तीन अंचलों ने बढ़ा रखी भाजपा के रणनीतिकारों की चिंता

भाजपा

संगठन में चल रहा लगातार चिंतन मनन का दौर …

गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। अब प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने में महज दस माह का समय रह गया है, ऐसे में एंटी इनकम्बेंसी को लेकर भाजपा के रणनीतिकारों की चिंता बढ़ी हुई है। यही वजह है कि भाजपा में इस मामले को लेकर लगातार चिंतन मनन का दौर चल रहा है। दरअसल अब तक संगठन व सरकार द्वारा अंदरूनी तौर पर जितने भी सर्वे कराए गए हैं, उनमें एंटी इनकमबेंसी का बड़ा फैक्टर सामने आया है। इंटेलिजेंस की रिपोर्ट से हाईकमान भी मानकर चल रहा है कि विधानसभा चुनाव में प्रदेश में एंटी इनकम्बेंसी से बड़ा नुकसान होने वाला है। इसका संकेत नगरीय निकाय चुनाव में भी मिल चुका था। 16 नगर निगमों में से भाजपा को केवल 9 पर ही जीत मिली है।
प्रदेश पांच अंचलों से मिलकर बना है। इनमें से  ग्वालियर-चंबल, विंध्य और महाकौशल क्षेत्रों के नतीजे भाजपा के लिहाज से ठीक नहीं रहे हैं। चंबल में ग्वालियर और मुरैना में भाजपा के हाथ से मेयर का पद छिन गया है। इतना ही नहीं, नगर पालिका और नगर परिषदों में भी नतीजे भाजपा के अनुकूल नहीं आए हैं। भिंड जिले के लहार जैसे इलाकों में तो पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया है। विंध्य क्षेत्र के नतीजे भी भाजपा के लिए आशानुरुप नहीं रहे हैं। यही वजह है कि भाजपा के लिए यह तीनों ही अंचल चिंता की वजह बने हुए हैं। यही वजह है कि संगठन व प्रदेश की सरकार भी इन सर्वे को लेकर समय-समय पर अपने नेताओं के साथ ही विधायकों को भी चेताती नजर आती है। इस समय सबसे अधिक मुफीद अंचल मालवा माना जा रहा है।
विंध्य में उपेक्षा से नाराजगी
विंध्य क्षेत्र में राजनीतिक असंतुलन से लोगों में बेहद नाराजगी है। प्रदेश सरकार की कैबिनेट में विंध्य क्षेत्र का प्रतिनिधित्व न के बराबर है। इस अंचल की उपेक्षा तब है जबकि यहां से ही सर्वाधिक सीटें भाजपा जीती है और कांग्रेस का लगभग पूरी तरह से सूपड़ा साफ हो गया था। इस अंचल की सत्ता के साथ ही संगठन में जारी उपेक्षा की वजह से कार्यकर्ताओं में नाराजगी बनी हुई है। इस स्थिति में कार्यकर्ता कैसे पार्टी के पक्ष में पूरी ताकत के साथ सक्रिय होगा। विंध्य व ग्वालियर चंबल की बात की जाए तो दोनों ही अंचलों में करीब 60 सीटें हैं। दोनों ही क्षेत्रों में नगरीय निकाय के चुनाव परिणाम भी भाजपा के विपरीत आए हैं। यही वजह है कि अब संगठन ऐसे क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दे रहा है, जहां कार्यकर्ताओं में संवादहीनता और नाराजगी का पता चल रहा है। 2018 के परिणामों से सबक लेते हुए संगठन किसी भी क्षेत्र में कोई खामी नहीं रहने देना चाहता है। भाजपा के एक नेता का कहना है कि ग्वालियर चंबल संभाग में पिछले विधानसभा की परिणामों की तुलना में हम इस बार अच्छा प्रदर्शन करेंगे। विंध्य के रीवा में भाजपा अपनी स्थिति को न केवल बरकरार  रखने की प्रयास में है बल्कि शहडोल संभाग की स्थिति में सुधार करने की प्रक्रिया में है। विंध्य की संभावित चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए राजनीतिक और रणनीतिक योजना भी विधानसभावार बन रही है। वहीं दूसरी ओर मालवा व निमाड़ में भाजपा लगातार सक्रियता और राजनीतिक समीकरणों के माध्यम से प्रभावी भूमिका निभा रही है। हम क्षेत्रीय आकांक्षाओं को स्थान व सम्मान देने की रणनीति पर कार्य कर रहे हैं।
