प्रदेश में तबादलों से बना अफरा-तफरी का आलम

तबादलों
  • स्वास्थ्य, स्कूल शिक्षा व वाणिज्य कर विभाग ने मनमाने तरीके से कर दिए तबादले ….

    भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम।
    मप्र में तबादलों की सूचियां जारी क्या हुईं अफरा-तफरी के हालात बन गए। इन सूचियों में कई ऐसे लोगों के नाम भी शामिल कर लिए गए जो या तो अब इस दुनिया में ही नहीं हैं या फिर वे इस लायक नहीं हैं कि तबादलों की मार झेल सकें।
    तबादलों को लेकर मनमानी का हल यह है कि कई जगहों पर तो पूरा का पूरा स्टाफ ही तबादले का शिकार बना दिया गया, जिसकी वजह से उनमें अब कोई स्टाफ ही नहीं रह गया है। इनमें स्कूल से लेकर अस्पताल तक को भी नहीं छोड़ा गया है। उधर तबादलों में मिली छूट की अंतिम तारीख निकलने के बाद भी कई मंत्रियों के आवासों पर आम आदमी तो ठीक पार्टी के विधायकों का भी आना जाना खूब बना हुआ है। दरअसल यह वे विधायक हैं जिनकी सिफारिशों को कोई तबज्जो ही नहीं दी गई है। अफसरों ने अपने हिसाब से मंत्रियों के साथ मिलकर तबादलों में जमकर खेल कर दिया। इससे परेशान होकर कुछ विधायकों ने तो इसकी शिकायत मुख्यमंत्री व संगठन से भी की है। हद तो यह है कि अधिकांश विभागों में तबादलों के आदेश अंतिम दो दिन यानी की 30 व 31 अगस्त को जारी किए। यही नहीं कई विभाग अंतिम  तिथि निकलने के बाद भी पुरानी तारीखों में तबादला आदेश जारी कर रहे हैं। आदेशों में की गई मनमानी का आलम यह है कि कई आदेशों से कई गांवों के स्कूल व स्वास्थ्य केंद्र कर्मचारी विहीन तक हो गए हैं।
    उनमें पदस्थ पूरे के पूरे अमले को उनकी पसंद के अनुसार शहरों में पदस्थापना कर दी गई है। अधिकारियों ने स्थानांतरण करते समय यह भी नहीं देखा कि रिक्त पदों को कैसे भरा जाएगा। प्रभारी मंत्रियों के समक्ष समस्या यह है कि जो आदेश शासन से हो गए हैं वह उन्हें निरस्त नहीं कर सकते हैं। हालात इससे ही समझे जा सकते हैं कि कई जिलों में तो प्रभारी मंत्रियों को आदेश जारी करने के बाद निरस्त तक करने पड़े हैं। इसकी वजह बनी है जिले के जिन रिक्त पदों पर प्रभारी मंत्री के अनुमोदन के बाद पदस्थापना की गई थी वहां शासन से सीधे आदेश जारी कर दिए गए।
    खास बात यह है कि   31 अगस्त को राज्य सरकार ने तबादलों पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिसकी वजह से जिलों के अंदर भी तबादले बंद हो गए। इसके बाद भी अभी जिलों में कई महत्वपूर्ण पद रिक्त पड़े हुए हैं। खास बात यह है कि इनमें राजपत्रित अधिकारियों के भी पद शामिल हैं। दरअसल इसकी वजह है राजपत्रित अधिकारियों के स्थानांतरण का अधिकार प्रभारी मंत्री के पास न होना।
    इन विभागों में सबसे अधिक बुरे हालात
    तबादलों को लेकर सबसे ज्यादा विवाद की स्थितियां स्वास्थ्य, स्कूल शिक्षा व वाणिज्य कर विभाग में है। स्वास्थ्य विभाग ने दूरस्थ ग्रामीण अंचल में पदस्थ डॉक्टर और नर्सों को शहरों में पदस्थ कर दिया है। जिससे गांव के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पूरी तरह से खाली हो गए हैं। स्कूल शिक्षा विभाग ने मनमाने तरीके से तबादले किए हैं वहां ना तो ऑनलाइन आवेदन पर तबादले हुए और न  ही जनप्रतिनिधियों की सिफारिश पर इससे विधायक व अन्य जनप्रतिनिधियों में बेहद नाराजगी है। वाणिज्यिक कर विभाग में अधिकांश अधिकारियों की पदस्थापना एंटीजन ब्यूरो में कर दी गई है जिससे मैदानी पद खाली हो गए हैं।

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