भोपाल/हरीश फतेहचंदानी /बिच्छू डॉट कॉम। मिशन 2023 के लिए भाजपा ने 51 फीसदी वोट के साथ 200 सीटें जीतने का टारगेट तय किया है। इसके लिए अभी तक तीन सर्वे और भाजपा संगठन द्वारा कराए गए हैं। इन सर्वे में कई विधायकों के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी भी मिली है। जिसमें सिंधिया समर्थक मंत्री-विधायक भी शामिल हैं। ऐसे में आधा सैकड़ा विधायकों का टिकट काटे जाने का अनुमान लगाया जा रहा है। लेकिन इन सबके बाद भी सिंधिया समर्थकों के टिकट नहीं कटेंगे। इसकी वजह यह है की सिंधिया समर्थक उपचुनाव में बड़े अंतर से चुनाव जीते हैं। गौरतलब है कि मप्र में कमलनाथ सरकार गिराकर कांग्रेस के जो विधायक और मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में शामिल हुए थे, उन्हें 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में फिर से टिकट दिए जाने की पूरी गारंटी है। भले ही अभी तक किए गए तमाम सर्वे में भाजपा के अन्य विधायकों के साथ ही सिंधिया समर्थकों की परफॉर्मेंस ठीक नहीं है। ऐसे में आलाकमान ने संकेत दिया है कि जिस विधायक की स्थिति अच्छी नहीं है उसका टिकट काटा जा सकता है। लेकिन सिंधिया समर्थकों के पक्ष में मजबूत स्थिति यह है कि उपचुनाव में उन्होंने बड़े वोट के अंतर से जीत हासिल की है। इसलिए पार्टी की मजबूरी है कि इनको टिकट देना ही होगा।
उपचुनाव में जीत के बड़े आंकड़े
कमलनाथ सरकार गिराकर कांग्रेस के जो विधायक और मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में शामिल हुए थे, उन्हें वर्ष 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में फिर से टिकट देने के पीछे वजह यह है कि उपचुनाव में उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी को बड़े वोट के अंतर से हराया था। जौरा से सूबेदार सिंह राजौधा 13446, अंबाह से कमलेश जाटव-13333, मेहगांव से ओ.पी.एस. भदौरिया-11833, ग्वालियर से प्रद्युम्न सिंह तोमर-33123,भांडेर से रक्षा संतराम सनोरिया-51,पोहरी से सुरेश धाकड़- 23 हजार से अधिक , बमोरी से महेन्द्र सिंह सिसौदिया-53 हजार से अधिक, अशोकनगर से जसपाल जज्जी-14 हजार से अधिक, मूंगावली से बिजेन्द्र सिंह यादव 21 हजार से अधिक, सुरखी से गोविन्द सिंह राजपूत 40 हजार से अधिक, मलहेरा से प्रद्युम्न लोधी 17 हजार से अधिक, अनूपपूर से बिसाहूलाल सिंह 34 हजार से अधिक, सांची से प्रभुराम चौधरी -49 हजार से अधिक, हाटपिपल्या से मनोज चौधरी 14 हजार से अधिक, मंधाता से नारायणसिंह पटेल 22 हजार से अधिक, नेपानगर से सुमित्रा देवी 26 हजार से अधिक, बदनावर से राजवर्धन सिंह दत्तीगांव-32 हजार से अधिक, सांवेर से तुलसी सिलावट 53 हजार से अधिक, सुवासरा से हरदीप सिंह डंग-29 हजार से अधिक वोट से जीते हैं। इनमें से एक मात्र भांडेर से रक्षा संतराम सनोरिया ही ऐसी हैं जो मात्र 51 वोट से चुनाव जीती हैं। ऐसे में केवल उन पर ही टिकट कटने का खतरा मंडरा रहा है। वहीं उपचुनाव में जो चुनाव हारे हैं उनकी हार का अंतर भी काफी कम है। ऐसे में भाजपा आलाकमान उपचुनाव हारने वाले कुछ नेताओं को भी टिकट दे सकते हैं। इनमें सुमावली से एंदलसिंह कंसाना, मुरैना से रघुराम कंसाना, दिमनी से गिर्राज दंडोतिया, कोहर से रणवीर जाटव, डबरा से इमरती देवी, ग्वालियर पूर्व से मुन्नालाल गोयल, करेरा से जसवंत जाटव शामिल हैं।