नहीं बैठा पा रहे सामंजस्य
ग्वालियर-चंबल अंचल में सबसे बड़ी परेशानी की वजह भाजपा संगठन के सामने श्रीमंत और उनके समर्थकों की मूल भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ सामंजस्य नहीं बिठा पाना है। इसकी वजह से इस अंचल में पहले से ही गुटों में बंटी भाजपा में एक और खेमा तैयार हो गया है।  दरअसल, मिशन-2023 की तैयारियों में जुटी भारतीय जनता पार्टी को सबसे ज्यादा चुनौती ग्वालियर- चंबल और विंध्य क्षेत्र से मिल रही। इस मामले में पार्टी के बड़े नेताओं के प्रवास में भी कुछ इसी तरह का फीडबैक मिला है। इस वजह से पार्टी की चिंता बढ़ी हुई है। पार्टी के तमाम बड़े नेता इसी वजह से लगातार प्रदेश में प्रवास कर रहे हैं और क्षेत्र के मंत्री, विधायक, संगठन पदाधिकारियों के प्रदर्शन पर फीडबैक सहित कार्यकर्ताओं से उनकी समस्याओं को भी पता कर रहे हैं और व्यवहारिक दिक्कतों पर भी चर्चा कर रहे हैं। दिग्गज नेताओं द्वारा इस साल होने वाले चुनावों को लेकर कार्यकर्ताओं से भी फीडबैक लिया जा चुका है। इसी वजह से अब जहां कमजोर स्थिति सामने आ रही है, वहां सुधार के सभी तरह के प्रयासों की कवायद शुरु किए जाने की तैयारी है।  
चिंता की एक वजह यह भी
उल्लेखनीय है कि प्रदेश में भाजपा को 40 फीसदी के आसपास मत मिलते रहे हैं। इन्हें अब 51 प्रतिशत तक ले जाने की कवायद की जा रही है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्राथमिकता में अब ग्वालियर, चंबल, विंध्य और खासतौर से वहां के अनुसूचित जाति (अजा) वर्ग को रखा जा रहा है। बीते आम चुनाव में भी दोनों ही इलाकों से यह वर्ग भाजपा से दूर नजर आया था, जिसकी वजह से ही भाजपा को विपक्ष में बैठना पड़ा था। इसके बाद हुए नगरीय निकाय चुनावों में भी भाजपा को ग्वालियर-मुरैना और रीवा-सिंगरौली के महापौर के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है। इसी तरह से विंध्य अंचल की अजा वर्ग की रैगांव सीट पर भी भाजपा को पराजय का सामना करना पड़ा था। प्रदेश में अजा की 35 और अनुसूचित जनजाति (अजजा) की 47 सीटें मिलाकर 82 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं। अजा वर्ग की आबादी 15 प्रतिशत से अधिक है। चुनाव में अजेय और सत्ता बरकरार रखने की मंशा लेकर भाजपा ने अनुसूचित जाति (अजा) वर्ग में पैठ बढ़ाने की कवायद तेज कर दी है। 2003 से 2013 तक के चुनाव में उसे सत्ता सुख तब मिला जब अजा वर्ग का साथ मिला। वहीं, 2018 में इस वर्ग के मोहभंग की कीमत पार्टी को सत्ता गंवाकर चुकानी पड़ी। 230 सीटों की मध्य प्रदेश विधानसभा में 35 सीटें अनुसूचित जाति और 47 सीटें अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं। दरअसल, 2018 में एट्रोसिटी एक्ट के विरोध में देशभर में हुए विरोध-प्रदर्शन की लहर जब मध्य प्रदेश पहुंची, तो ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में बड़ा हंगामा हुआ। इस पर काबू पाने के लिए बड़ेे पैमाने पर थानों में मामले दर्ज किए गए, जिनके खिलाफ केस दर्ज हुए इनमें बड़ी संख्या अजा वर्ग से जुड़े नेताओं की थी। 2018 के विधानसभा चुनाव को सामने देखते हुए कांग्रेस ने इसका जमकर फायदा उठाया और वादा किया कि सत्ता में आने पर वह इन सभी मामलों को समाप्त कर अजा वर्ग को राहत देगी। हालांकि, सरकार बनने पर वह इस वादे को नहीं निभा सकी।

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