मोहन मंत्रिमंडल में इस बार दिखेगा सोशल इंजीनियरिंग का जोर

मोहन मंत्रिमंडल
  • विनोद उपाध्याय

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव सरकार की कैबिनेट के मंत्रिमंडल के नाम आज रात दिल्ली में तय हो सकते हैं। सीएम, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद दिल्ली जाकर आलाकमान से चर्चा करेंगे। मुख्यमंत्री पहले ही कह चुके हैं कि मंत्रिमंडल का फैसला भाजपा शीर्ष नेतृत्व करेगा। हालांकि चर्चा है कि इस बार मंत्रिमंडल में नए चेहरे के साथ ही कुछ जातिगत और क्षेत्रीय समीकरण साधने पुराने चेहरों को भी जगह मिल सकती है। ऐसे में प्रदेश में जानें ब्राह्मण, ओबीसी और एससी-एसटी के कितने दिग्गज मंत्री पद के दावेदार हैं। अगर सबसे पहले ब्राह्मणों चेहरों के दावेदरों की बात करें तो, गोपाल भार्गव (रहली) 9 बार जीते हैं। सबसे वरिष्ठ विधायक हैं। शीर्ष नेतृत्व पर सीधे पकड़ है, लेकिन उनका कमजोर पक्ष है बढ़ती उम्र। इसी तरह से राकेश शुक्ला (मेहंगाव) से तीसरी बार के विधायक हैं। नरोत्तम मिश्रा के चुनाव हारने के बाद ग्वालियर-चंबल से वे ब्राह्मण चेहरा हैं। कमजोरी यह है कि पूरे अंचल में पकड़ नहीं है। पहली बार के विधायक अंबरीश शर्मा (लहार) नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह को हराने से दावेदार बनकर उभरे हैं। उनका कमजोर पक्ष है दबंग नेता की छवि। रीति पाठक (सीधी) ने सांसद रहते चुनाव लड़ा। भाजपा विधायक के बागी होने के बावजूद बड़े अंतर से जीतीं। साफ छवि और महिला होने का फायदा मिल सकता है। कमजोर पक्ष है विंध्य से राजेंद्र शुक्ला का उप मुख्यमंत्री होना। संजय पाठक (विजयराघौगढ़) पूर्व मंत्री हैं। प्रभावशाली हैं। क्षेत्र की जनता के चहेते हैं। कमजोर पक्ष- जातिगत समीकरण में पिछड़ सकते हैं। रामेश्वर शर्मा (हुजूर) की हिंदूवादी नेता की छवि। तीसरी बार के विधायक हैं। जमीनी नेता हैं। कमजोर पक्ष है जिले में दूसरे भी दावेदार हैं। राजेंद्र पांडे (जावरा)  जमीन से जुड़े और मिलनसार नेता हैं। किसी गुट में नहीं हैं। कमजोर पक्ष है, लो प्रोफाइल रहना। रमेश मेंदोला ( इंदौर-2)- सबसे ज्यादा वोटों से लगातार तीसरी बार विधायक बने। जमीनी पकड़ है, मिलनसार, पार्टी के कर्मठ कार्यकर्ता हैं, लेकिन उनका कमजोर पक्ष है कैलाश विजयवर्गीय की भी दावेदारी होना।  अर्चना चिटनिस (बुरहानपुर) पूर्व मंत्री हैं। महिला भी हैं। लंबे समय से भाजपा में कई पदों पर पदस्थ हैं। उनका कमजोर पक्ष है क्षेत्र में सक्रिय नहीं रहना।
क्षत्रिय चेहरे
