वर्चस्व की लड़ाई में बाघों की मौतगाह बने टाइगर रिजर्व

टाइगर रिजर्व
  • बाघों का बढ़ा कुनबा, छोटा पड़ने लगे टाइगर रिजर्व और नेशनल पार्क

भोपाल/गणेश पाण्डेय/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र के टाइगर रिजर्व और नेशनल पार्क बाघों से गुलजार है। प्रदेश में बाघों का कुनबा इस तेजी से बढ़ा है कि अब टाइगर रिजर्व और नेशनल पार्क का वनक्षेत्र बाघों के लिए कम पड़ने  लगा है। ऐसे में बाघों में वर्चस्व की लड़ाई में बढ़ोतरी हुई है। जिसके कारण प्रदेश में इस वर्ष बाघों की रिकॉर्ड मौतें हुई हैं। पिछले सात माह में 26 बाघों की जान जा चुकी हैं।  जानकारी के अनुसार पूरे देश के नेशनल पार्क और टाइगर रिजर्व में कुल 76 बाघों की मौत हुई है। इनमें से 34 फीसदी मप्र में हुईं।
प्रदेश के लिए सबसे बड़ी बात यह है कि टेरिटोरियल फाइट, सामान्य मौतें, शिकार के मामले नेशनल पार्क और टाइगर रिजर्व के बाहर सामान्य वन मंडलों में दर्ज किए गए हैं। सामान्य वन मंडल में आठ बाघों की मौत हुई। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि इन क्षेत्रों में बाघों का संरक्षण नेशनल पार्क, टाइगर रिजर्व जैसा नहीं होता। यहां शिकारियों की घेराबंदी और बाघों के रहवास के विकास की भी उतनी बेहतर स्थिति नहीं है। पिछले वर्ष सामान्य वन मंडल में 8 बाघों की मौत हुई थी। इतनी मौतें इस साल सात माह में हो चुकी हैं।
खतरे में बाघ
बढ़ती संख्या और वनक्षेत्र कम पड?े के कारण बाघ खतरे हैं। देश में सामान्य वन मंडलों (टाइगर रिजर्व, नेशनल पार्क से बाहर) में करीब 38 प्रतिशत बाघ मारे जा चुके हैं। मप्र की तरह महाराष्ट्र में भी कई बाघों की मौत टाइगर रिजर्व, नेशनल पार्क के बाहर रिकार्ड की गई है। हालांकि बाघों की मौतों के मामले में महाराष्ट्र दूसरे नंबर पर है, जहां अब तक 15 बाघों की मौतें हो चुकी हैं। वहीं रातापानी में नेशनल पार्क और टाइगर रिजर्व के लगभग ही बाघ हैं। यहां जंगल से लगे गांव और शहर भी सबसे 45 ज्यादा हैं। इसके बाद भी बाघों की मौत और शिकार की घटनाएं इस वर्ष नहीं हुईं। पिछले वर्ष सिर्फ एक बाघ की मौत ट्रेन से कटकर हुई थी। बाकी कोई भी मौत दर्ज नहीं की गई है। इसकी मुख्य वजह लोगों में जागरूकता और शिकारियों को प्रशासन का भय मुख्य है। बालाघाट और बैतूल जिले का सामान्य वन मंडल बाघों के लिए डेंजर जोन बन गया है। यहां बीते सात माह में दो-दो बाघों की मौत हुई या शिकार हो चुके हैं। जबलपुर का एरिया, शहडोल भी बाघों के लिए असुरक्षित होता जा रहा है। पिछले वर्ष तीन-चार बाघों की मौतें सामान्य वन मंडल में हुई थीं। इस वर्ष दो बाघों की मौतें हो चुकी है।
सबसे ज्यादा मौत टाइगर स्टेट में दर्ज
देश के टाइगर स्टेट का गौरव प्राप्त मध्यप्रदेश ने बाघों की मौत के मामले में रिकॉर्ड बनाया है। जनवरी 2022 से 15 जुलाई 2022 तक मध्यप्रदेश में 27 बाघों की मौत दर्ज की गई है। जबकि पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र बाघों की मौत के मामले में दूसरे स्थान पर हैं, जहां इसी अवधि के दौरान करीब 15 बाघों की मौत हुई है। एनटीसीए के आंकड़ों के अनुसार, कर्नाटक में 11, असम में पांच, केरल और राजस्थान में चार-चार, उत्तर प्रदेश में तीन, आंध्र प्रदेश में दो, बिहार, ओडिशा और छत्तीसगढ़ में एक-एक बाघ की मौत हुई है। अधिकारियों के अनुसार, क्षेत्रीय लड़ाई, बुढ़ापा, बीमारियां, अवैध शिकार और बिजली का करंट बाघों की मौक के कुछ प्रमुख कारण हैं। बाघों की मौत की बढ़ती संख्या पर चिंता व्यक्त करते हुए, वन्यजीव और आरटीआई कार्यकर्ता अजय दुबे के मुताबिक  पन्ना में लगभग 10 साल पहले कोई बाघ नहीं पाया गया था। उसके बाद, एनटीसीए ने राज्यों को विशेष रूप से शिकारियों से बाघों की सुरक्षा के लिए स्वयं के विशेष बाघ संरक्षण बल (एसटीपीएफ) स्थापित करने की सलाह दी। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र ने एसटीपीएफ को समर्थन देने के लिए बजटीय प्रावधान किए हैं, लेकिन मध्यप्रदेश सरकार ने अभी तक अपने निहित स्वार्थों के कारण इस तरह के किसी भी बल का गठन नहीं किया है। उन्होंने कहा कि अगर यह बल स्थापित हो जाता है तो यह अवैध शिकार के अलावा वन क्षेत्रों में अवैध खनन और पेड़ों की कटाई जैसी अन्य गतिविधियों पर भी रोक लगाएगा।

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