने की वजह क्या है। पांच साल पहले इस मामले में आरटीआई लगाई गई थी, जिसका जवाब भी आज तक नहीं दिया गया। यह हाल तब है जबकि इस मामले में मुख्य सूचना आयुक्त ने जिम्मेदार अफसरों पर जुमार्ना लगाने के साथ ही तत्कालीन नगर निगम आयुक्त बी विजय दत्ता को नोटिस थमाकर व्यक्तिगत रूप से आयोग में हाजिर होकर जवाब देने का आदेश दिया था।

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