इसी तरह से जो क्ष्त्रिय चहरे दावेदार माने जा रहे हैं, उनमें विक्रम सिंह (रामपुर बघेलान) से युवा नेता और दो बार के विधायक हैं। जुझारू और सक्रिय नेता हैं, लेकिन जातिगत समीकरण के कारण दावा कमजोर है। नागेंद्र सिंह नागौद (नागौद) पूर्व मंत्री रहे हैं। आठवीं बार के विधायक हैं। उन्हें अनुभव का लाभ मिल सकता है। उनका कमजोर पक्ष है बढ़ती उम्र। नागेंद्र सिंह (गुढ़) पार्टी का पुराने नेता हैं। कई बार के विधायक हैं। समन्वय की राजनीतिक करते हैं। उनका कमजोर पक्ष है युवाओं को मौका मिलने पर दावा कमजोर होना। बृजेंद्र प्रताप सिंह (पन्ना) पूर्व मंत्री और वरिष्ठ नेताओं के करीबी हैं। कमजोर पक्ष है, पिछले कार्यकाल में उन पर कई आरोप लगना। दिव्यराज सिंह (सिरमौर) तीसरी बार के विधायक हैं। युवा चेहरा हैं। निर्विवाद छवि है। सौम्य व्यवहार है। इनका कमजोर पक्ष है ज्यादा सक्रिय नहीं रहना। गोविंद सिंह राजपूत (सुरखी) पूर्व मंत्री हैं। सिंधिया के खास हैं। सिंधिया कोटे से फिर मंत्री बन सकते हैं। इनका कमजोर पक्ष है, पिछले कार्यकाल में आरोप से घिरना। प्रद्युमन सिंह तोमर (ग्वालियर) सिंधिया गुट से आते हैं। अपनी सक्रियता के कारण लगातार चर्चित रहते हैं। पूर्व मंत्री हैं। उनका कमजोर पक्ष है नरेंद्र सिंह तोमर का विधानसभा अध्यक्ष बनने से जातिगत समीकरण में पूरी तरह से फिट न बैठ पाना।  राकेश सिंह (जबलपर पश्चिम) पूर्व सांसद हैं। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष भी है। महाकौशल अंचल में भाजपा के बड़े नेता हैं। शीर्ष नेतृत्व के विश्वसनीय भी माने जाते हैं।  इनाक कमजोर पक्ष है, जिले से कई दूसरे भी दावेदार  होना।
सिंधी समुदाय के दावेदार
 अशोक रोहाणी (जबलपुर छावनी) से लगातार तीसरी बार के विधायक हैं। महाकौशल से आते हैं। साफ स्वच्छ छवि है। इनका कमजोर पक्ष है जिले के बाहर पकड़ कम होना। भगवानदास सबनानी (भोपाल दक्षिण-पश्चिम) से पहली बार के विधायक हैं, लेकिन संगठन को  चलाने का अनुभव है। वरिष्ठों के विश्वसनीय भी हैं। इनाक कमजोर पक्ष है भोपाल से वरिष्ठ, महिला और युवा चेहरों की दावेदारी।  
बनिया समाज
अजय विश्नोई (पाटन) पूर्व मंत्री और पार्टी के पुराने चेहरे हैं। अनुभव भी है। इनाक कमजोर पक्ष है पिछली बार मंत्री नहीं बनाने पर कई बार पार्टी को भी आईना दिखा चुके हैं। उन्हें शिवराज का विरोधी माना जाता है। हेमंत खंडेलवाल (बैतूल) पूर्व सांसद और दो बार के विधायक हैं।  कमजोर पक्ष- कैलाश विजयवर्गीय या अजय विश्नोई के मंत्री बनने पर जातिगत समीकरण से मुश्किल होगी। कैलाश विजयवर्गीय (इंदौर-1)- अनुभवी, वरिष्ठ और कद्दावर नेता हैं। पार्टी के राष्ट्रीय स्तर पर काम कर रहे हैं। कमजोरी पक्ष- मंत्री बनाने से उनके संगठन के कौशल का लाभ नहीं मिलेगा।
अन्य पिछड़ा वर्ग
भूपेंद्र सिंह (खुरई) पूर्व मंत्री, सौम्य व्यवहार और वरिष्ठ नेता। कमजोर पक्ष- पिछली सरकार में साथी मंत्रियों के साथ समन्वय की कमी। विवादों से नाता रहा है। प्रीतम लोधी (पिछोर)- पहली बार के विधायक। जुझारू और सक्रिय। क्षेत्र में अच्छी पकड़। कमजोर पक्ष- कम अनुभव और जातिगत समीकरण में पिछड़ सकते हैं। प्रहलाद पटेल (नरसिंहपुर) पांच बार के सांसद और ओबीसी वर्ग के दिग्गज नेता। पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं। कमजोर पक्ष- पार्टी केंद्रीय स्तर पर