इस बार प्रदेश में किया जाएगा औषधीय पौधों का रोपण

औषधीय
  • पांच लाख पौधों को किया जा रहा है तैयार  

विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में इस बार होने वाले वृक्षारोपण में उन पौधों को प्राथमिकता के आधार पर रोपने की योजना बनाई गई है, जो औषधीय पौधों की श्रेणी में आते हैं। इससे जहां पर्यावरण सुधार में फायदा होगा तो वहीं आयुर्वेद की दवाओं के उपयोग के लिए कच्ची सामग्री भी आसानी से मिल सकेगी। इसकी वजह से सरकार को भी राजस्व मिलने का रास्ता साफ हो जएगा। इन औषधीय पौधों की पौध तैयार करने का काम राजधानी की नर्सरियों में किया जा रहा है।  अहमदपुर रोपणी में ऐसे पांच लाख पौधों को तैयार किए जाने पर काम किया जा रहा है। फिलहाल अब तक तीन लाख पौधे की नर्सरी तैयार की जा चुकी है, जबकि दो लाख पौधों की नर्सरी तैयार किए जाने का काम जारी है। इस रोपणी में शल्यकर्णी, श्योनाक हर्रा, बीजा, अर्जुन, रोहण जर  जैसे 60 तरह के औषधीय पौधे उगाने का काम किया जा रहा है। इसके अलावा तीन्सा, हलदू, काला शीशम, धनकट, खरहर, धावड़ा, करधई, पापड़ा, और मैदा प्रजाति के पौधे भी उगाए जार हे हैं। इन सभी का उपयोग वृक्षारोंपण में किया जाना है। दरअसल, इस तरह के औषधीय पेड़ सतपुड़ा और विंध्य रेंज के जंगलों में पाए जाते हैं, लेकिन अब वे दुर्लभ श्रेणी में आ चुके हैं। इनके अलग-अलग हिस्सों का उपयोग विभिन्न प्रकार की बीमारियों के उपचार में किया जाता है। वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि अहमदपुर रोपणी में तैयार पौधों को भोपाल, सीहोर और रायसेन जिलों में रोपा जाएगा। इसी तरह प्रदेश भर की रोपणियों से पौधे लेकर अलग-अलग जिलों में वृक्षारोपण के लिए भेजे जाएंगे।

सागौन के भी 50 हजार पौधे लगाए जाएंगे  
भोपाल वन मंडल में इस वर्ष 50 हजार सागौन के पेड़ लगाए जाने की योजना तैयार की गई है। यह प्रयास पर्यावरण संरक्षण और हरित क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा है। सागौन के वृक्ष भूमि की स्थिरता को बनाए रखते हैं और जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करते हैं। इसके अलावा यह प्रजाति इमारती लकड़ी में भी बेहद अहम स्थान रखती है।

480 हेक्टेयर क्षेत्र में रोपे गए पौधे  
वृक्षारोपण अभियान के तहत बीते साल भोपाल जिले में कुल 480 हेक्टेयर क्षेत्र में पौधे लगाए गए हैं। एक पेड़ मां के नाम और हरित महोत्सव अभियान को भोपाल में एक वृक्ष भोपाल के नाम से भी प्रचारित किया गया था , जिसके अंतर्गत बड़ी संख्या में पौधरोपण किया गया। भोपाल नगर के साथ ही संपूर्ण भोपाल जिले में भी पौधे लगाए गए हैं। भोपाल के कलियासोत डेम, आदमपुर खंती, कीरत नगर, मुंगालियाकोट, समरधा जंगल रेंज और कलारा बैरसिया क्षेत्र में पौधरोपण किया गया था। इसमें से आदमपुर खंती में सबसे ज्यादा 15 हजार और इसके बाद भेल में 5000 पौधे रोपे गए थे। इसके अलावा अन्य जगहों पर करीब 400-400 पौधे रोपे गए हैं। इनमें नीम, बरगद, करंज, बांस और बेल के पौधे शामिल थे। इसके अलावा आम, जाम, चिरौंजी, सीताफल, महुआ, जामुन और आंवला जैसे फलदार पौधे समेत स्थानीय पौधे भी लगाए गए थे।

किस प्रजाति में कौन से औषधीय गुण
शल्यकर्णी का पेड़ प्रदेश के विंध्य और मेकाल की पहाडिय़ों में पाया जाने वाला एक अति दुर्लभ प्रजाति का वृक्ष है। 2008 में पारंपरिक इलाज करने वाले आदिवासी वैद्यों की वजह से इस पेड़ की पहचान हो सकी है। इसके पत्ते का लेप घावों को भरने में बेहद मददगार साबित होता है। इसी तरह से सोनापाठा को आयुर्वेद के ग्रंथों में श्यौनाक कहा गया है। गर्म तथा नम क्षेत्रों में पाया जाने वाला यह पेड़ अब दुर्लभ है। आयुर्वेदिक औषधियों दशमूलारिष्ट, अमृतारिष्ट, धन्वतरिघृत का यह मूल तत्व है। इसकी जड़, छाल, फूल, फल, बीज, लकड़ी और पत्तियां तक ज्वर, दमा, एलर्जी, खांसी, अतिसार, बदहजमी, प्रसूतिजन्य दुर्बलता आदि के इलाज में काम आती है।  बीजा  नामक वृक्ष को आयुर्वेद के ग्रंथों में विजयसार के नाम से उल्लेख मिलता है। प्रदेश के साल वनों में कहीं-कहीं यह पेड़ मिल जाता है। इस पेड़ की छाल हटाने पर एक गाढ़ा लाल रंग का स्राव मिलता है, जो मधुमेह के इलाज में काम आता है। इसी तरह से  लक्ष्मीतरु को दक्षिण अमेरिकी मूल का माना जाता है। यह नर्मदापुरम संभाग के कई जिलों में मिलता है। इसके पत्तों से कैंसर के इलाज में काम आने वाली औषधियों का निर्माण होता है।

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