तीन करोड़ के बीएचसी पाउडर को नष्ट करने में खर्च होंगे साढ़े तीन करोड़

बीएचसी पाउडर
  • खतरनाक रसायन की श्रेणी में शामिल पाउडर को नष्ट करने के लिए डेढ़ दशक तक होती रही पत्रबाजी

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में मच्छरों को मारने के लिए खरीदा गया बीएचसी (बेंजीन हेक्साक्लोराइड) पाउडर सरकार के लिए गले की फांस बन गया है। जब यह पाउडर मच्छरों पर प्रभावहीन हो गया तो उसे बेचने की प्रक्रिया शुरू की गई ,जो पिछले 15 साल से चल रही है। पिछले 15 साल से चल रही पत्रबाजी के कारण अब बेकार हो चुके 3 करोड़ रूपए के बीएचसी पाउडर को नष्ट करने में करीब साढ़े 3 करोड़ रूपए की लागत आएगी।
जानकारी के अनसार स्वास्थ्य विभाग के पास बीएचसी 25 साल से रखा हुआ है। खतरनाक रसायन की श्रेणी में शामिल होने की वजह से इसका निष्पादन केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल के मापदंडों के अनुसार ही हो सकता था। अब इसे नष्ट करने के लिए मप्र पब्लिक हेल्थ सप्लाई कारपोरेशन ने टेंडर जारी किए हैं। इस पावडर का उपयोग मच्छरों को मारने के लिए किया जाता था, लेकिन मच्छरों पर इसका असर कम होने लगा है।  
प्रदेश के 24 जिलों में रखा है पाउडर
इस पाउडर का उपयोग प्रदेश के 24 जिलों में किया जा रहा था। यह कुछ जगह स्वास्थ्य विभाग तो कुछ जगह किराये के भवनों में रखा हुआ है। एक मलेरिया अधिकारी ने बताया कि जिस समय इसपर रोक लगी थी उस दौरान यह करीब छह रुपए किलो में मिलता था। भारत सरकार से ही प्रदेश में आपूर्ति की जाती थी। अब करीब साढ़े तीन करोड़ रुपये(सात रुपये किलो) नष्ट करने में खर्च आएगा। दरअसल 1996 में बीएचसी पावडर पर प्रतिबंध लगने के बाद केंद्र सरकार के पास यह नीति नहीं थी कि इसे नष्ट किस तरह किया जाए। केंद्र से नीति बनने के बाद 2007 से इसे नष्ट करने की प्रक्रिया शुरू हुई। उस दौरान केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से सिर्फ एक कंपनी रामकी ही मान्यता प्राप्त थी। स्वास्थ्य विभाग ने कंपनी से बात की तो कंपनी ने साढ़े तीन करोड़ रुपये की मांग की।  खर्च ज्यादा होने की वजह से कंपनी को मना कर दिया गया गया। इसके बाद इसे खतरनाक (हैज़ार्डस) रसायन की श्रेणी में डाल दिया। इसके बाद चार बार टेंडर किया गया, लेकिन कोई कंपनी नहीं मिली। उप संचालक स्वास्थ्य संचालनालय डॉ.हिमांशु जायसवार का कहना है कि पाउडर को नष्ट करने के लिए कई बार टेंडर जारी किया गया, लेकिन कोई कंपनी नहीं मिल रही है। अब कारपोरेशन ने फिर से टेंडर जारी किया है।
15 साल तक चलती रही चिट्ठीबाजी
 पाउडर को नष्ट करने के लिए अब साढ़े तीन करोड़ रुपए खर्च करने पड़ेंगे। यह राशि इस पाउडर की कीमत से भी ज्यादा है। यह काम कम खर्च पर भी हो सकता था, लेकिन स्वास्थ्य विभाग ने करीब 15 साल चिट्ठी  लिखने और राय लेने में ही लगा दिए। सलाह इस बात की ली जा रही थी कि इस पाउडर को नष्ट कैसे किया जाए। उधर, कई रिपोर्ट्स में इसे मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बताया गया। इसे देखते हुए भारत सरकार ने पूरे देश में 1996 से इसका उपयोग रोक दिया। 2007 से इसे नष्ट करने के लिए जिला मलेरिया अधिकारियों ने स्वास्थ्य संचालनालय से मार्गदर्शन मांगा। पूरे देश में यह पाउडर रखा हुआ है। ऐसे में स्वास्थ्य विभाग को लगा कि शायद केंद्र ही कुछ गाइडलाइन बनाए। इस चक्कर में देरी होती गई।

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