उपयोग करने वापस लोकसभा में ले सकती है। मोहन सिंह राठौर (भितरवार) से  पहली बार के विधायक हैं। भितरवार से पूर्व मंत्री लाखन सिंह पटेल को हराकर आए हैं। कमजोर पक्ष- कम अनुभव। ललिता यादव (छतरपुर) पूर्व मंत्री और संगठन में सक्रिय। बुंदेलखंड से मौका मिल सकता है। कमजोर पक्ष है यादव समाज का सीएम होने से दावा कमजोर। प्रियंका मीणा (चौचाड़ा)- पहली बार की विधायक, दिग्विजय के भाई लक्ष्मण सिंह को हराया। युवा नेत्री। कमजोर पक्ष- कम राजनीतिक अनुभव। कृष्णा गौर (गोविंदपुरा)- तीन बार की विधायक, संगठन में कई पदों पर पदस्थ। महिला होने का फायदा होने का फायदा मिल सकता है। कमजोर पक्ष- यादव समाज से सीएम होने से दावा कमजोर।
आदिवासी वर्ग के चेहरे
संपत्तियां उइके (मंडला) – पूर्व सांसद और महिला हैं। आदिवासी चेहरा हैं। निर्विवाद छवि है। कमजोर पक्ष- पार्टी नए चेहरे को मौका देती है तो नंबर कट सकता है। मीना सिंह (मानपुर) शिवराज सरकार में मंत्री रही। कोई विवाद में नहीं है। कमजोर पक्ष- विभाग में सक्रियता कम रही है। बिसाहूलाल सिंह (अनुनपूर)- बड़े आदिवासी चेहरे हैं। पिछली सरकार में मंत्री रहे। कमजोर पक्ष- ढलती उम्र है। विवाद में रहे। ओमप्रकाश धुर्वे (शहपुरा)- पूर्व मंत्री और भाजपा में महाकौशल के बड़े आदिवासी चेहरे हैं। कांग्रेस ने आदिवासी चेहरे को नेता प्रतिपक्ष बनाया है। ऐसे में काउंटर अटैक के लिए दावेदारी मजबूत। कमजोर पक्ष भाजपा के राष्ट्रीय सचिव हैं। मंत्री बनाने से संगठन को समय नहीं दे पाएंगे। राजकुमार कर्राहे (लांजी)- पहली बार के विधायक हैं। एबीवीपी के कार्यकर्ता और संघ पृष्ठभूमि से हैं। कांग्रेस की बढ़ी नेत्री को हरा कर आए। कमजोर पक्ष- अनुभव की कमी होना।  विजय शाह- पूर्व मंत्री और भाजपा में आदिवासी बड़ा चेहरा। कमजोर पक्ष- युवा चेहरे को मौका देने पर दावेदारी कमजोरी।
अनुसूचित जाति
तुलसी राम सिलावट (सांवेर)- वरिष्ठ नेता हैं। सिंधिया के करीबी हैं और सक्रिय नेता हैं। कमजोर पक्ष- युवा चेहरे को मौका देने पर दावा कमजोर हो सकता है। डॉ. प्रभुराम चौधरी (सांची)- पूर्व मंत्री और सिंधिया खेमे से आते हैं। लंबे अंतर से जीते हैं। कमजोर पक्ष- मध्य भारत से मंत्री के कई बड़े चेहरे, युवा और महिला दावेदार हैं। राजेश सोनकर (सोनकच्छ)- दलित चेहरा हैं। कांग्रेस के बड़े दलित चेहरे को हरा कर विधायक बने हैं। कमजोर पक्ष- मालवा से कई बड़े दावेदार हैं। हरिशंकर खटीक (जतारा) – पूर्व मंत्री और भाजपा के अनुभवी नेता हैं। कमजोर पक्ष- युवा को चेहरे को मौका दिया तो दावा कमजोर। विष्णु खत्री (बैरसिया) तीन बार के विधायक हैं। दलित चेहरा और संघ पृष्ठभूमि से आते हैं। कमजोर पक्ष- जिले में कई बड़े चेहरे दावेदार। प्रदीप लारिया (नरयावली)- तीन बार के विधायक हैं। राजनीति में लंबे सक्रिय और दलित चेहरा। कमजोर पक्ष- सागर से कई बड़े चेहरे दावेदार हैं।

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