भोपाल/राजीव चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण (रेरा) राहत देने वाला कम और मुसीबत वाला अधिक बनता जा रहा है। रेरा की लेटलतीफी ने कोरोना महामारी में उन 25 हजार प्रवासी मजदूरों के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा कर दिया है, जो लंबे समय से काम के इंतजार में भोपाल व इंदौर जैसे महानगरों में डेरा जमाए हुए थे। यह वे मजदूर हैं, जो बीते छह माह से काम के इंतजार में यहां जमे हुए थे, लेकिन अब उनका यह इंतजार लंबा होता जा रहा है।
इसकी वजह है रेरा द्वारा नए प्रोजेक्ट को मंजूरी नहीं दिया जाना। हालत यह है कि बीते छह माह से तो एक भी प्रोजेक्ट को मंजूरी ही नहीं दी गई है। इसकी वजह से रेरा में स्वीकृति के लिए आने वाले प्रस्तावों की संख्या में लगातार वृद्धि होती जा रही है। पहले सरकार रेरा में रिक्त हुए अध्यक्ष पद पर नियुक्ति करने में देर करती रही और अब अध्यक्ष मिला भी तो तकनीकि सदस्य न होने की वजह से मामले अटके हुए हैं। गौरतलब है कि एपी श्रीवास्तव के नए चेयरमैन बने हुए एक माह से अधिक का समय हो चुका है, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं मिल पा रहा है। हालत यह है कि फिलहाल रेरा में करीब 40 हजार करोड़ रु. के 438 आवासीय और व्यावसायिक प्रोजेक्ट की फाइलें अटकी हुई हैं। इन प्रोजेक्टों के माध्यम से प्रदेश में कई जगहों पर कुल एक लाख से अधिक आवास और अन्य तरह के भवनों का निर्माण किया जाना है।
रेरा की मंजूरी न मिलने की वजह से रियल एस्टेट डेवलपर इनकी बुकिंग भी नहीं कर पा रहे हैं। इसकी वजह से इनका काम भी शुरू नहीं हो पा रहा है। यही कारण है कि काम की तलाश में डेरा डाले प्रवासी मजदूरों को काम भी नहीं मिल पा रहा है। यह हाल प्रदेश में तब है जब प्रदेश में कोरोना कर्फ्यू में भी मप्र सरकार ने निर्माण गतिविधियों को अनुमति दे रखी है। अब काम शुरू न होने से शहरों में आए सैकड़ों प्रवासी मजदूर फंस गए हैं। उनके सामने अब दो जून की रोटी का भी संकट खड़ा हो गया है। इसकी वजह है काम न मिलने से आय न होना। उधर यह वे मजदूर है , जो दूसरी जगह से आए हैं , जिसकी वजह से उनके पास राशन कार्ड भी नहीं हैं। इस वजह से उन्हें सरकार द्वारा दिए जाने वाला मुफ्त राशन भी नहीं मिल पा रहा है।
काम शुरू होने पर मिलता 40 हजार को रोजगार
कान्फेडेरेशन ऑफ रियल एस्टेट डेवलपर्स ऑफ इंडिया (क्रेडाई) के मुताबिक एक रियल स्टेट प्रोजेक्ट में औसतन 250 मकान बनाए जाते हैं। जिनकी लागत करीब 90-100 करोड़ होती है। एक प्रोजेक्ट में श्रमिकों को मिलाकर करीब 100 लोगों को वर्ष भर का रोजगार मिलता है। अगर लंबित सभी 438 प्रोजेक्ट शुरू हो जाते हैं तो उनकी लागत करीब 40 हजार करोड़ रुपए तक हो सकती है। इनसे करीब 40 हजार लोगों को रोजगार मिल सकता है।
बगैर नियम के ही काम करा रहा रेरा
मप्र देश का वह राज्य है, जहां पर सबसे पहले रेरा का गठन किया गया था , लेकिन इसका संचालन कैसे होगा, इसके नियम अब तक तय ही नहीं किए गए हैं। राज्य सरकार को रेरा अधिनियम के सेक्शन 85-86 के तहत नियम बनाने थे। इससे यह तय होता कि रेरा चेयरमैन, अपीलीय प्राधिकरण और राज्य सरकार के प्रशासनिक अधिकारियों की इस कानून में क्या-क्या जिम्मेदारियां होंगी।
16/05/2021
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