- विनोद उपाध्याय
प्रदेश में अब मतदान के लिए महज चार दिन का समय रह गया है। बीते आम चुनाव में फतह हासिल करने वाले 193 माननीय इस बार भी चुनावी रण में हैं। इनमें से अधिकांश प्रत्याशी कड़े मुकाबले में फंस गए हैं। इसकी वजह से न केवल उन्हें बल्कि, उनके समर्थकों के सामने फैले असमंजस के कुहासे की धुंध अब छट नहीं पा रही है। इनमें वे प्रत्याशी अधिक मुसीबत में खुद को पा रहे हैं, जो मामूली अंतर से चुनाव में सफल रहे थे। इनमें भाजपा के 95, कांग्रेस के 91, निर्दलीय चार, बसपा के दो और सपा का एक प्रत्याशी शामिल है। इसमें बेहद अहम बात यह है कि इनमें से कई ने तो अपना दल ही बदल डाला है, तो कई को उनके अपने ही दल के बागी चुनौती देते नजर आ रहे हैं। ऐसा नहीं है कि इस तरह की स्थिति किसी एक अंचल में है, बल्कि लगभग सभी अंचलों में बनी हुई है। अगर मालवा निमाड़ की बात की जाए तो उज्जैन जिले की सात सीटों में से छह पर इस बार भी मौजूदा विधायक ही मैदान में हैं। इनमें चार कांग्रेस और दो भाजपा के प्रत्याशी हैं। इन सभी को बेहद कांटे की टक्कर से गुजरना पड़ रहा है। इनमें बेहद अहम है, धार से भाजपा विधायक नीना वर्मा का चुनाव। उनके खिलाफ भाजपा के ही पूर्व जिलाध्यक्ष राजीव यादव बागी होकर मैदान में कूदे हुए हैं। जिसकी वजह से उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। इसी तरह से खरगोन की भी आधा दर्जन सीटों पर मौजूदा विधायक ही प्रत्याशी हैं। यह सभी कांग्रेसी हैं। बीते चुनाव में इन सभी को सत्ता विरोधी लहर का लाभ मिला था, लेकिन इस बार तस्वीर बदल हुई नजर आ रही है। अंचल की शाजापुर की तीनों सीटों पर भी मौजूदा तीन विधायक प्रत्याशी हैं। इनमें दो कांग्रेस और एक भाजपा के हैं। झाबुआ में थांदला में भाजपा के बागी तानसिंह निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं, जिससे पार्टी उम्मीदवार की मुश्किलें बढ़ा रहे हैं। बुरहानपुर से सुरेंद्र सिंह इस बार कांग्रेस के टिकट पर मैदान में हैं। उन्हें कांग्रेस के बागी व एआइएमआइएम के प्रत्याशी नफीस खान की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। इसी सीट पर भाजपा की अर्चना चिटनीस को बागी हर्षवर्धन सिंह चौहान की वजह से मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि बीते चुनाव में चिटनिस को हार का सामना करना पड़ा था। नेपानगर से भाजपा ने पूर्व विधायक मंजू दादू को बागी रतिलाल चिल्लात्रे की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। लगभग यही स्थिति नीमच में तीनों सीटों पर भी बनी हुई है। इनमें से जावद में भाजपा के लिए उसके बागी मुसीबत बने हुए हैं। देवास में 1990 से भाजपा का कब्जा है, लेकिन इस बार चुनौती बढ़ी है। खातेगांव में भाजपा के सामने कांग्रेस में गए पूर्व मंत्री की चुनौती है और ज्यादा चिंता अपनों से निपटने की है। रतलाम में जावरा पर भाजपा के डॉ. राजेंद्र पांडेय महज 500 मतों से जीते थे, इस बार करणी सेना परिवार के जीवन सिंह राजपूत ने निर्दलीय मैदान में आकर दोनों दलों के समीकरण गड़बड़ा दिए हैं। यही हाल आलोट में कांग्रेस के मनोज चावला का है। रतलाम ग्रामीण में कांग्रेस प्रत्याशी लक्ष्मणसिंह डिंडोर को स्थानीय-बाहरी मुद्दे का भी सामना करना पड़ रहा है। मंदसौर के मल्हारगढ़ में कांग्रेस के बागी श्यामलाल जोकचंद ने भाजपा-कांग्रेस के प्रत्याशियों की धडक़ने बढ़ा रखी हैं।
ग्वालियर-चंबल
