उपचुनाव वाली तीस सीटें बनेगीं… भाजपा व कांग्रेस के लिए मुश्किल

भाजपा व कांग्रेस

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा व कांग्रेस के लिए वे तीस सीटें बेहद अहम रहने वाली हैं, जिन पर उपचुनाव हुए हैं। दरअसल यह वे सीटें हैं, जिन पर दल बदल के बाद विधायकों द्वारा इस्तीफा दे दिया गया था।  इन सीटों पर विधानसभा के आम चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली थी, लेकिन बाद में उसके विधायकों ने दलबदल कर लिया था। इनमें से नौ सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली है जबकि शेष पर भाजपा जीती। उपचुनाव के बाद से इन सीटों पर राजनैतिक स्थिति बहुत बदल चुकी है।  इसकी वजह से यह सीटें बेहद कठिन मानी जा रही हैं।
कांग्रेस के सामने इन सीटों को दोबारा जीतने की चुनौति बनी हुई हैं तो भाजपा के सामने इन्हें बचाने की चुनौति रहने वाली है। इन सीटों पर लगातार कांग्रेस फोकस कर रही है।  इन  सीटों के  पार्टी संगठन  को मजबूत करने से लेकर नया नेतृत्व खड़ा करने के लिए कांग्रेस लंबे समय से लगी हुई है। कांग्रेस इन सीटों की जीत के लिए विशेष रणनीति बनाकर उस पर अमल करना शुरु चुकी है। यही नहीं इन सीटों पर खुद कमलनाथ दौरा करना शुरू कर चुके हैं। इसके अलावा इन सीटों पर कांग्रेस अघोषित तौर पर छह माह पहले ही प्रत्याशी का नाम तय कर उन्हें चुनाव लड़ने की तैयारी करने का भी इशारा कर सकती है।  इससे  हटकर भाजपा के सामने इन सीटो पर बड़ा संकट पुराने कार्यकर्ताओं  का नए कार्यकर्ताओं के साथ समन्वय नहीं हो पाने का बना हुआ है। इनके बीच सामंजस्य न हो पाने की वजह से संगठन भी परेशान बना हुआ है। इसके अलावा बीते चुनाव में हार का सामना करने वाले नेता भी इन सीटों पर भाजपा के लिए बेहद कठिन स्थिति बना सकते हैं। इन सीटों पर भाजपा को भितरघात का भी सामना करना पड़ सकता है। यही नहीं पुराने कार्यकर्ता सक्रियता दिखाएगें इसको लेकर भी संदेह बना हुआ है। यही वजह है कि प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमल नाथ द्वारा इन क्षेत्रों में किए जा रहे दौरों के बीच भाजपा को कार्यकर्ताओं के मनमुटाव को दूर करने की कवायद करनी पड़ रही है। दरअसल वर्ष 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ उनके समर्थक विधायक भी भाजपा में आए थे, उन सभी चेहरों को पार्टी ने उनकी विधानसभा सीटों पर उपचुनाव में उतारा था, जिसकी वजह से स्थानीय स्तर पर भाजपा के पुराने चेहरे चुनावी परिदृश्य से पूरी तरह से बाहर हो गए।
उपचुनाव के समय माना जा रहा था कि पार्टी अपने पुराने चेहरों का सम्मान बनाए रखने के लिए उन्हें सत्ता में भागीदारी देगी, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है। इसकी वजह से पुराने नेताओं के साथ ही उनके समर्थकों में मायूसी देखी जा सकती है। ऐसे में पार्टी के सामने  बड़ी चुनौती रहने वाली है कि जीत की संभावनाओं के आधार पर किसे बतौर प्रत्याशी मैदान में उतारा जाए। इसका असर स्थानीय से लेकर प्रदेश स्तर तक पड़ना तय है। भाजपा की बड़ी चुनौती नए और पुराने कार्यकर्ताओं  के बीच सामंजस्य की भी है। यदि मौजूदा विधायक को मौका दिया जाता है, तो पुराने चेहरे मायूस होंगे। पुराने चेहरों को फिर से मौका दिया, तो सिंधिया समर्थकों साथ तालमेल बिगड़ने का जोखिम बढ़ सकता है। इन समीकरणों पर कांग्रेस भी पूरी तरह से नजर बनाए हुए हैं।
दलबदल पर नजर
इन उपचुनाव वाली सीटों पर कांग्रेस द्वारा नए सिरे से मजबूत चेहरे तैयार करने की चुनौती का सामना किया जा रहा है।  इससे निपटने के लिए कांग्रेस के रणनीतिकारों की नजर कुछ  इलाकों में भाजपा के पुराने नेताओं पर लगी होनी की संभावनाएंं भी जताई जा रही हैं। माना जा रहा है कि कुछ जगहों पर कांग्रेस समीकरणों को देखते हुए भाजपा के खिलाफ उसी  की रणनीति का उपयोग कर दलबदल के माध्यम से लड़ाई को बेहद कठिन बना सकती है।
छोटे दल भी बिगाड़ेगें समीकरण
इन सीटों में से कई पर छोटे दल भी चुनावी समीकरण बिगाड़ेगें। इनमें आप से लेकर सपा व भाजपा तक शामिल हैं। दरअसल कुछ सीटों पर बसपा का बहुत अधिक प्रभाव माना जाता है। जिन सीटों पर उपचुनाव हुआ उनमें से कई सीटों पर तो बसपा पूरी तरह से मुकाबले में रहती रही है। इनमें ग्वालियर-चंबल अंचल की सीटें खासतौर पर शामिल हैं। इसी तरह से अन्य सीटों पर अन्य दलों द्वारा भी अपना प्रभाव बढ़ाने का काम किया जा रहा है। इनमें कुछ सीटों पर ओबैसी की पार्टी तो कुछ जगहों पर जयस भी चुनावी समीकरण बिगाड़ सकती है। इसके अलावा भाजपा उन सीटों पर भी अभी से फोकस कर रही है जहां पर विपक्षी दलों के विधायक हैं।  प्रदेश में ऐसी सीटों की संख्या 103 है। इन सीटों पर जीत के लिए अभी से पार्टी द्वारा मजबूत प्रत्याशियों के नामों की तलाश शुरू कर दी गई है। दरअसल अभी प्रदेश में भाजपा के 127 और कांग्रेस के 96 और अन्य के खाते में 7  विधायक हैं। इन सीटों के लिए रणनीति बनाने के लिए हाल ही में  प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव और संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा की मौजूदगी में रणनीति बनाने पर मंथन किया गया। इन सीटों का जिम्मा अब वरिष्ठ नेताओं को दिया जा रहा है।  दरअसल पार्टी ने अगले विधानसभा चुनाव में 200 सीटें जीतने का लक्ष्य बनाया है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए ही पार्टी ने क्षेत्र में प्रभावी चेहरे के साथ एक्टिव कार्यकर्ताओं की जानकारी जुटाना शुरू कर दी है। इसके लिए भोपाल से हारे हुई सीटों पर कार्यकर्ताओं को भेजकर संभावित दावेदारों के कमजोर और मजबूत पक्ष की रिपोर्ट तैयार कराई जा रही है। इसके अलावा यह हर सीट पर विधानसभा प्रभारी, बूथ संयोजक और पन्ना प्रभारियों से प्रभारी लोगों और बूथ स्तर पर वोटरों की संख्या की जानकारी भी ली जाएगी। यह काम  इसके लिए वरिष्ठ नेता, पूर्व जिला अध्यक्ष, क्षेत्र में प्रभाव रखने वाले नेता, पूर्व संगठन मंत्रियों और विधायकों द्वारा किया जाएगा।

Related Articles