उपचुनाव वाली सीटों पर घमासान की स्थिति
पार्टी सूत्रों का कहना है कि आंतरिक सर्वे और पंचायत चुनाव के दौरान जो फीडबैक मिला है उसमें पार्टी के आधा सैकड़ा से अधिक विधायकों की स्थिति चिंताजनक है। इनमें उपचुनाव में जीतने वाले विधायक भी हैं। ऐसे में उपचुनाव वाली 32 में से ज्यादातर सीटों पर टिकट को लेकर सबसे ज्यादा जद्दोजहद की स्थिति बनेगी। क्योंकि कई सीटों पर पुराने नेता संकेत दे चुके हैं, निकाय चुनाव में खुलेआम बगावत के दृश्य सामने आ चुके हैं इसलिए पार्टी भी यह बात जानती है कि कार्यकर्ताओं पर ज्यादा दबाव नहीं डाल सकते। यही वजह है कि राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा और क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल ने सभी 65 हजार बूथों को मजबूत और 10 फीसदी वोट शेयर बढ़ाने की मुहिम शुरू की है। उपचुनाव, 11 कांग्रेस जीती ग्वालियर, डबरा, बमोरी, सुरखी, सांची, सांवेर, सुमावली, मुरैना, दिमनी, अंबाह, मेहगांव, गोहद, ग्वालियर पूर्व, भांडेर, करैरा, पोहरी, अशोकनगर, मुंगावली, अनूपपुर, हाटपिपल्या, बदनावर, सुवासरा, नेपानगर, मांधाता एवं दमोह। इनमें से 22 सीटें सिंधिया के समर्थन में खाली हुई 3 अन्य बाद में रिक्त जौरा, आगर, ब्यावरा, जोबट, रैगांव और पृथ्वीपुर सीटों पर विधायकों के निधन होने से उपचुनाव की नौबत आई। 32 में से 11 सीटों पर कांग्रेस काबिज हुई।
भाजपा के पुराने नेता दिखा रहे दम
भाजपा का पूरा फोकस 2023 में अधिक से अधिक सीटें जीतकर सत्ता हासिल करने पर है। निकाय पंचायत चुनाव के दौरान भाजपा को कई जिलों से मैदानी स्थिति की रिपोर्ट मिल चुकी है। कांग्रेस की विधायक छोड़कर भाजपा में जो लोग आए उनमें से 3 मंत्री सहित 11 तो उपचुनाव में ही हार गए थे। लेकिन जो भाजपा के टिकट पर चुन लिए गए हैं अगले चुनाव में उनके टिकट मिलना तय है। उधर उन सभी सीटों के पुराने नेता भी अब पूरी ताकत से अपनी दावेदारी जताएंगे। भाजपा को ग्वालियर-चंबल अंचल में कांग्रेस से आए नेताओं के कारण कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। पार्टी के पुराने नेता और कार्यकर्ता नाराज हैं। दूसरी तरफ सिंधिया समर्थक भाजपा नेताओं और पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं के बीच अब तक समन्वय नहीं बन पा रहा है।
सिर्फ एक बार टिकट देने की शर्त
पार्टी के बड़े नेताओं के अनुसार कांग्रेस से भाजपा में आने वाले इन नेताओं के साथ जो सहमति बनी थी, उसके तहत सिर्फ एक बार टिकट देने की शर्त थी। इन्हें उपचुनाव में टिकट देकर शर्त पूरी कर दी गई थी। आने वाले चुनाव में भी भाजपा उन्हीं नेताओं पर दांव लगाए, ऐसा कोई वादा नहीं हुआ था। लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में मिली हार और फिर उन्हीं सीटों पर भाजपा में आए बागियों की बड़ी जीत पार्टी को मजबूर कर रही है कि उन्हें फिर से टिकट दिया जाए। हालांकि भाजपा सूत्रों का कहना है कि जिन नेताओं की छवि और कामकाज बेहतर है व जिनकी जीत की संभावना है, पार्टी उन्हें अपना प्रत्याशी बनाएगी। जिन नेताओं के साथ पार्टी कार्यकतार्ओं का सामंजस्य नहीं बैठ पा रहा है, ऐसे नेताओं से पार्टी किनारा करेगी।