मध्यप्रदेश के बाघ पर्यटकों को बना रहे दीवाना

बाघ पर्यटकों
  • समय के साथ अब बाघों के स्वभाव में आ रहा परिवर्तन …

भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में बजरंग की छलांग ने सफारी में गए पर्यटकों को अपना दीवाना बना लिया। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व का बजरंग बाघ पर्यटकों की पसंद तो है, लेकिन बजरंग की छलांग ने पर्यटकों को अपना दीवाना बना लिया। पर्यटकों ने उस छलांग का वीडियो बना लिया, जो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है। केवल बजरंग ही नहीं बल्कि प्रदेश के अधिकांश बाघों के स्वभाव में बदलाव आ रहा है। टाइगर रिजर्व में बाघ पर्यटकों को देखकर घबराते नहीं हैं। वे पर्यटकों की गाड़ी के पास आने से भी नहीं कतरा रहे हैं।  बाघों के व्यवहार में हो रहे इस बदलाव का खुलासा भी वन विभाग की मॉनिटरिंग में हुआ। अब इस गंभीर विषय पर बारीकी से पड़ताल के लिए वन विभाग ने शोध शुरू किया है। टाइगर रिजर्व समेत राजधानी भोपाल के अर्बन बाघ पर रिसर्च की जा रही है। वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि अच्छी बात यह है कि बाघ का बदलता स्वभाव चिड़चिड़ेपन या आक्रामक नहीं है। वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि प्रदेश के अन्य टाइगर रिजर्व के बाघों की अपेक्षा भोपाल के टाइगर्स का स्वभाव अलग तरीके से विकसित हो रहा है। जिन संसाधनों का मानव उपयोग करते हैं उनका बाघ भी इस्तेमाल कर रहे हैं। बीते 10-12 सालों में यह परिवर्तन तेजी से दिखाई दिया है।
शिकार का तरीका भी बदल रहा
बाघों के शिकार का तरीका भी बदल रहा है। रहवासी क्षेत्र के पास के क्षेत्रों में बाघों के शिकार के मामलों में वृद्धि हुई है। वन विभाग के आंकड़े बताते हैं कि बीते 7 सालों में बाघ नाइट हंटिग 65 प्रतिशत बढ़ी है। अध्ययन का यह बिंदु भी बेहद महत्वपूर्ण है। टाइगर रिजर्व, अभ्यारण्यों में गश्ती दल की रिपोर्ट में बड़ा खुलासा यह हुआ कि बाघों को सर्च लाइट से बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ रहा है। भोपाल के शहरी सीमा क्षेत्रों में ऐसा देखा गया। रिसर्च में बाघों के आसपास लोगों की एक्टिविटी को आधार बनाया गया है। इस पाइंट में बाघों की फोटो खींचते, शिकार करते या खाते समय, बाघ वाटर एक्टिविटी को केंद्रित किया गया है। इसमें देखा जाएगा कि आखिर ऐसी स्थिति में बाघों के रिएक्शन में कितना बदलाव आया है। जंगल हों या अर्बन एरिया में बाघ। शावकों के साथ इन क्षेत्रों में रहने वाले बाघों के तथ्यों पर अध्ययन किया जा रहा है।
मानव गतिविधियों का असर नहीं
अब तक के रिसर्च में पाया गया है कि बाघ शोर शराबे से दूर रहते हैं। लेकिन अब शोर या तेज आवाज को भी बाघों ने इग्नोर करना शुरू कर दिया है। वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि जंगलों के स्थान रहवासी क्षेत्र से लगे वन क्षेत्रों में मानव दखल भी बढ़ा है। भोपाल में शहरी क्षेत्र में बाघों की आमद लगातार दर्ज करते हैं। इसके अलावा टाइगर रिजर्व में पर्यटकों की बढ़ती संख्या और विभागीय अमले में बढ़ोतरी के कारण बाघों से मानव का सामना सर्वाधिक होता है। लिहाजा बाघ भी अब संवेदनशील होते जा रहे हैं। बाघों के स्वभाव पर अध्ययन करने के लिए वन विभाग ट्रैप कैमरों का सहारा ले रहा है। अमुमन वहां ट्रैप कैमरे लगाए गए जहां बाघ मूवमेंट अधिक होता था। अब रास्तों, पर्यटक के स्थान, कोर और बफर जोन समेत बाघ संभावित सभी क्षेत्रों कैमरे लगाए जा रहे हैं। पुराने वीडियो और फोटो डाटा के आधार पर अध्ययन किया जा रहा है। टाइगर रिजर्व के साथ ऐसे रहवासी क्षेत्र यहां बाघों का मूवमेंट एरिया अध्ययन का प्रमुख आधार है।
ह्यूमन एक्टिविटी के आदी हुए बाघ
वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि लोगों की आवाजाही से भोपाल को फर्क नहीं पड़ता। इसके अलावा सतपुड़ा, पेंच, कान्हा के बाघ भी समय के साथ इस आवाजाही, शोर, ह्यूमन एक्टिविटी के आदी हो चुके हैं। यह भी बताया गया कि बाघ के समीप होने पर बाघ आक्रामकता के मामलों में 70 फीसदी की कमी आई है। जो मानव-बाघ के बीच बेहतरीन तालमेल को साफ तौर पर उजागर करता है। एमपी के टाइगर रिजर्व में शामिल कान्हा, बांधवगढ़, पेंच, पन्ना, सतपुड़ा, संजय-दुबरी में रिसर्च की जा रही है। इसके अलावा सागर के नौरादेही, रायसेन के रातापानी अभ्यारण्य में रिसर्च की जा रही है। अर्बन क्षेत्रों में भोपाल, उमरिया और मंडला को शामिल किया गया है।

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