बीतें चुनाव में ग्वालियर दक्षिण सीट पर कांग्रेस के प्रवीण पाठक ने मात्र 121 वोटों से जीत हासिल की थी। इस जीत में बड़ी भूमिका भाजपा की बागी पूर्व महापौर समीक्षा गुप्ता ने निभाई थी। लेकिन इस बार यह हालात नहीं हैं। ग्वालियर ग्रामीण से भाजपा उम्मीदवार और राज्यमंत्री भारत सिंह कुशवाह के खिलाफ कांग्रेस उम्मीदवार साहब सिंह गुर्जर मैदान में है। साहब सिंह ने पिछला चुनाव बसपा से लड़ा था और वे दूसरे नंबर रहे थे। उप चुनाव में वह महज डेढ़ हजार वोटों से हारे थे। कांग्रेस का प्रत्याशी तीसरे नंबर पर था। इस बार वे पूरे दमखम से मैदान में उतरे हैं। डबरा से इमरती देवी ने 2018 का चुनाव कांग्रेस से जीता था, 2020 में भाजपा से लड़ीं और समधी कांग्रेस के उम्मीदवार सुरेश राजे से हार गईं। भाजपा ने फिर उन्हें उम्मीदवार बनाया है। इमरती के लिए प्रदर्शन दोहराना मशक्कत भरा रहने वाला है। वीआइपी सीटों में शुमार दतिया से गृह मंत्री डा. नरोत्तम मिश्रा 2656 वोटों से जीते थे, इस बार उनके सामने चिर प्रतिद्वंद्वी राजेंद्र भारती मैदान में हैं। कड़ा मुकाबला इस बार भी है। भिंड की अटेर सीट पर मंत्री अरविंद भदौरिया के सामने हेमंत कटारे हैं। पिछली जीत पांच हजार वोटों से हुई थी। बता दें कि इस सीट पर हर बार विधायक बदलता है।
मध्य भारत
इस अंचल की अधिकांश सीटों पर पुराने चेहरे ही मैदान में हैं। अंचल की मुश्किल सीटों की बात करें, तो नर्मदापुरम में भाजपा के पुराने चेहरे सीताशरण शर्मा को अपने ही भाई व कांग्रेस के प्रत्याशी सीताशरण शर्मा का सामना करना पड़ रहा है। इस सीट पर भाजपा के नाराज नेता भगवती चौरे की चुनौती भी उनके सामने है। लगभग यही स्थिति टिमरनी सीट पर बनी हुई है। यहां पर एक बार फिर से चाचा संजय शाह का मुकाबला कांग्रेस के अभिजीत शाह से है, लेकिन इस सीट पर जयस समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी ने दोनों को मुश्किल में डाल रखा है। इसी तरह की चुनौती राजधानी की उत्तर सीट पर है। यहां पर कांग्रेेस ने इस बार आरिफ अकील की जगह उनके पुत्र को मैदान में उतारा है। इसके बाद कांग्रेस से बागी होकर उनके ही चाचा मैदान में उतर गए हैं।
महाकौशल-विंध्य
जबलपुर की पूर्व सीट से भाजपा प्रत्याशी अंचल सोनकर पिछली बार कांग्रेस प्रत्याशी लखन घनघोरिया से पराजित हो गए थे, लेकिन पार्टी ने फिर से उन्हें प्रत्याशी बनाया है। मुस्लिम मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या और भाजपा के विभीषण अंचल की जीत की राह बनाते हैं। सिवनी की केवलारी सीट से भाजपा प्रत्याशी राकेश पाल सिंह हैं। कांग्रेस से रजनीश सिंह ठाकुर पिछले चुनाव में पराजित हो गए थे, इसके बाद उन्होंने निरंतर मैदानी क्षेत्र में कार्य किया, इसलिए चुनौतियां बढ़ी हैं। दमोह के जबेरा से भाजपा विधायक धर्मेंद्र सिंह लोधी के समक्ष भाजपा के जिला उपाध्यक्ष रहे विनोद राय गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से चुनौती पेश कर रहे हैं। डिंडौरी से कांग्रेस विधायक ओमकार सिंह मरकाम को इस बार जिला पंचायत अध्यक्ष रहे रुद्रेश परस्ते के निर्दलीय चुनाव लडऩे से चुनौती मिल रही है। कटनी की मुड़वारा, विजयराघवगढ़ और बहोरीबंद सीट से भाजपा ने तीनों विधायकों को टिकट दिया है। मुड़वारा में संदीप जायसवाल को उम्मीदवार बनाने से कई पार्टी नेता नाराज हैं। वहीं, बहोरीबंद में विधायक प्रणय पांडेय के सामने भाजपा छोडक़र कांग्रेस में गए पूर्व जनपद अध्यक्ष शंकर महतो का अब समाजवादी पार्टी से मैदान में उतरना मुश्किल खड़ी कर रहा है। विजयराघवगढ़ में भाजपा के संजय पाठक के सामने कांग्रेस के युवा प्रत्याशी नीरज सिंह बघेल हैं। पूर्व विधायक ध्रुवप्रताप सिंह के भाजपा छोडक़र कांग्रेस में जाने से संजय पाठक की परेशानी बढ़ी हुई है। कांग्रेस ने बड़वारा से विधायक विजय राघवेन्द्र सिंह को प्रत्याशी बनाया है, भाजपा ने उनके ही परिवार के धीरेन्द्र सिंह को उम्मीदवार बना दिया है। मउगंज की देवतालाब सीट से भाजपा के वरिष्ठ नेता और विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम मैदान में हैं, इनका भतीजा पद्मेश गौतम कांग्रेस से मैदान में है। पद्मेश ने पंचायत चुनाव में गिरीश गौतम के बेटे को हराया था। रीवा की सिमरिया सीट से भाजपा विधायक केपी त्रिपाठी को कांग्रेस के प्रत्याशी अभय मिश्रा टक्कर दे रहे हैं। वह भाजपा से बगावत कर कांग्रेस में शामिल हुए हैं।